Video: उत्तराखंड के युवाओं ने रचा इतिहासः एल्पाइन स्टाइल में फतह की कालानाग की 6387 मीटर ऊंची चोटी
यदि जज्बा हो तो कुछ भी किया जा सकता है। इसे साकार कर दिखाया उत्तराखंड के युवाओं के दल ने। पर्वातारोहण के लिए जिस एल्पाइन स्टाइल में चोटी को फतह करने का किसी भारतीय ने साहस नहीं दिखाया, उसे इन युवाओं ने नौ दिन में फतह कर दिखाया। इन युवाओं उत्तराखंड के उत्तरकाशी जनपद में कालानाग की चोटी का सफल आरोहण किया। हांलाकि दल में शामिल छह में से तीन युवाओं ने ही चोटी को फतह करने में सफलता हांसिल की। ये उत्तराखंड के लिए गौरव की बात है। यह चोटी गोविंद नेशनल सेंचुरी के सांकरी क्षेत्र में है।
आठ अक्टूबर को की थी अभियान की शुरुआत
उत्तरकाशी से युवाओं के दल ने कालानाग पर्वत चोटी को फतह करने के लिए अभियान की शुरुआत आठ अक्टूबर को की थी। इस दल में छह सदस्य शामिल थे। 14 अक्टूबर को चोटी फतह की और 16 अक्टूबर को अभियान समाप्त भी कर दिया। अमूमन इस पर्वत की चोटी को फतह करने के अभियान में 15 दिन लगते हैं। इन युवाओं ने इसे नौ दिन में ही पूरा कर लिया। वहीं इन युवाओं का दावा है कि एल्पाइन स्टाइल में किसी भारतीय ने अब तक इस चोटी को फतह नहीं किया। जो उन्होंने कर दिखाया है। इन युवाओं की उम्र 24 से 30 वर्ष के बीच है।
टीम में शामिल सदस्य
1-टीम लीडर-राजेश (उत्तरकाशी)
2-पंकज रावत (बड़कोट उत्तरकाशी)
3-राम उनियाल (बड़कोट उत्तरकाशी)
4-सिद्धार्थ कसाना (देहरादून)
5-अमनदीप (देहरादून)
6-रघु बिष्ट (चमोली गढ़वाल)
इन युवाओं ने फतह की चोटी
1-पंकज रावत (बड़कोट उत्तरकाशी)
2-राम उनियाल (बड़कोट उत्तरकाशी)
3-रघु बिष्ट (चमोली गढ़वाल)
ये है एल्पाइन स्टाइल
टीम में शामिल पंकज रावत ने बताया कि भारतीय लोग एल्पाइन स्टाइल से पर्वत की चोटी फतह नहीं कर पाए हैं। इस स्टाइल में हर काम खुद करना पड़ता है। सपोर्टिंग स्टाफ साथ नहीं होता। पर्वत चढ़ने में भी किसी की सहायता नहीं लेनी पड़ती है। कैंप में भी अपना अपना काम स्वयं ही करना पड़ता है। साथ ही अपना सामान भी खुद लेकर चलना पड़ता है।
इसलिए लगे कम दिन
पंकज रावत ने बताया कि कालानाग की चोटी 6387 मीटर या 21000 फीट ऊंची है। बैस कैंप से लेकर समिट कैंप क्यारकोटी के बीच दो कैंप और हैं। यहां भी पर्वतारोही दल रात को विश्राम करता है। उनके दल ने सीधे बेस कैंप से चलना शुरू किया और सीधे समिट कैंप तक पहुंचे। इसके बाद तालुका से पर्वत के लिए चढ़ाई आरंभ की। इस अभियान में अमूमन दल 15 दिन लगाते हैं, जो उन्होंने मात्र नौ दिन में पूरा कर लिया।
दुर्गम रास्ते और कठिन सफर
पंकज रावत के मुताबिक पूरा रास्ता दुर्गम है। शिखर के टॉप (सबसे ऊपरी भाग) को पर्वत की रिस्पेक्ट के लिए छोड़ा जाता है। उसके बगल तक ही पर्वतारोही पहुंचते हैं। ये टाप से महज एक-दो मीटर पहले होता है। रास्ते कठिन होने के कारण लोग पीछे से ही वापस हो जाते हैं। जिस दिन पर्वत की चोटी को फतह करने के लिए शुरुआत की। उस दिन एक और दल को चोटी फतह करनी थी। वहां इतनी सर्दी थी कि दल के सदस्य वापस लौट गए। वहीं उनके दल के तीन सदस्यों ने साहस दिखाया और चोटी को फतह कर लिया।
बेहद खूबसूरत है रुईंसाडा ताल
बैस कैंप से लेकर समिट कैंप के बीच दो कैंप और पड़ते हैं। एक कैंप सीमा में है और दूसरे रुईंसाडा ताल में है। इसके बाद समिट कैप पड़ता है। पंकज रावत ने बताया कि दल के सदस्य बीच के कैंप में नहीं रुके। रुईंसाडा ताल की खासियत है कि इसका पानी बेहद साफ है। यदि इसमें किसी पेड़ का पत्ता भी गिर जाए तो वह किनारे लग जाता है। ऐसे में ताल बेहद स्वच्छ रहता है।
नेहरू पर्वतारोहण संस्थान से लिया था प्रशिक्षण
इन युवाओं ने उत्तरकाशी स्थित नेहरू पर्वतारोहण संस्थान से प्रशिक्षण लिया था। इसके बाद अपना ग्रुप बनाकर वे पर्यटकों को पर्वतारोहण व ट्रैकिंग के गुर सिखाते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।