युवा कवयित्री अंजली चन्द की कविता-उलझनें खामोश हैं

इन्हीं उलझनों में ऐ खुदा हम उलझ से गये..
कभी कभी संयम खो बैठते हैं
तो कभी कभी संयम में रहकर खुद को ही तोड़ बैठते हैं,
कभी कभी एक छोटी सी चुभन भी मन को कुरेद देती है
तो कभी किसी करीबी के चले जाने पर भी फर्क़ नहीं पड़ता है …
कभी कभी ख्याल उजागर हो जाता है कि
कर्म से बड़ा कोई धर्म ना होता,
माँ बाप से बड़ा कोई पूजनीय ना होता,
बस एक इंसान होता ना कोई मजहबी झंझट होता,
अरे हमे यूँ बेफिक्र देखकर अपना नजरिया ना बदल,
हम सुलझा सा सादगी भरा मिजाज़ रखकर,
खुद से ही उलझे उलझे से हैं,
बेफिजूल ही जिक्र हो जाता है शब्दों के हर लहजे में वो,
ये बात अलग है कि अब नफ़रत होने लगी है जिक्र से भी,
कवयित्री का परिचय
नाम – अंजली चन्द
निवासी – बिरिया मझौला, खटीमा, जिला उधम सिंह नगर, उत्तराखंड।
लेखिका gov job की तैयारी कर रही हैं।