उत्तरकाशी में युवा ने किया अभिनव प्रयोग, मवेशियों की गोशाला को बना दिया होम स्टे

उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्र के लोग स्वरोजगार के लिए नए नए प्रयोग कर रहे हैं। ग्रामीण परिवेश में वे होम स्टे खोलकर पर्यटकों को लुभाने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं, एक युवक एवं बारसू गांव के पूर्व प्रधान विपिन राणा ने ऐसा प्रयोग किया कि जो भी देखता है आश्चर्य में पड़ जाता है। उन्होंने छानी (मवेशियों का घर) को होम स्टे के रूप में सजा दिया। बाहर और भीतर दोनों तरफ से ये होम स्टे बेहद आकर्षक लग रहा है।
यूँ तो गांवों में जीवन यापन हमेशा से ही कठिन परिश्रम रहा है। पुराने समय से पुश्तेनी खेती बाड़ी और पशुपालन कर अपने परिवारों का जीवन यापन करने वाले ग्रामीण केवल अपने खानपान और शारीरिक परिश्रम से स्वस्थ तो रहे, लेकिन आजीविका का ठोस साधन न होने से आर्थिक, शैक्षणिक और सामाजिक तौर पर पिछड़ते भी रहे।
पुराने समय के तौर तरीकों में जो क्रांतिकारी बदलाव आज के कृषकों ने किए उससे निश्चित तौर पर खेती पर निर्भरता से आजीविका जरूर उपार्जित हुई हैं। आज विशेषकर टकनौर घाटी के ग्रामीण कृषि और उद्यानीकरण पर आत्मनिर्भर होकर एक पहचान बना चुके हैं। खेती के बाद अगर बात पर्यटन की करें तो यहां अपार संभावनाएं दिखती हैं। साथ ही इसमें इन्वेस्टमेंट ज्यादा होने से लोग जोखिम लेने में घबराते है।
इसी जोखिम को चुनोती के रूप में स्वीकार कर एक स्थानीय नौजवान एवं बारसू गांव के पूर्व प्रधान विपिन राणा ने अपनी पुश्तेनी छानी को स्वरोजगार का माध्यम बनाकर अनूठी मिसाल कायम की है। भटवाड़ी मुख्यालय के नजदीकी विश्व प्रसिद्ध बुग्याली क्षेत्र दयारा की तलहटी पाला-बारसू सड़क मार्ग पर पौराणिक मवेशियों के लिए बनी अपनी पुश्तेनी छानियों को उन्होंने होम-स्टे के रूप में विकसित कर दिया। विपिन ने कम इन्वेस्टमेंट में एक ऐसा स्वरोजगार खड़ा किया है, जिससे प्रेरणा लेकर अन्य लोग भी आजीविका उपार्जित कर सके।
उनके होम स्टे में उन्होंने पहाड़ी व्यंजनों को परोसने के साथ हीअपनी बद्री गायों का ताजा और शुद्ध दूध देने के अलावा पर्यटकों के लिए पहाड़ों के घर जैसा वातावरण तैयार किया है। उन्होंने बताया कि उनका प्रयास रहेगा कि वे स्थानीय उत्पादों को ही यहां प्रयोग में लाएंगे। विपिन के इस प्रयास से इस बात से इनकार नही किया जा सकता कि अगर कुछ करने का जज्बा और दृढ़ इच्छा शक्ति मजबूत रहे तो “पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी” निश्चित तौर पर पहाड़ के ही काम आएगी।
उत्तरकाशी से हरदेव सिंह पंवार और प्रताप प्रकाश पंवार की रिपोर्ट।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।