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August 2, 2025

हॉरर कहानीः रहस्यमयी अंगूठी-लेखिका दीपा शर्मा

उसने रागिनी से पूछा-क्या तुम वो अंगूठी देखना चाहोगी। रागिनी ने हाँ के इशारे में अपना सर हिला दिया।

पिछले चार दिनों से यूँ ही बिना रुके लगातार मूसलाधार बरसात हो रही थी। पर आज का नजारा ना जाने क्यों रागिनी को डरा रहा था। पिछले दो घंटे से वो अपने कमरे में बैठी घड़ी को घूर -घूर कर देख रही थी। पर मानो घड़ी ने भी जिद्द पकड़ रखी थी कि वो आज आगे नहीं बढ़ेगी। आज उसका फाईनल ईयर का आखिरी इम्तिहान था। इसलिए वो सभी घरवालों के साथ आपनी मौसीजी के बेटे आकाश की शादी में सम्मलित नहीं पाई। दो घंटे पहले पापा ने फोन करके कहा था कि वो एक – डेढ़ घंटे में घर पहुँच जाएंगे। पर दो घंटे हो गए न वो आए और ना ही उन्का फोन ही लग रहा था।
चमकदार कड़कती बिजली की आवाज ने उसे फिर से डरा दिया और वो अपने धुटनों को मोड़कर अपने सीने से लगा अपनी बाँहों में भर खुद को बार – बार हिम्मत दे रही थी कि बस अब थोड़ी देर में सभी घर वाले वापस आ जाएंगे। पर अब उसकी हिम्मत घीरे धीरे टूटने लगी थी। बारिश की मोटी – मोटी बूंदे उसकी खिड़की के काँच पर जोर – जोर से टकरा रही थी। खिड़की के बाहर बरगद के पेड़ बिजली की रोशनी में तरह- तरह की आकृतियाँ बना उसके डर को और भी बढ़ा रहा था।
कमरे में एसी चलने के बावजूद उसके माथे पर डर के कारण पसीना आ रहा था। उसने फिर से अपने बगल में रखे फोन को उठाया और अपने पापा का नम्बर लगाया पर इस बार फिर काँल नहीं लगी। वो दुबारा नम्बर लगाने ही वाली थी कि दरवाजे की घंटी बजी। वो बड़ी तेजी से दौड़कर दरवाजा खोलने के लिए भागी। घरवालों के देर से आने के कारण वो नाराज तो थी पर उसे इस बात की खुशी ज्यादा थी कि वो अब घर में अकेली नहीं है।
” क्या पापा मैं कब से …” उसके शब्द बीच में ही रुक गए जब उसने अपने सामने एक अंजान औरत को खड़े देखा। पहनावे से वो औरत अच्छे घर की लग रही थी। बारिश के कारण वो पूरी तरह से गीली हो चुकी थी। वो औरत बहुत ज्यादा खुबसूरत थी और उसका व्यतित्व बड़ा आकर्षक था।
माफ किजिएगा आँटी मैंने आपको पहचाना नहीं ” रागिनी ने बड़े आदर से उससे कहा।
मैं दफ्तर से घर जा रही थी कि मेरी गाड़ी खराब हो गई और मेरे फोन की बैटरी भी खत्म हो गई। अगर तुम मेरी मदद कर दो तो मैं कैब बुक करके अपने घर चली जाऊँगी। यहाँ आस – पास तुम्हारे घर के आलावा मुझे और कोई घर नहीं दिखा तो मैं मदद के लिए यहीं आ गई। उस औरत ने कहा
मैं आपकी मदद जरूर करती पर मेरा फोन भी नहीं लग रहा शायद नेटवर्क में कोई प्रौब्लम है। इतना कह कर रागिनी गेट बंद करने लगी तभी उस औरत ने बीच में रोकते हुए कहा
कोई बात नहीं बेटा ! क्या तुम मुझे पानी पिला दोगी
“हाँ जी जरूर ” इतना कहकर रागिनी अंदर पानी लेने चली गई। जब वो पानी लेकर आई तो उसने देखा कि वो औरत उसके घर के अंदर आकर सोफे पर बैठी थी और दरवाजा खुला था बाहर से बारिश की बूंदें और तेज कड़कड़ाहट के साथ चमकती बिजली की रौशनी आ रही थी। उस औरत की पीठ दरवाजे की तरफ थी। डर के मारे रागिनी की हालत खराब हो रही थी। उसने पानी का ग्लास उस औरत को दे दिया। उस औरत ने बिना पानी पिए ग्लास को सामने मेज पर रख दिया। अब रागिनी की घबराहट और ज्यादा बढ़ने लगी।
वह औरत बातें शुरू करते हुए अपने बारे में बताने लगी कि वो बहुत ज्यादा अमीर है। उनके पास बहुत सारे घर, गाड़ी और जेवर है पर सबसे ज्यादा कीमती वो अंगूठी है जो उसने अपने सीधे हाथ की तीसरी अंगूली में पहन रखी है। उसने रागिनी से पूछा-क्या तुम वो अंगूठी देखना चाहोगी। रागिनी ने हाँ के इशारे में अपना सर हिला दिया। उस औरत ने कहा- आओ ! आओ मेरे पास और देख कर बताओ तुम्हें ये कैसी लगी।
रागिनी घबराते हुए धीरे -धीरे उस औरत के नजदीक बढ़ने लगी। जब उस औरत ने अंगूठी दिखने के लिए अपना हाथ आगे किया तो उसके हाथ में तीसरी अंगुली थी ही नहीं। रागिनी डर के कारण काँपने लगी और कहा- आपके हाथ में तीसरी आँगुली तो है ही नहीं है। तब उस औरत ने आचानक रागिनी का गला दबा दिया उसके बाल जोर जोर से उड़ने लगे। उसकी आंखें बड़ी और लाल हो गई वो गुस्से से विकराल होकर कहने लगी-होगी कैसे, तूने ही तो अंगूठी चुराने के लिए मेरी अंगुली काटी है। तुने क्या सोचा मैं तुझे छोड़ दूँगी।
रागिनी अपने आप को उससे छुड़ाने का प्रयास करने लगी और कहने लगी- मैंने नहीं चुराई आपकी अंगूठी। मैं तो आपको जनती भी नहीं। पर उस औरत ने उसकी एक ना सुनी और ज्यादा ताकत से उसका गला दबाने लगी। तभी बाहर से गाड़ी के हॉर्न की आवाज आई और अचानक वो औरत गायब हो गई। रागिनी डर के कारण फर्श पर गिर गई और लम्बी साँसे भरकर अपने आप को शांत करने का प्रयास करने लगी। तभी सामने के दरवाजे से उसके परिवार वाले आ जाते है। इस घटना का जिक्र उसने कभी किसी से नहीं किया। पर इस घटना के बारे में सोच वह आज भी सहम जाती है।
लेखिका का परिचय
नाम – दीपा शर्मा
पेशा – शिक्षिका
निवास -दिल्ली नजफगढ़।

Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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