पांचवें नवरात्र को कीजिए स्कंद माता की आराधना, भोग में अर्पित करें ये फल
मां दुर्गा की पंचम स्वरुप को स्कंद माता के नाम से जाना जाता है। मां की चार भुजाएं हैं। दांयी तरफ की ऊपर वाली भुजा से मां अपनी गोद में स्कंद, यानि कुमार कार्तिकेय को पकड़े हुए हैं। एवं नीचे वाली भुजा में कमल को धारण किया है। तो वहीं बांयी ओर की ऊपर वाली भुजा से मां आशीर्वदा मुद्रा में हैं। नीचे वाली भुजा में मां ने कमल के पुष्प को धारण किया है। मां का यह स्परुप परम सुखों को देने वाला है। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में स्थापित रहता है। डॉ. आचार्य सुशांत राज के मुताबिक स्कंद माता को भोग में केला अर्पित करना चाहिए।
स्कन्दमाता
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता कहा जाता है। ये भगवान स्कन्द ‘कुमार कार्तिकेय’ के नाम से भी जाने जाते हैं। इन्हीं भगवान स्कन्द अर्थात कार्तिकेय की माता होने के कारण मां दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। इनकी उपासना नवरात्रि पूजा के पांचवें दिन की जाती है। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में स्थित रहता है। इनका वर्ण शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान हैं। इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है। नवरात्रि पूजन के पांचवें दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है। इस चक्र में अवस्थित रहने वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाएं एवं चित्र वृत्तियों का लोप हो जाता है।
आचार्य का परिचय
नाम डॉ. आचार्य सुशांत राज
इंद्रेश्वर शिव मंदिर व नवग्रह शिव मंदिर
डांडी गढ़ी कैंट, निकट पोस्ट आफिस, देहरादून, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।