नवरात्र के चौथे दिन कीजिए मां कूष्मांडा की पूजा, लगाएं ये भोग
नवरात्र को मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा होती है। मां के चौथे स्वरूप को कूष्मांडा कहा जाता है। कहते है जब सृष्टि में चारों ओर अंधकार था, तब इन्होंने ही अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसके कारण इनका नाम कूष्मांडा पड़ा। मां कूष्मांडा के पूजन के दिन साधक का मन अनाहत चक्र में स्थापित होता है।
डॉ. आचार्य सुशांत राज के मुताबिक मां कुष्मांडा के चेहरे पर मंद मुस्कान रहती है। इनका यह स्वरूप बहुत मनमोहक लगता है। मां कूष्मांडा को किसी भी चीज का भोग लगाने से सहज ही प्रसन्न हो जाती हैं, लेकिन इनका प्रिय भोग मालपुआ है।
कूष्माण्डा
सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तुमे।।
नवरात्र के चौथे दिन साधक का मन अनाहज चक्र में स्थित होता है। अतः पवित्र मन से पूजा−उपासना के कार्य में लगना चाहिए। मां की उपासना मनुष्य को स्वाभाविक रूप से भवसागर से पार उतारने के लिए सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है। माता कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधिव्याधियों से विमुक्त करके उसे सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाती है। अतः अपनी लौकिक, परलौकिक उन्नति चाहने वालों को कूष्माण्डा की उपासना में हमेशा तत्पर रहना चाहिए।
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आचार्य का परिचय
नाम डॉ. आचार्य सुशांत राज
इंद्रेश्वर शिव मंदिर व नवग्रह शिव मंदिर
डांडी गढ़ी कैंट, निकट पोस्ट आफिस, देहरादून, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।