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July 3, 2025

नौ लाख दीप जलाकर बना विश्व रिकॉर्ड, बजाई ताली, गरीब का पेट खाली, जले दीपक से निकाला तेल, पापी पेट के यही खेल

छोटी दीपावली के मौके तीन नवंबर को अयोध्या में करीब साढ़े नौ लाख दीपक जलाकर विश्व रिकॉर्ड तो बन गया, लेकिन इसके उलट एक सच्चाई और सामने आई है।

छोटी दीपावली के मौके तीन नवंबर को अयोध्या में करीब साढ़े नौ लाख दीपक जलाकर विश्व रिकॉर्ड तो बन गया, लेकिन इसके उलट एक सच्चाई और सामने आई है। देश भर में मनी दीपावली, लेकिन गरीब का पेट तो रह गया खाली। धन की हुई बर्बादी, महंगाई झेल रही आबादी। अब बचे हुए दीपक ही गरीब का बने सहारा। सरयू का किनारा बना गरीब का सहारा। अयोध्या में ऐसा ही कुछ नजारा देखने को मिला। जहां गरीब लोग जले हुए दीपक से तेल एकत्र करते हुए नजर आए। पापी पेट का शायद यही खेल है। हम कितनी भी तरक्की की बात कर लें, लेकिन जब 80 करोड़ लोग मुफ्त का राशन लेंगे तो यही कहा जाएगा कि इस देश की इतनी आबादी अभी गरीब है। जब बात बात पर इतिहास बन रहा है तो इतिहास ये भी बन गया कि लोगों ने दीपकों से जले तेल को दाल और सब्जी पकाने के लिए एकत्र किया।
उत्तर प्रदेश की धर्मनगरी अयोध्या में राम की पैड़ी पर बुधवार 3 नवंबर को साढ़े नौ लाख दिये जलाने का विश्व रिकॉर्ड बनाया गया। दीए तो जल गए। हवा से कुछ कुछ देर टिमटिमाने के बाद बुझ भी गए। इन दीपकों में बचा तेल गरीब मजदूरों के लिए पेट की आग बुझाने में स्वाद का तड़का लगाने की जरिया बन गया। दीपावली बीतने के बाद नदी घाटों के आस-पास के गरीब मजदूर जले हुए तेल को बटोरते दिखाई दिए।
अयोध्या में सरयू की पैड़ी के 12 घाट हैं। इसमें तकरीबन 12 हजार वालंटियर्स दिवाली के कार्यक्रम में शामिल हुए थे। दिवाली के इस कार्यक्रम में 36 हजार लीटर सरसों का तेल खपने का अंदाजा है। इस तेल को बाद में शहर के गरीब लोग समेटते नजर आए। दीपावाली के बाद अयोध्या नगरी में राम की पैड़ी के आसपास की गलियों से गरीब लोग बुझे दीयों के तेल को खाना पकाने के लिए अपने डिब्बे-बोतलों में भरकर ले गए हैं। उनका कहना है कि सरसों का तेल 200 रुपए लीटर है और यहां मुफ्त मिल गया है, इसलिए ले जा रहे हैं। इन सब में होड़ लगी थी। साथ ही डर भी था कि कहीं पुलिस न रोक दे। ऐसे में सब जल्द से जल्द तेल बटोरते नजर आए।
मजदूरों का कहना था कि कोरोनाकाल के बाद महंगाई की मार के चलते उन्हें मजदूरी नहीं मिल रही है। त्योहारों के वक्त वे एक-एक रुपये के लिए रो रहे हैं। अब हम लोगों के पास, मेहनत मजदूर भी नहीं रही है। एक व्यक्ति का कहना था कि इस तेल को पहले हम गर्म करेंगे। जब इसका सारा तत्व निकल जाएगा और ये साफ हो जाएगा फिर हम इसे खाने के लिए इस्तेमाल करेंगे।

Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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