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November 23, 2024

ग्राफिक एरा में विश्व आपदा प्रबंधन सम्मेलन, दूसरे दिन विशेषज्ञों ने डिजास्टर मैनेजमेंट के विभिन्न पहलुओं पर किया मंथन

देहरादून में क्लेमंनटाउन स्थित ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय में छठे विश्व आपदा प्रबंधन सम्मेलन के दूसरे दिन विशेषज्ञों ने डिजास्टर मैनेजमेंट के विभिन्न पहलुओं पर मंथन किया। इस सम्मेलन में 70 देश के प्रतिनिधि भागीदारी कर रहे हैं। इस चार दिवसीय सम्मेलन में 60 से अधिक तकनीकि सत्र आयोजित किए जा रहे हैं। दूसरे दिन के पहले सत्र में इको डिजास्टर एवं रिस्क रिडक्शन को लेकर चर्चा की गई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

वहीं, दूसरे सत्र में राष्ट्रीय एवं वैश्विक जन स्वास्थ्य एमरजेंसी एंड डिजास्टर रिस्पांस पर चर्चा हुई। इसमें वक्ताओं ने आपदा के समय में स्वास्थ्य सेवा की इमरजेंसी सुविधाओं को अमल में लाने के तरीकों को लेकर चर्चा की। सम्मेलन में टेक्निकल सेशन भी रखे गए थे। इसके अंतर्गत स्पेस बेस्ड इनफॉरमेशन फॉर डिजास्टर मैनेजमेंट, बिल्डिंग रेसिलियंस ऑफ कम्युनिटीज थ्रू इकोसिस्टम बेस्ड अप्रोच, मरीन डिजास्टर मैनेजमेंट इनलैंड वॉटर रिसोर्सेस इंपैक्ट ओन एनवायरमेंट – बिल्डिंग इकोनामी फॉक्स जैसे मुद्दों पर मंथन किया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

प्रथम सत्र की अध्यक्षता नेपाल के प्रधानमंत्री के पूर्व एडवाइजर एवं ईपीपीसीसीएमएन नेपाल के सदस्य डॉक्टर माधव बी कार्की ने की। उन्होंने बढ़ते हुए तापमान पर चिंता जताई। कहा कि इको- डिजास्टर एंड रिस्क रिडक्शन के माध्यम से भविष्य में होने वाले आपदाओं को और करीब से समझ कर उसका समाधान किया जा सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

वही पैनल डिस्कशन के सह अध्यक्ष एवं उत्तराखंड के पूर्व मुख्य सचिव व डीआईटी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एन रविशंकर ने मनुष्य और मशीन का समन्वय बनाने और एक दूसरे के आवश्यकताओं और नव निर्माण के बारे में प्रकाश डाला। उन्होंने कहा आपदा के समय पर मनुष्य का मुख्य सहयोगी मशीन ही होता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

मुख्य वक्ता डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के सेक्रेटरी जनरल एंड सीईओ रवि सिंह ने कहा कि डिजास्टर मैनेजमेंट प्लान में माउंटेन रीजन और कोस्टल रीजन के डिजास्टर के जो स्थिति होती है वह अलग-अलग होती है। उन्होंने बताया कि किस तरह से आपदा के समय संपूर्ण इकोसिस्टम में बदलाव आता है। हम देख सकते हैं कि मानव जीवन के साथ-साथ जीव जंतु, कीट पतंगे, जलीय जीव सब इकोसिस्टम में बदलाव की वजह से डिस्टर्ब होते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने कहा हम चाहते हैं कि दुनिया में जितनी भी संस्था एनवायरनमेंट के ऊपर काम कर रही हैं, वह सब एक साथ मिलकर सामूहिक प्रयास करें और सस्टेनेबल डेवलपमेंट के बारे में बात करें और उसके लिए कोई निश्चित निष्कर्ष निकाले। उन्होंने नॉलेज और कैपेसिटी बिल्डिंग पर बात करते हुए कहा की डिजास्टर और एनवायरमेंटल इश्यू के बारे में लोगों के पास पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए। ताकि आपदा के समय किस तरह का एक्शन लेना है उसे सोच सके और उसे पर एक्शन ले सके। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

कार्यक्रम के अन्य पैनलिस्ट यूके के स्कूल ऑफ़ जियोग्राफी, अर्थ एंड एनवायरमेंटल साइंस, फैकल्टी ऑफ़ साइंस एंड इंजीनियरिंग, यूनिवर्सिटी का प्लाइमाउथ फिजिकल ज्योग्राफी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ मैथ्यू वेस्टोबी ने अपने संबोधन में कहा कि हाई एल्टीट्यूड और माउंटेन रीजन में हमारा जीवन और प्रकृति दोनों एक साथ रहता है। हमें इनके बीच बैलेंस बनाकर पूरे इकोसिस्टम को सस्टेनेबल रखना चाहिए। उन्होंने केदारनाथ त्रासदी, अलकनंदा नदी में आई बाढ़ की वजह से बदलाव की बात कही। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने कहा हिमालयन रीजन से निकलने वाली नदियों में अब काफी बदलाव आ चुका है। जब-जब आपदा या फ्लैश फ्लड आती है तो इन नदियों में कुछ न कुछ बदलाव आ जाता है, जो भविष्य के लिए बहुत खतरनाक हो सकता है। उन्होंने हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के बारे में भी बात करी और कहां की हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट से कई बार इकोसिस्टम बनता भी है और बिगड़ता भी है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

अन्य पैनलिस्टों में शामिल अर्बन डेवलपमेंट, डब्ल्यू आर आई, इंडिया के सीनियर मैनेजर डॉक्टर प्रिया नारायण ने इंपैक्ट आफ क्लाइमेट चेंज इन इंडिया पर कहा कि पर्यावरण में बदलाव किसी खास राज्य की बात नहीं है। यह सब अब पूरे भारत के जलवायु परिवर्तन में दिख रहा है। उन्होंने “कावाकी पहल” पर चर्चा की, जो केरल में चलाया जा रहा है। जहां पर पर्यावरण को संतुलन रखने के लिए कई ऐसे अभियान चलाए गए हैं, जिसमें पहाड़, मैदान और तटीय क्षेत्रों के बीच सामंजस्य बनाए रखने की कोशिश की जा रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

पैनलिस्ट यूनिट हेड फॉर स्टडीज एंड प्रोस्पेक्शन, जी ई एफ ऑपरेशनल फोकल प्वाइंट, कैमरन डॉ. हामान उनुसा ने कहा कि क्लाइमेट चेंज और डिजास्टर का असर कृषि भूमि पर सबसे अधिक हो रहा है। अब यह कृषि भूमि का मुद्दा दुनिया के लिए चिंता का विषय बन चुका है। उन्होंने अपने सुझाव में नदियों के किनारे बांस लगाकर मिट्टी के कटाव को रोकने की बात कही। उन्होंने कहा कि बांस के माध्यम से हम नदियों के किनारे उसके फ्लो को नियंत्रित कर सकते हैं। वहीं पर मिट्टी को भी हम नदियों में बहने से रोक सकते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने आगे कहा कि बांस एक समूह में उगता है और छोटे-छोटे बांध के रूप में नदियों के किनारो पर उग जाता है। बांस को लगाने से लोगों के आर्थिक में भी मदद मिलेगी। क्योंकि बांस के बहुत सारे ऐसे उत्पाद बनाए जाते हैं जिससे लोग अपने लिए इस्तेमाल करते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

पैनलिस्ट वेटलैंड मैनेजमेंट बायोडायवर्सिटी एंड क्लाइमेट प्रोटेक्शन, इंडो-जर्मन बायोडायवर्सिटी प्रोग्राम, GIZ इंडिया के सीनियर एडवाइजर और टीम लीडर कृतिमान अवस्थी ने इंडो जर्मन बायोडायवर्सिटी प्रोग्राम के बारे में चर्चा की। कहा कि पंचायत स्तर पर भी लोगों को कैपेसिटी बिल्डिंग और ट्रेनिंग की जरूरत है। जो आपदा के खतरे को कम कर सकता है। लोगों की कैपेसिटी बिल्डिंग और ट्रेनिंग आपके इकोसिस्टम को बनाए रखने में सहयोग करेगा और जब भी आपदा आएगी तब लोग खुद को संभाल पाएंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के डिप्टी डायरेक्टर जनरल डॉ हरीश बहुगुणा ने लैंडस्लाइड और उसके होने वाले खतरों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक आपदा आती है तो यह सिर्फ एक तरफ नहीं होती है, यह पूरे इकोसिस्टम पर असर डालती है।इससे बहुत सारा अदृश्य नुकसान होता है। जो हमें दिखाई नहीं देता है। वह सिर्फ इकोसिस्टम के बदलाव के बाद ही पता चलता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

वही डॉक्टर शालिनी ध्यानी ने वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि हम देख सकते हैं की पहाड़ी क्षेत्रों में क्लाइमेट चेंज का असर बहुत तेजी से हो रहा है। यह इकोसिस्टम और बायोडायवर्सिटी के स्टडी करने के बाद ही पता चलता है कि इससे कितना नुकसान हो रहा है। हम देख सकते हैं कि पहाड़ों में कई तरह के जीव जंतु विलुप्त होने के कगार पर हैं। इसका एकमात्र कारण पर्यावरण में बदलाव ही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

दूसरे सत्र में राष्ट्रीय एवं वैश्विक जन स्वास्थ्य एमरजैंसी एंड डिजास्टर रिस्पांस को लेकर चर्चा की गई। इसमें लोगों ने आपदा के समय में स्वास्थ्य सेवा के इमरजेंसी सुविधाओं को कैसे बहाल करें। इस पर चर्चा की गई। इस पैनल डिस्कशन में मुख्य रूप से नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी , गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एवं रीजनल डायरेक्टर एशिया टाइम्स, ओस्लो, नोर्वे के फाउंडर मेंबर विनोद चंद्र मेनन, एचएनबी उत्तराखंड मेडिकल एजुकेशन यूनिवर्सिटी देहरादून के वाइस चांसलर हेमचंद, डॉ क्रिस ब्राउन डायरेक्टर, डिवीज़न ऑफ़ इमरजेंसी ऑपरेशन, ऑफिस ऑफ रेडीनेस एंड रिस्पांस यूएस, सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन, यूएसए के प्रोफेसर मेजर जनरल अतुल कोटवाल, आईडीएसपी, एनसीडीसी, एमओएचएफडब्ल्यू के ज्वाइंट डायरेक्टर डॉक्टर सौरभ गोयल आदि ने विचार रखे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

वहीं चार दिवसीय इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन टेक्निकल सेशन भी रखे गए हैं। इसके अंतर्गत स्पेस बेस्ड इनफॉरमेशन फॉर डिजास्टर मैनेजमेंट, बिल्डिंग रेसिलियंस ऑफ कम्युनिटीज थ्रू इकोसिस्टम बेस्ड अप्रोच, मरीन डिजास्टर मैनेजमेंट इनलैंड वॉटर रिसोर्सेस इंपैक्ट ओन एनवायरमेंट – बिल्डिंग इकोनामी फॉक्स जैसे मुद्दों पर मंथन किया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में मीडिया से बात करते हुए स्कूल आफ एनवायरमेंटल साइंस, स्पेशल सेंटर फॉर डिजास्टर रिसर्च, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी न्यू दिल्ली के प्रोफेसर पीके जोशी बताते हैं कि इस तरह के अंतरराष्ट्रीय आयोजन से सबसे पहले मुद्दे को गंभीरता से समझते हैं। वैश्विक स्तर पर कौन-कौन से इश्यूज इस संदर्भ में चल रहे हैं, उसकी जानकारी प्राप्त करते हैं। यहां पर जो डिस्कशन हो रहा है वह अंतरराष्ट्रीय स्तर का हो रहा है। यह सिर्फ भारत की समस्या नहीं है, यह पूरा ग्लोबल इशू है। जो हम यहां पर चर्चा कर रहे हैं।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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