अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस पर उत्तराखंड में श्रमिकों ने किए प्रदर्शन, दून में निकाली रैली, श्रम संहिताओं का किया विरोध

देहरादून में संयुक्त मई दिवस समारोह समिति उत्तराखंड के तत्वावधान में गांधी पार्क से रैली निकाली गई। शाम छह बजे शुरू हुई रैली गांधी पार्क से शुरू हो कर, राजपुर रोड़, घंटाघर, दर्शन लाल चौक, दून हॉस्पिटल चौक, तहसील चौक से वापस होते हुए दर्शन लाल चौक, घंटाघर, राजपुर रोड से होते हुए वापस गांधी पार्क में समाप्त हुई।
इस अवसर पर गांधी पार्ट में हुई सभा में सीटू के राज्य सचिव लेखराज ने कहा कि आज केंद्र सरकार ने भाजपा शासित प्रदेशों में श्रम कानूनों को लगभग समाप्त करने के कवायद शुरू कर दी है। केंद्र सरकार के की ओर से 44 श्रम कानूनों में से 29 प्रभावी श्रम कानून समाप्त कर उनके स्थानों पर चार श्रम संहिताएं बना दी गई हैं। जोकि पूर्ण तरीके से मालिकों व पूंजीपतियों के हितों के लिए है। ये श्रमिकों को गुलामी की और धकेलने क्या काम करती हैं। उन्होंने कहा श्रम कानून जोकि हमारे पूर्वजों द्वारा बड़े बलिदानों से व कुर्बानियां देकर हासिल किए गए थे, उन्हें श्रमिक वर्ग इस तरह से समाप्त नहीं होने देगा। वह पूरे देश के अंदर लामबंद होकर इस सरकार से लड़ेगा और संघर्ष करेगा।
इस अवसर पर एटक के प्रांतीय महामंत्री अशोक शर्मा ने कहा कि वर्तमान सरकार मजदूरों के सभी अधिकार समाप्त करने का काम कर रही है। वह सार्वजनिक संस्थानों को जिनमें ऑर्डनेंस फैक्ट्री, रेलवे, इंडियन एयरलाइंस, कोल इंडिया, बीएचईएल, पवनहंस, बैंक, बीमा, रक्षा आदि सभी क्षेत्रों को निजी हाथों में सौंप रही है। इससे बड़े पूंजीपति, देशी विदेशी बड़ी कंपनियों को इसका फायदा पहुंचाया जाएगा। उन्होंने मांग की है कि सरकार तत्काल अपनी निजीकरण की नीति वापस ले।
इस अवसर पर रक्षा क्षेत्र से जगदीश सिंह ने कहा के आयुध निर्माणी ओं का निजीकरण कर सरकार सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण संस्थानों को बेचने का काम कर रही है। अतः वर्कर्स के हितों को बुरी तरह से प्रभावित कर रही है। इसका वर्कर्स विरोध कर रहे हैं। उन्होंने रक्षा क्षेत्र के कर्मचारियों की समस्याओं को हल करने के लिए सरकार से मांग की।बैंक कर्मचारी एसोसिएशन के राज्य संयोजक एसएस रजवार ने बैंकों के निजीकरण पर सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा के जनता की गाढ़ी कमाई जब तक बैंक सरकारी हैं, तभी तक सुरक्षित है। इस पर यह आंदोलन आम जनता का आंदोलन बनना चाहिए।
इस अवसर पर किसान सभा के प्रांतीय अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि मजदूर और किसान एकता ही देश को बचा सकती है। किसानों के आंदोलन ने जो जीत हासिल की है, उससे मजदूरों की लड़ाई को बल मिलेगा। सरकार को मजदूर विरोधी नीतियां वापस लेनी चाहिए।
इस अवसर पर एटक के उपाध्यक्ष समर भंडारी, सीटू के जिला अध्यक्ष कृष्ण गुनियाल, उपाध्यक्ष भगवंत पयाल, कोषाध्यक्ष रविन्द्र नौडियाल, राम सिंह भण्डारी, मामचंद, दीपक शर्मा, रजनी गुलेरिया, सुनीता, बबिता, एसएफआई के प्रांतीय महामन्त्री हिमांशू चौहान, नितिन मलेठा, चाय बागान से चित्रा, चंपा, उषा, बैंक से आरके गैरोला, सीके जोशी, लक्ष्मी भट्ट, विशेष कुमार, धर्मानन्द भट्ट, एफआरआई से छबीलाल, मोहन सिंह, राजेश शर्मा, धर्मेंद्र, नरेंद्र प्रसाद डिमरी, दिनेश सिंह, विक्रम सिंह, गढ़वाल मंडल विकास निगम से राजेश रमोला, आशीष उनियाल, रोडवेज से डीके पाठक, आईएमए से रमेश राज, तिलक, गोपाल, सुरेंद्र, रवि तुषार, सलील, राकेश, सुरेश कुमार, डिफेंस से अशोक शर्मा, संजीव, विनय मित्तल, उमाशंकर, चेतना आंदोलन से शंकर गोपाल, किसान सभा के प्रांतीय अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह सजवाण, महामंत्री गंगाधर नौटियाल, महिला समिति की प्रांतीय उपाध्यक्ष इंदु नौडियाल, आशा आशा वर्कर यूनियन से शिवा दुबे, सुनीता चौहान, भोजन माता यूनियन से मोनिका, सुनीता, बबीता, पितांबर, अनिल उनियाल, अनिल, खुमान सिंह आदि शामिल थे।
इन स्थानों पर हुई हुए प्रदर्शन
देहरादून में सीटू से सम्बद्ध इंजीनियरिंग वर्कर्स यूनियन, जीबी स्प्रिंग रामपुर सहसपुर , टाल ब्रोस कर्मचारी यूनियन्स लांघा रोड, चाय बागान श्रमिक संघ रिच उड़िया बाग, ई-रिक्शा वर्क्स यूनियन सेलाकुई, संविदा श्रमिक संघ हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट हथियारी, हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट यमुना वैली, ऋषिकेश में कार्यरत आरपीएनएल के श्रमिक, मसूरी, डोईवाला आदि स्थानों पर श्रमिको ने सीटू का झंडा फहराकर जलूस और रैलियों का आयोजन किया। साथ ही सभाएं भी आयोजित कर शहीदो को श्रद्धांजलि अर्पित की।
श्रमिकों की मांगे
1. 29 श्रम कानूनों के स्थान पर लायी गयी चारो श्रम संहिताओं को रद्द करो, 12 घंटे काम करने के आदेश को रद्द करो।
2. एमएसपी पर कानून बनाया जाए। इलैक्ट्रिसिटी बिल 2020 वापस लिया जाए, श्रम कानूनों का सभी सरकारी व गैर सरकारी प्रतिष्ठानों में कड़ाई से पालन किया जाए बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी पर रोक लगायी जाये व गैस, पैट्रोल, डीजल के दामों में बेहताशा मूल्य वृद्धि को वापस लिया जाए।
3. बैंक, बीमा, रक्षा, पोस्टल, रेलवे सहित अन्य सार्वजनिक संस्थानों का निगमीकरण/निजीकरण पर रोक लगाई जाए। ई.डी.एस.ए. (आवश्यक प्रतिरक्षा सेवा अधिनियम) को समाप्त करो आयुध निर्माणियों का निगमीकरण रद्द कर पूर्व व्यवस्था बहाल करो DRDO, MES, NAV, आउटसोसिंग तथा GOCO मॉडल के नाम पर निजीकरण बंद किया जाए। आयुध निर्माणियों के कामगारों के मौलिक व जनतांत्रिक अधिकार बहाल करो व DRDO, आयुध निर्माणियों के स्कूलों, चिकित्सालयों का संचालन प्रबंधन अपने हाथ में लें व पर्याप्त बजट उपलब्ध कराया जाये। आयुध निर्माणी देहरादून से निकाले गए 100 ठेका श्रमिकों को तत्काल वापस कार्य पर रखा जाए।
4. सभी राज्यव निगमों के कर्मचारियों की नई पेंशन स्कीम बंदकर पुरानी पेंशन स्कीम बहाल की जाए।
5. भवन एवं सन्निर्माण कर्मकार बोर्ड में ट्रेड यूनियनों के प्रतिनिधियों को रखा जाए तथा ठेका प्रथा, आउटसोर्सिंग बंदकर नियमित रोजगार प्रदान किया जाए।
6. उत्तराखण्ड राज्य में विभिन्न विभागों में रिक्त पड़े लगभग 50000 हजार पदों पर नियमित नियुक्तियां की जाए।
7. आंगनवाड़ी व भोजन माताओं और आशा वर्करों का राज्य सरकार कर्मचारियों के सामान मानदेय घोषित किया जाये। हाल ही में मुख्यमंत्री की आशा वर्कर्स व आंगनवाड़ी कार्यकत्री सेविकाओं को दस हजार रू० प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की गयी थी उस शासनादेश को तत्काल जारी किया जाए।
8. निजी स्कूलों के कर्मचारियों का शोषण बंद करो, लॉकडाउन में हुई बेतन कटौती का भुगतान शीघ्र किया जाए।
9. लंबे समय से सेवारत उपनल कर्मचारियों को नियमित किया जाए।
10. उत्तराखण्ड पेयजल निगम व जल संस्थान का राजकीयकरण व एककोरण किया जाए। सहित सभी देयों का भुगतान किया जाए।
11. उत्तराखण्ड परिवहन विभाग को आर्थिक पैकज दिया जाए व परिवहन निगम से सेवानिवृत्त हुये कर्मचारियों को तत्काल ग्रेच्युटी सहित सभी देयों का भुगतान किया जाए।
12. श्रम विभाग में मजदूरों की सुनवाई समयबद्ध तरीके से की जाए, श्रम विभाग में रिक्त पदों पर तत्काल नियमित भर्ती की जाये।
13. होटल व पर्यटन व्यवसाय से जुड़े उन्हीं श्रमिकों को राज्य सहायता आर्थिक सहायता दी जा रही है जो प्रतिष्ठान पर्यटन विभाग में पंजीकृत हैं। किन्तु बड़ी संख्या में वे श्रमिक हैं, जो गैर पंजीकृत संस्थान में हैं। अतः सभी श्रमिकों को भी आर्थिक सहायता दी जाए जो गैर पंजीकृत संस्थानों में कार्यरत हैं। एफआरआई भर्ती घोटालों की जांच सीबीआई से कराई जाए।
14. चाय बागान के मजदूरों को सेवानिवृत्ती पर ग्रेच्युटि व वर्षों से पीढ़ियों से कार्य कर रहे श्रमिकों को निवास स्थान भूमि पर मालिकान हक दिया जाए।
15. मेडिकल सेल्स रिप्रजेंटेटिव को सीडयुल अनुसूची एल्पाइमेंट किया जाए व सरकारी अस्पतालों में कार्य करने से नरोका जाए।
16. ऋषिकेश से कर्णप्रयाग निर्माणाधीन नई रेलवे लाइन में कार्यरत कम्पनियों द्वारा श्रमिकों का शोषण किया जा रहा है। इन कम्पनियों में श्रम कानूनों को कड़ाई से लागू किया जाए।
इसलिए मनाया जाता है मई दिवस
प्रत्येक वर्ष दुनिया भर के कई हिस्सों में 1 मई को मई दिवस अथवा ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस जनसाधारण को नए समाज के निर्माण में श्रमिकों के योगदान और ऐतिहासिक श्रम आंदोलन का स्मरण कराता है। 1 मई, 1886 को शिकागो में हड़ताल का रूप सबसे आक्रामक था। शिकागो उस समय जुझारू वामपंथी मज़दूर आंदोलनों का केंद्र बन गया था। 1 मई को शिकागो में मज़दूरों का एक विशाल सैलाब उमड़ा और संगठित मज़दूर आंदोलन के आह्वान पर शहर के सारे औज़ार बंद कर दिये गए और मशीनें रुक गईं। शिकागो प्रशासन एवं मालिक चुप नहीं बैठे और मज़दूरों को गिरफ्तारी शुरू हो गई। जिसके पश्चात् पुलिस और मज़दूरों के बीच हिंसक झड़प शुरू हो गई, जिसमें 4 नागरिकों और 7 पुलिस अधिकारियों की मौत हो गई। कई आंदोलनकारी श्रमिकों के अधिकारों के उल्लंघन का विरोध कर रहे थे। काम के घंटे कम करने और अधिक मज़दूरी की मांग कर रहे थे। 19वीं सदी का दूसरा और तीसरा दशक काम के घंटे कम करने के लिये हड़तालों से भरा हुआ है। इसी दौर में कई औद्योगिक केंद्रों ने तो एक दिन में काम के घंटे 10 करने की मांग भी निश्चित कर दी थी। इससे ‘मई दिवस’ का जन्म हुआ। अमेरिका में वर्ष 1884 में काम के घंटे आठ घंटे करने को लेकर आंदोलन से ही शुरू हुआ था। उन्हें गिरफ्तार किया गया और आजीवन कारावास अथवा मौत की सजा दी गई। अब इस दिन को कर्मचारी, श्रमिक अपने अधिकार की लड़ाई के लिए मनाते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।