क्या 20 लाख कर्मचारियों का खून निचोड़ेगी कांग्रेस सरकार, कर्मचारी संगठनों का विरोध
सड़क पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी पूंजीपतियों के खिलाफ मोर्चा संभाले रहते हैं। गरीब और कर्मचारी तबके की वह बात करते हैं, लेकिन धरातल पर तो इसके उलट होने जा रहा है। इस खबर से कांग्रेसियों को पीढ़ा हो सकती है। वहीं, हमारा मकसद सरकारों से सवाल उठाना है। चाहे केंद्र की सरकारें हों या फिर राज्यों की। कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है। वहां की राज्य सरकार ऐसा कदम उठाने जा रही है, जिसके कर्मचारियों का खून निचौड़ा जाएगा। कारण ये है कि कर्नाटक में निजी क्षेत्र में आरक्षण के सरकारी फैसले की वापसी के बाद अब ‘आईटी क्षेत्र के हब’ माने जाने वाले राज्य में प्रतिदिन 14 घंटे काम करने के ‘कथित प्रस्ताव’ कांग्रेस सरकार की ओर से तैयार किया गया है। रिपोर्टों के अनुसार, राज्य सरकार तकनीशियनों की कार्य अवधि को बढ़ाकर 14 घंटे प्रतिदिन और 70 घंटे प्रति सप्ताह करने के प्रस्ताव पर विचार कर रही है । इस प्रस्ताव ने नया विवाद खड़ा कर दिया है। दरअसल, कर्नाटक सरकार एक योजना पर विचार कर रही है, जिसके तहत आईटी कर्मचारियों को अनिवार्य 14 घंटे की ड्यूटी करनी पड़ सकती है। यदि सरकार किसी भी दल की हो, यदि कर्मचारी विरोधी काम करेगी तो उसे विरोध झेलना ही पड़ेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
निजी जीवन हो जाएगा खत्म
24 घंटे के भीतर एक कर्मचारी की काम करने की क्षमता सीमित होती है। वह ज्यादा से ज्यादा आठ सा नौ घंटे काम कर सकता है। यदि उसे हर दिन 14 घंटे काम में झोंका गया तो कर्मचारी का खून निचूड़ना तय है। उसे आठ घंटे सोने के लिए भी चाहिए। ऐसे में इस तरह के कर्मचारियो का निजी जीवन भी खत्म हो जाएगा। अभी तक केंद्र सरकार की नीतियों का विरोध करने वाली कांग्रेस के आला नेताओं को सोचना होगा कि क्या ऐसा प्रस्ताव कर्मचारी हित में है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
यूनियन ने किया विरोध
आईटी/आईटीई के कर्मचारियों की यूनियन (किटू) ने सिद्दरमैया के नेतृत्व वाली सरकार से आईटी/आईटीई/बीपीओ सेक्टर में काम के और चार घंटे बढ़ाने के विधेयक (संशोधन) पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। कर्मचारी यूनियन की ओर से जारी रिलीज में बताया गया है कि इस संबंध में ‘कर्नाटक शॉप्स एंड कॉमर्शियल इस्टेबलिशमेंट एक्ट’ में संशोधन का प्रस्ताव है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस प्रस्ताव पर हाल ही में एक बैठक में चर्चा की गई। इसमें श्रम विभाग की ओर से उद्योग जगत के विभिन्न पक्षकारों को बुलाया गया था। श्रम मंत्री संतोष लाड, श्रम विभाग के अधिकारियों के साथ इस बैठक में आईटी/बीटी मंत्रालय के लोग शामिल हुए। इसमें यूनियन के प्रतिनिधियों ने भी हिस्सा लिया था। यूनियन ने बहुत सख्ती से इस प्रस्ताव का विरोध किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
यूनियन का तर्क
यूनियन का कहना है कि 24 घंटे में से 14 घंटे काम करने के फैसले से कर्मचारियों के निजी जीवन जीने के मूल अधिकार का हनन होगा। इसके बाद श्रम मंत्री ने कोई फैसला लेने से पहले इस विषय में एक दौर की वार्ता की बात कही थी। यूनियन का कहना है कि प्रस्तावित नया विधेयक ‘कर्नाटक शाप्स एंड कमर्शियल इस्टेबलिशमेंट (अमेंडमेंट) बिल-2024’ हर दिन 14 घंटे के कामकाज को सामान्य रूप से स्थापित करना है। मौजूदा कानून के तहत ओवरटाइम सहित प्रतिदिन दस घंटे से अधिक काम नहीं कराया जा सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सरकार के फैसले का विरोध
इस संशोधन के जरिये कंपनियों को तीन शिफ्ट की प्रणाली के बजाय दो शिफ्ट का सिस्टम बनाने का अवसर मिल जाएगा। ऐसे में एक तिहाई लोगों को नौकरी से बाहर किया जा सकता है। यदि ऐसा कानून बनता है और उस पर अमल होता है। देशभर के आईटी सेक्टर में भी यदि ऐसा ही नियम लागू हो गया तो एक तिहाई लोगों की नौकरियों पर गाज गिरेगी। क्योंकि तीन शिफ्ट में तीन कर्मचारियों से काम करने की बजाय दो ही शिफ्ट में काम चलाया जाएगा। भारत में भारत में 5.4 मिलीयन लोग यानि 54 लाख लोग आईटी सेक्टर में नौकरी करते हैं। ऐसे में इसमें से 25 लाख लोगों को नौकरी जानी तय है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कर्नाटक में 20 लाख कर्मचारियों के लिए चुनौती
ध्यान रहे कि नियमित 14 घंटे काम करने का मतलब अपनी आधी से ज्यादा जिंदगी दफ्तर के कामकाज में खपा देना है। इससे पीछे मकसद एक-तिहाई कार्यबल को कामकाज से बेदखल करना हो सकता है। यूनियन ने सरकार से इस पर पुनर्विचार करने को कहा। साथ ही चेतावनी देते हुए कहा कि संशोधन को मानने की स्थितियों में यह कर्नाटक में आईटी/आईटीई सेक्टर के 20 लाख कर्मचारियों के लिए खुली चुनौती होगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
गुलामी के खिलाफ उठाएं आवाज
किटू ने आईटी/आईटीई सेक्टर के सभी कर्मचारियों को एकजुट होकर इस गुलामी के खिलाफ आवाज उठाने के लिए कहा है। किटू ने इस बैठक में आईटी कर्मचारियों के स्वास्थ्य पर इसका बुरा प्रभाव पड़ने का पूरा लेखा-जोखा दिया है। यूनियन ने आरोप लगाया कि कर्नाटक सरकार अपने कॉरपोरेट बॉसों को खुश करने के लिए हरेक व्यक्ति के जीने के अधिकार समेत मूलभूत अधिकारों की अवहेलना कर रही है। इस संशोधन से जाहिर होता है कि कर्नाटक सरकार कर्मचारियों को तरह मानव मानने को तैयार ही नहीं है, जिन्हें जीवित रहने के लिए निजी और सामाजिक जीवन की आवश्यकता है। वह उन्हें सिर्फ मशीन मानती है, जो कॉरपोरेट के लिए मुनाफा कमाएं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
यूनियन ने नकारात्मक प्रभाव का दिया हवाला
यूनियन ने यह भी कहा कि यह संशोधन ऐसे समय में लाया जा रहा है जब दुनिया ने यह मानना शुरू कर दिया है कि काम के अधिकाधिक घंटों से उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बहुत से देश अब कर्मचारियों को ‘राइट टु डिस्कनेक्ट’ को उनके मूल अधिकार के रूप में अपना रहे हैं। संघ ने कहा कि प्रस्तावित नया विधेयक ‘कर्नाटक दुकान और वाणिज्यिक प्रतिष्ठान (संशोधन) विधेयक 2024’ 14 घंटे के कार्य दिवस को सामान्य बनाने का प्रयास करता है, जबकि मौजूदा अधिनियम केवल अधिकतम 10 घंटे प्रति दिन काम की अनुमति देता है, जिसमें ओवरटाइम भी शामिल है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
संघ ने कहा कि इस संशोधन से पता चलता है कि कर्नाटक सरकार कर्मचारियों को इंसान के रूप में नहीं देख रही है, जिन्हें जीवित रहने के लिए व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन की आवश्यकता होती है। इसके बजाय यह उन्हें केवल ‘कॉरपोरेट्स’ के लाभ को बढ़ाने के लिए एक मशीनरी के रूप में देखती है, जिनकी वह सेवा करती है। ध्यान रहे कि इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति ने पिछले साल अक्टूबर में लोगों को हर हफ्ते 70 घंटे काम करने का सुझाव दिया था। जिसे लेकर भी तब काफी बवाल हुआ था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
विदेशों से अभी भी सबसे ज्यादा काम के घंटे भारत में
एक तरफ कांग्रेस रोजगार की मांग को लेकर मोदी सरकार को घेरती है। साथ ही संविधान की लाल किताब पकड़कर बैठ जाती है। वहीं, खुद कर्नाटक में संविधान को कुचलने का काम किया जा रहा है। भारत में पहले से ही सप्ताह में 48 घंटे काम कराया जा रहा है। आस्ट्रेलिया में सप्ताह में 38 घंटे काम कराया जाता है। दक्षिण कोरिया में 40 घंटे, फ्रांस में 35 घंटे, अमेरिका और रूस में 40 घंटे सप्ताह में काम कराया जाता है। भारत में 48 घंटे काम के मिले हैं, तो ये दुनिया भर में लंबे संघर्ष का नतीजा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सेहत पर असर
KITU का दावा है कि इस फैसले का असर लोगों की सेहत पर भी पड़ेगा। KITU ने KCCI की रिपोर्ट के हवाले से आंकड़े भी बताए हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक, आईटी सेक्टर के 45 फीसदी एम्पलाई डिप्रेशन जैसे मेंटल हेल्थ इश्यू से जूझ रहे हैं। 55 फीसदी कर्मचारी फिजिकल हेल्थ इंपेक्ट से जूझ रहे हैं। ऐसे हालात में वर्किंग के घंटे बढ़ाने से कर्मचारियों की सेहत पर और बुरा असर पड़ेगा। KITU ने WHO-ILO की स्टडी का हवाला भी दिया है, जिसमें कहा गया है कि काम करने के घंटे पड़ने से स्ट्रोक से मौत होने का खतरा 35 परसेंट तक बढ़ सकता है। हार्ट डिसीज से मौत का खतरा 17 परसेंट तक बढ़ सकता है। यही वजह है कि KITU ने इस फैसले को एग्जीक्यूट करने से पहले सरकार से इस बारे में दोबारा सोचने की अपील की है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
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