किसी शहर या गांव के नाम के अंत में क्यों होता है- पुर, आबाद या गढ़, देहरादून में क्यों है- वाला, जानिए कहानी
भारत के हर राज्य में कई जिले हैं और जिलों में कई कस्बे और गांव हैं। इनमें कई शहरों, कस्बों या फिर गांव के नामों के अंत में ऐसे कामन शब्द होते हैं, जो दूसरे राज्यों में भी देखने को मिल जाएंगे। ऐसे शब्दों में ज्यादातर प्रचलित होने वाले शब्द पुर, आबाद या गढ़ शब्द हैं। हर जिले का अपना इतिहास है। संस्कृति और परंपरा है। हर गांव या शहर की पहचान उसके नाम से होती है। पुर शब्द में हम देखते हैं रायपुर, रामपुर, राजपुर, शाजापुर, नागपुर, कानपुर, सहारनपुर, जयपुर, उदयपर आदि। इसी तरह बाद शब्द के मुरादाबाद, फरीदाबाद, गाजियाबाद सहित ढेरों उदाहरण मिल जाएंगे। यदि गढ़ शब्द वाले शहरों को देखेंगे तो अलीगढ़, चितौड़गढ़ सहित कई गांव और शहरों के नाम मिल जाएंगे। हम यहां इस खबर में ये ही बताने का प्रयास कर रहे हैं कि आकिरकार इस तरह के नामकरण क्यों पड़े। यही नहीं उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में तो गावों के नाम के अंत में वाला लगाया गया है। इसके पीछे भी सिर्फ अंदाजा ही लगाया जाता है, जो शायद सटीक बैठता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पुर शब्द का मतलब
वजह जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि पुर का मतलब क्या है। शहरों के नाम से पीछे पुर लगाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। पर कोई भी पुर का मतलब नहीं जानता है। असल में पुर का मतलब होता है शहर या फिर किला। आपने अगर ध्यान दिया हो, तो जिन शहरों के नाम के पीछे पुर लगा होता है, उस जगह या फिर उसके आसपास किले जरूर होते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
वेदों से आया ‘पुर’ शब्द, जानिए इसका महत्व
रायपुर, सहारनपुर, कानपुर, गोरखपुर, नागपुर जैसे तमाम अन्य भारतीय शहरों का नाम पुर के साथ जुड़ा हुआ है। दरअसल, ‘पुर’ शब्द वेदों से आया है। ऋगवेद में पुर या पुरा का कई बार जिक्र किया गया है। इसका मतलब शहर या किला होता है। ये संस्कृत में शहर के लिए सबसे पुराना शब्द है। आजकल पुर शब्द जहां शहरों के साथ जुड़ा है, वहीं पुरा को मोहल्ले के नामों से जोड़ दिया जाता है। इतिहासकारों के मुताबिक, भारतीय शहरों के नाम समय-समय पर बदलते रहे हैं और पुर शब्द का प्रभाव अरबी भाषा में भी नजर आया। यानी सिर्फ वेदों में नहीं, बल्कि अरबी भाषा में भी इस शब्द का महत्व मौजूद है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
प्राचीन संस्कृत शब्द है पुर
बता दें कि पुर एक प्राचीन संस्कृत शब्द है, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में भी किया गया है। यहां तक की पुराने समय में कोई भी राजा अपने राज्य के नाम के पीछे पुर जरूर लगाता था। शायद इसी वजह से राजस्थान के राजा जयसिंह ने भी जयपुर के पीछे पुर लगाया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इन देशों में भी होता है पुर का इस्तेमाल
भारत में तो शहरों या गांवों के नाम के पीछे पुर का इस्तेमाल होना आम बात है। वहीं, दुनिया के अन्य देशों में भी यह परंपरा सालों से चली आ रही है। वो है अफगानिस्तान और ईरान। कुछ लोग मानते हैं कि पुर अरबी भाषा का शब्द है। शायद इसी वजह से अफगानिस्तान और ईरान के शहरों के नाम के पीछे पुर लगाया जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
महाभारत काल में भी हुआ पुर का इस्तेमाल
शहरों के नामों के पीछे पुर लगाने की परंपरा भले ही अनोखी हो, लेकिन यह सालों से चली आ रही है। महाभारत काल में हस्तिनापुर के लिए पुर शब्द का इस्तेमाल किया गया था। समय भले ही बीत गया हो, लेकिन इस परंपरा का पालन आज भी हो रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
‘आबाद’ शब्द का प्रयोग
पुर के अलावा जो शब्द भारत व कई अन्य एशियाई शहरों के नामों में देखा गया वो है ‘आबाद’। पुर के अलावा ‘आबाद’ शब्द का भी काफी इस्तेमाल किया जाता है। उदाहरण के लिए हैदराबाद, अहमदाबाद, फैजाबाद, जलालाबाद हैं। आबाद शब्द एक फारसी शब्द है। फारसी में ‘आब’ का मतलब पानी होता है। इस पूरे शब्द का अर्थ है कोई भी गांव, शहर या प्रांत जहां पर फसल हो सके या वो जगह रहने योग्य है। हैदराबाद, अहमदाबाद, फैजाबाद जैसे भारत के तमाम शहर हों या पाकिस्तान में इस्लामाबाद और बांग्लादेश में जलालाबाद जैसे शहर हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इतिहासकारों के मुताबिक, मुगलकाल के दौरान जब किसी शहर या जगह का नाम रखना होता था, तो वहां से संबंधित हस्ती (आमतौर पर राजा) के नाम के साथ आबाद जोड़ दिया जाता था। इससे न सिर्फ वहां पर मुगल सल्तनत की छाप छोड़ी जाती थी, बल्कि शहर के लोगों को पहचान भी देने का भी प्रयास होता था। जैसे फिरोजाबाद का नाम फिरोज शाह के नाम से जोड़ा गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
गढ़ का अर्थ
इसके अलावा गढ़ शब्द का इस्तेमाल भी शहर, कस्बों या गांव के नाम के अंत में किया जाता है। गढ़ शब्द से ज्यादातर लोग वाकिफ हैं कि ये किले से संबंधित है। इसके पीछे भी एक वजह हैं। दरअसल भारतीय इतिहास में राजपूत हों या मुगल शासक। उन्होंने कई राज्यों में अपने किले स्थापित किए हैं। इसके जरिये वो न सिर्फ अपने रहने की जगह स्थापित करते थे, बल्कि ताकत को दिखाने का भी ये एक जरिया माना जाता था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इसी तर्ज पर शहरों को भी सालों साल बदलते रूप के साथ नए-नए नाम मिले और गढ़ भी आबाद शब्द की तरह तमाम लोगों के नाम या उनके धर्म, समुदाय के साथ जुड़ता चला गया। जैसे अलीगढ़। इस शहर का नाम सालों तक ‘कोल’ था। यहां राजपूत आए। फिर मुगल राजा पहुंचे। इसके बाद जाट राजा सूरजमल ने यहां के किले पर कब्जा जमाया और इसका नाम रामगढ़ रखा, लेकिन फिर नजफ खान ने इस अहम किले पर कब्जा करके यहां का नाम अलीगढ़ रख दिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इसलिए लगाते हैं गढ़
गढ़ शब्द से साफ अंदाजा लगता है कि इस जगह का संबंध किसी किले या गढ़ से होगा। हमारे देश में गढ़ और किलों से जुड़ा काफी लंबा इतिहास है और उस गढ़ की वजह से भी शहर के नाम के पीछे गढ़ लगा दिया जाता है। इन शहरों के इतिहास में किसी गढ़ या किले का जरूर जिक्र होगा। ऐसे में इस नाम के पीछे गढ़ लगाया जाता है। जैसे- चितौड़गढ़ और अलीगढ़ के उदाहण हैं। अलीगढ़ और चितोड़गढ़ दोनों के इतिहास में गढ़ काफी अहम है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
देहरादून में वाला शब्द ज्यादा प्रचलित
उत्तराखंड की राजदानी देहरादून में शहर के अलावा गांव और पुरानी कालोनियों की पहचान उनके नाम के साथ जुड़े ‘वाला’ शब्द से होती है। इसकी प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है कि गांव और कालोनियों के नाम पर यह ‘वाला’ शब्द क्यों जुड़ा। माना जाता है कि संबंधित स्थान की विशेषता के अलावा महत्ता और स्थानीय संस्कृति के अनुसार ही यह शब्द जोड़ा गया होगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इसलिए जुड़ा वाला शब्द
जानकारों के अनुसार पुराने समय में शायद किसी गांव, कस्बे या कालोनी की पहचान ही उसके नाम के साथ जुड़े पहले शब्द से होती रही होगी। इसलिए कालांतर में लोग संबंधित इलाके के नाम के साथ ‘वाला’ जोड़कर पुकारने लगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
150 गांव और कालोनियों में ‘वाला’
देहरादून में धीरे-धीरे यही नाम लोगों की जुबान पर चढ़ गया। यही वजह है कि दून शहर व जिले के लगभग 150 गांव और कालोनियों के नाम में ‘वाला’ शब्द जुड़ा हुआ है। यहां हम कुछ वाला शब्द वाले मोहल्ले, गावों और कालोनियों के बारे में बताएंगे, जिससे अंदाजा हो सके कि उनके नाम के अंत में वाला क्यों लगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
डोईवाला: कहा जाता है कि एक जमाने में यह इलाका लकड़ी से बनी करछुल अथवा डोइयों के लिए प्रसिद्ध था। यहां दूरदराज के लोग डोईयों की खरीदारी करने आते थे। माना जाता है कि इसीलिए इस इलाके का डोईवाला नाम पड़ा।
चक तुनवाला: यहां कभी तुन के वृक्ष बहुत अधिक संख्या में पाए जाते थे। इसलिए लोगों ने इस जगह को तुनवाला कहना शुरू कर दिया। आज भी यहां तुन के वृक्ष देख सकते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ब्राह्मणवाला: माजरा से पहले आइटीआइ के ठीक सामने वाले मार्ग पर बसे ब्राह्मणवाला में एक समय अनेकों ब्राह्मण (पुरोहित) परिवार रहा करते थे। इन ब्राह्मणों को लोग पूजा-अनुष्ठान के लिए बुलाया करते थे। कहा जाता है कि इसी वजह से इस इलाके को ब्राह्मणवाला कहा गया।
रांगड़वाला: रांगड़ एक प्रकार का चावल होता है, जो कभी पंजाब में उगाया जाता था। इस क्षेत्र में पहले इसी चावल की खेती बहुतायत में होती थी। इसलिए इसे रांगड़वाला कहा जाने लगा।
बड़ोवाला: एक वक्त इस क्षेत्र में बड़ (वट) के वृक्ष बहुतायत में पाए जाते थे। इसी कारण इस इलाके का नाम बड़ोवाला पड़ा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
आमवाला: कभी यहां बड़ी तादाद में आम के बागीचे हुआ करते थे। सो, यह क्षेत्र आमवाला कहलाया।
अनारवाला: अनार के पेड़ों की बहुलता के कारण इस क्षेत्र को अनारवाला कहा गया।
जामुनवाला: यह इलाका कभी जामुन के लिए प्रसिद्ध रहा है। इसी के चलते जामुनवाला नाम प्रचलन में आया।
डोभालवाला: शहर से लगे इस इलाके में डोभाल जाति के लोगों का बाहुल्य होने कारण इसका डोभालवाला नाम पड़ा।
मियांवाला: मियां जाति के परिवारों की अधिकता के कारण इस क्षेत्र को मियांवाला कहा जाने लगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कुआंवाला: इस इलाके में कभी काफी संख्या में कुएं हुआ करते थे। जिस कारण लोग इसे कुआंवाला कहने लगे।
निंबूवाला: नींबू के पेड़ों की अधिकता के कारण इसका निंबूवाला नाम पड़ा।
आदूवाला: इस इलाके में कभी आदू (अदरक) की खेती बहुतायत में होती थी।
मक्कावाला: यहां मक्का की खेती बहुतायत में होती थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
देहरादून में ढेरों हैं वाला नाम से गांव और मोहल्ले
भानियावाला, तिमली मानसिंह वाला, गुमानीवाला,बल्लीवाला, नथुआवाला, भाऊवाला, सालावाला, बंजारावाला, पित्थुवाला, मेंहुवाला, नीलवाला, भारूवाला ग्रांट, हरभजवाला, मोरूवाला, बनियावाला, सभावाला, हरबंस वाला, डालनवाला, हर्रावाला, मानसिंह वाला, डांडा खुदानेवाला, मंगलूवाला, डांडा नूरीवाला, ब्रह्मावाला। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
किद्दूवाला, सुंदरवाला, लच्छीवाला, रायवाला, खैरी मानसिंह वाला, धर्मावाला, बुल्लावाला, रांझावाला, मातावाला बाग, बदामावाला, बैरागीवाला, जमोलीवाला, मारखम डैशवाला, कन्हारवाला, अठूरवाला, चक जोगीवाला, सेमलवाला, सारंदर वाला, केशरवाला, बांडावाला, अधोईवाला, लोहारवाला, तुंतोवाला। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
बकरालवाला, चुक्खुवाला, धामावाला, बालूवाला, जमनीवाला, फांदूवाला, विजयपुर गोपीवाला, खेड़ा गोपीवाला, नागल बुलंदावाला, होरावाला, मिस्सरवाला, नालीवाला, बाढ़वाला (बाड़वाला), नूनावाला, राजावाला, मसंदावाला, केदारावाला, गजियावाला। सलोनीवाला, रैणीवाला, भट्टोंवाला, माधोवाला, भोजावाला, बरोटीवाला, बुलाकीवाला, पीरवाला, झबरावाला, पेलीवाला, लक्खनवाला नेवट, जट्टोवाला, जस्सोवाला, ढालवाला, कलुआवाला, रामसावाला, हरियावाला, सलियावाला, मांडूवाला, भानवाला, केशोवाला। डौंकवाला, बाजावाला, पालावाला, धर्तावाला, अंबीवाला, मोथरोवाला, भंडारीवाला, मोहब्बेवाला, कुड़कावाला, सुद्धोवाला, कैंचीवाला, राजावाला, पौडवाला, सिंहनीवाला, पेलियो नाथूवाला, पाववाला, छिद्दरवाला, कालूवाला, भीमावाला आदि। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
और भी हैं कई प्रकार के हैं नाम और उनके अर्थ
नगर- ये किसी शहर के लिए संस्कृत शब्द है। जैसे- श्रीनगर, गांधीनगर, रामनगर।
कोट/कोड- इसका अर्थ किला है। जैसे- राजकोट, पठानकोट, कोजीकोड।
पत/प्रस्थ- इसका अर्थ जमीन है। जैसे- सोनीपत, पानीपत, इंद्रप्रस्थ।
नाथ- हिंदू भगवान या धाम। जैसे- अमरनाथ, बद्रीनाथ, केदारनाथ।
एश्वर/इश्वर/एश्वरम- संस्कृत में भगवान। जैसे- रामेश्वरम, भुवनेश्वर, बागेश्वर।
मेर- पहाड़ या ऊंचा स्थान। जैसे- अजमेर, बाड़मेर, जैसलमेर।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।