त्रिवेंद्र रावत का सटीक निशाना: पहाड़ी जनपदों में विकास के लिए दूर दृष्टि और प्रशासनिक चुनौती- भूपत सिंह बिष्ट
उत्तराखंड में तीसरी कमिश्नरी गैरसैण में अब 13 विधायक सत्ता संतुलन में प्रभावी भूमिका निभाने वाले हैं। सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की इस चाल का स्वागत करने के अलावा अब विपक्ष के पास कोई चारा शेष नहीं बचा है।

उत्तराखंड में तीसरी कमिश्नरी गैरसैण में अब 13 विधायक सत्ता संतुलन में प्रभावी भूमिका निभाने वाले हैं। सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की इस चाल का स्वागत करने के अलावा अब विपक्ष के पास कोई चारा शेष नहीं बचा है। पिछली बार गैरसेण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाकर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उत्तराखंड के विपक्षी नेताओं को सांप सूंघाया था।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने एक बार फिर सोये हुए विपक्ष को जोर का झटका देते हुए गैरसेण में कमिश्नरी की घोषणा कर सबको हतप्रद किया है। पहाड़ी प्रदेश में यह तीसरी कमिश्नरी होगी और अब सूबे के विकासपरक अधिकारियों को अपनी योग्यता साबित करने के लिए आगे आना होगा।
यूकेडी, कांग्रेस, आप जैसी पार्टी के बड़बोले नेताओं के पास चुनावी साल में गैरसैण कमिश्नरी का कोई जबाव नहीं है। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बड़ी कुशलता से गैरसेण कार्ड का इस्तेमाल कर विपक्षी खेमों को धराशायी कर दिया है। सत्ता का केंद्र पहाड़ तक ले जाने के लिए यह दूरगामी कदम साबित हो सकता है। यदि गैरसैण कमिश्नर देहरादून सचिवालय तक सीमित ना हो जाये।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने साफ कर दिया है कि गैरसेण को राजधानी के लिए प्रभावी और मुक्कमल तौर पर विकसित करने के लिए जमीन पर काम करना है। हवाई बातें करने से गैरसेण का विकास नहीं होगा। राजधानी परिसर बनाने के लिए टाउनप्लानर और कमीश्नरी मुख्यालय मील के पत्थर साबित होने वाले हैं। गैरसेण विधान सभा में बजट सत्र का आयोजन रस्मी ना हो इसलिए ठोस योजना के साथ त्रिवेंद्र रावत आगे आये हैं। अब हरीश रावत को भाजपा का पहाड़ विरोधी साबित करना मुश्किल पड़ेगा।
अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही व्यवस्था के तहद गढ़वाल और कुमायूं कमिश्नरी के इर्द गिर्द ही विकास का पहिया घूमता रहा है। गढ़वाल कमिश्नरी का मुख्यालय भले ही पौड़ी में बनाया गया, लेकिन कमिश्नरी के अधिकारी बहाने बनाकर देहरादून में डटे रहे और फलस्वरूप विकास कभी पहाड़ी जनपदों को नसीब नहीं हो पाया और पलायन की पीड़ा पहाड़ियों को जन्म से झेलना पड़ता है।
उधर कुमायूं कमिश्नरी का मुख्यालय नैनीताल होने के बावजूद आशातीत विकास सटे हुए जनपद अल्मोड़ा के दूर दराज इलाकों तक नहीं पहुंचा। बागेश्वर और पिथौरागढ़ जनपदों को नैनीताल से दूरी के कारण यहां के अधिकारियों ने अपनी पोस्टिंग को सजा के रूप में लिया है। कमिश्नरी का सारा ध्यान मैदानी क्षेत्रों तक रहने से आर्थिक विकास के आंकड़े पूरी स्थ्तिि को बयां कर देते हैं।
अभी तक गढ़वाल और कुमायूं दोनों कमिश्नरी में क्रेडिट – डिपोजिट अनुपात में पहाड़ के जनपदों को देहरादून, हरिद्वार, उधम सिंह नगर और नैनीताल की तुलना में पीछे रहना पड़ा है। बैंकों ने सारी ऋण व्यवस्था इन्हीं जनपदों के इर्द गिर्द रखी हैं। सो नए प्रांत में भी पहाड़ी जनपदों में शिक्षा, चिकित्सा, सड़क, बिजली, पानी, उद्योग आदि मानकों की तुलना में मैदानी जनपदों से पीछे चल रहे हैं।
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने तीसरी कमिश्नरी बनाकर इतिहास रच दिया है और ब्यूरोक्रेट को भी विकास के लिए सीधे जिम्मेदार बना दिया है। अब पूरे प्रदेश में विकास के मानक तीन मंडलों के बीच स्वस्थ प्रतियोगिता के रूप में तुलना किये जा सकेंगे – किस कमिश्नर ने जमीन पर विकास को उतारा है और कौन बस देहरादून और नैनीताल में गाड़ी और बंगलों तक सीमित रह गए।
गैरसैण कमिश्नरी में रूद्रप्रयाग, चमोली, अल्मोड़ा और बागेश्वर जनपदों को शामिल करने की बात है। ज्यादा बेहतर होगा कि इस में पिथौरागढ़ को भी शामिल कर लिया जाये। इस हिसाब से गैरसैण कमिश्नरी पूरी तरह से पहाड़ी जनपदों का मंडल होगा और यहां विकास के लिए विशेष बजट आयोजन और योजनायें पलायन रोकने और आदर्श विकास के लिए कारगर साबित होंगी।
वर्ष 2011की जनगणना के अनुसार उत्तराखंड के तीन जनपद हरिद्वार, देहरादून और उधम सिंह नगर बाकि दस जनपदों पर भारी सिद्ध होते रहे हैं। क्योंकि प्रदेश की जनसंख्या में इनका योगदान हरिद्वार 18 प्रतिशत, देहरादून 16.82 प्रतिशत और उधम सिंह नगर 16.34 प्रतिशत यानि तीनों जनपदों का योग प्रदेश की जनसंख्या का 51 प्रतिशत से अधिक है और इसीलिए विकास हेतु संसाधनों के बंटवारे में पहाड़ के जनपदों को मन मसोस के रहना पड़ता है।
अब तीन मंडलों मे जनसंख्या का अनुपात गढ़वाल 52 प्रतिशत, कुमायूं 33 प्रतिशत और गैरसैण कमिश्नरी 15 प्रतिशत रहने वाला है। प्रदेश के कुल 95 विकासखंड में से फिलहाल गैरसैण कमिश्नरी में 26 विकास खंड शामिल रहेंगे। पिथौरागढ़ को गैरसैण कमिश्नरी में शामिल करने से जनजातीय क्षेत्र में बढ़ोतरी होगी और 17 विधायकों की संख्या विधानसभा में 24 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व रहेगा।
लेखक का परिचय
भूपत सिंह बिष्ट
स्वतंत्र पत्रकार, देहरादून, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।