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March 16, 2025

आपकी सरकार ने बनाए हैं नियम, आप ही मान लेते जनाब, जनता भी तो देख रही है…

कोरोना महामारी से लड़ने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ जिन नियमों को लेकर निरंतर जोर दे रहे हैं। जनता से अपील की जा रही है। पुलिस व प्रशासन भी ढिंढौरा पीट रहे हैं। सड़कों पर आमजन के चालान हो रहे हैं। ऐसे नियम शायद नियम बनाने वालों के लिए नहीं हैं। सरकार आपकी है, तो क्या फर्क पड़ता है। नियम तो जनता के लिए हैं। नेताओं के लिए तो शायद नियम है ही नहीं। ऐसा हम नहीं कह रहे हैं, ये सब राजनीतिक कार्यक्रमों में उमड़ती भीड़ और कोरोना के नियमों का पालन न होने पर कहा जा रहा है।


ये हैं नियम
अब बात करते हैं एक स्थान पर जमा होने वाले लोगों की। ताजा जारी हुई गाइडलाइन में किसी हाल में कार्यक्रम आयोजित करने के लिए अब पचास लोग की एकत्र हो सकते हैं। वहीं, शादी समारोह की भीड़ भी दो सौ से घटकर सौ हो चुकी है। यदि कोई मास्क नहीं पहनता है तो उसका चालान काटने का प्रावधान है। शारीरिक दूरी को लेकर भी चालान काटे जा रहे हैं। हाथ धोने का तो पता नहीं चलता कि व्यक्ति ने कितनी बार धोया। ऐसे में इसे लेकर सिर्फ जागरूक किया जा सकता है। नियम से हैं कि जब तक कोरोना की दवा नहीं बन जाती तब तक कम से कम दो गज की शारीरिक दूरी रखें, नाक व मुंह मास्क से ढके रहें। हाथों को बार बार साफ किया जाए।


ऐसा हो रहा है
किसी राजनीतिक दल को कार्यक्रम की अनुमति आसानी से मिल जाती है। खासकर सत्ताधारी दल को। धार्मिक आयोजनों, नदियों पर स्नान आदि पर फरमान जारी करके कोरोना का हवाला दिया जाता है। भीड़ जमा होने का अंदेशा बताया जाता है। शादी समारोह व अन्य आयोजनों को लेकर लोग प्रशासन के चक्कर काटते हैं। तब मुश्किल से पचास लोगों की अनुमति मिल रही है। वहीं, राजनीतिक दलों के जुलूस, सभा, बैठकों के लिए तो ऐसा नजर नहीं आता। चार दिसंबर से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के हरिद्वार से लेकर देहरादून तक आयोजित कार्यक्रमों में हजारों की भीड़ सड़कों पर उमड़ी। हाल आदि में आयोजित कार्यक्रमों में भी लोगों की खासी भीड़ रही।


मास्क व शारीरिक दूरी
कार्यक्रमों में कई जागरूक लोगों ने तो मास्क लगाए हुए थे, लेकिन भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सहित कई नेता ऐसे रहे, जिनके मास्क मुंह से नीचे लटके हुए थे। कई बार तो राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा तक बगैर मास्क के नजर आए। चाहे स्वागत का मौका हो या फिर मंच पर दूसरे साथियों के साथ बैठने का मौका। इसमें एक बात और है कि जो कोरोना से जंग जीतकर आए, वे ही अब ज्यादा लापरवाही बरत रहे हैं। हालांकि जितनी भी तस्वीरें और वीडियो नजर आई, उसमें उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जरूर मास्क को सही तरीके से लगाए हुए दिखे। इसके लिए उन्हें साधुवाद।


फोटो खिंचाने के मौके पर हट जाते हैं मास्क
अक्सर देखा जा रहा है कि जब भी किसी कार्यक्रम में फोटो खिंचवाने का मौका आता है, तब नेताओं के मास्क मुंह से हट जाते हैं। हो सकता है उन्होंने कोरोना के वायरस को कहा हो कि कुछ सैकंड तक हमला मत करना। किसी दूसरे से बात करते वक्त भी कुछ ही देर में लोगों के मास्क पहले मास्क से नीचे सरकते हैं, फिर मुंह से नीचे। ऐसा भाजपा के कार्यक्रम में भी अमूमन दिखता रहा। इसके बावजूद ऐसे लोगों की संख्या भी काफी रही, जो पूरे कार्यक्रम के दौरान मास्क लगाए रहे। ऐसे लोगों से निवेदन है कि वे अपने साथियों को भी समझाएं।

खुद पर अनुशासन का दंभ, विपक्ष पर आरोप
जब भी किसी विपक्षी राजनीतिक दल का प्रदर्शन होता है तो भाजपा की प्रतिक्रिया यही आती है कि विपक्ष कोरोनाकाल में महामारी को न्योता दे रहा है। नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। हर भाषणों में अपनी पार्टी को अनुशासन वाली पार्टी बताया जाता है। यदि मास्क लगाने में भी अनुशासन न दिखे तो क्या कहा जा सकता है…

लोक कलाकारों में रोष
यही नहीं नड्डा के स्वागत में सड़कों के किनारे व कार्यक्रम स्थल पर सांस्कृतिक टोलियां खड़ी की गई। वहीं, स्थानीय कलाकारों का कहना है कि संस्कृति विभाग उन्हें कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति नहीं दे रहा है। फिर यहां कैसे कलाकारों को बुलाया गया। हमारे लिए तो कोरोना का नाम लेकर सबको बेरोजगार कर दिया गया। लोककलाकार बचन सिंह राणा ने कहा कि वे कई माह से स्थानीय कलाकारों को विभिन्न आयोजन में कार्यक्रम करने की छूट की मांग कर रहे हैं, अनुमति की फाइल एक अधिकारी से लेकर दूसरे की टेबल में चक्कर काट रही है।

आम पब्लिक को भी दे दो छूट जनाब
यदि आपने आदर्श स्थापित करना है तो मास्क लगाएं। या फिर आम जनता को कोरोना नियमों के तहत परेशान करना बंद कर दें। कभी दुकानदार, कभी वाहन चालक, राह चलते का चालान पुलिस हर दिन काट रही है। जब किसी नेता का चालान नहीं काटा जा रहा है तो जनता ने क्या गलती की। ये सवाल भी खड़ा हो रहा है। जिसे पूछने की शायद जनता में भी हिम्मत नहीं बची है।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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