शहादत दिवस पर विभिन्न संगठनों ने शहीदे आजम भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को किया याद
वक्ताओं ने कहा है कि त्र28 सितंबर 1907 लायलपुर पंजाब में सरदार किशन सिंह घर जन्मे भगतसिंह ने बहुत ही कम उम्र में अंग्रेजों के जुल्मों सितम को करीबी से देख भी चुके थे तथा महसूस भी कर चुके थे। भगतसिंह का परिवार आजादी के आन्दोलन की मुख्यधारा से जुड़ा हुआ था तथा उनके परिवार का कुर्बानी का इतिहास था। यही कारण है कि जब उन्हें फांसी की सजा हुई, उनका परिवार आखिर बार लाहौर केन्द्रीय कारागार मिलने गया तो उनकी दादी ने कहा भगत सिंह तूने हमारा नाम ऊंचा कर दिया ।
वक्ताओं ने कहा कि 13 अप्रैल 1919 अमृतसर के जलियांवाला बाग में जनरल डायर के आदेश पर एकत्रित निहत्थी जनता पर गोलीबारी में सैकड़ों लोगों के मारे जाने की घटना से नन्हे भगतसिंह पर भारी आघात लगा। उन दिनों देश के युवाओं की तरह ही भगतसिंह पर महात्मा गांधी जी का काफी प्रभाव था। वे गांधीजी को अपना आदर्श मानने लग गये थे।
वक्ताओं ने कहा कि 20 नवम्बर 1920 को कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गांघी जी का अहिंसा तथा असहयोग आन्दोलन का प्रस्ताव पारित हुआ। महात्मा गांधी जी के आह्वान पर असहयोग आन्दोलन की शुरुआत हुई । जिसमें सरकार को टैक्स न देना, सरकारी नौकरियों से इस्तीफा, स्कूल कालेजों का बहिष्कार, विदेशी कपड़ों की होली जलाई गयी। गांधी जी के आह्वान पर पूरा देश अंग्रेजों के खिलाफ सड़कों पर था। हजारों की संख्या में छात्र अपनी पढा़ई छोड़कर गांधीजी के असहयोग आन्दोलन में कूद चुके थे। लोगों को लग रहा था कि अब जल्दी ही आजादी मिल जाऐगी, किन्तु चोराचोरा काण्ड शान्तिपूर्ण विरोध कर रहे लोगों पर पुलिस को गोलीबारी से प्रतिक्रिया स्वरूप उग्र भीड़ ने पुलिस चौकी जलाई, जिसमें 14 पुलिसकर्मियों की जलने से मौत हुई।
गांधी जी ने अचानक असहयोग आन्दोलन वापस लिया जिस कारण लोगों में भारी निराशा हुई युवाओं का गांधी जी से मोहमंग होने लगा वे विकल्प की तलाश में लग गये। वक्ताओं ने कहा है कि इस बीच लाहौर, कानपुर, दिल्ली, कलकत्ता तथा देश के अन्य हिस्सों में क्रान्तिकारी गतिविधियों में तेज आयी, जिनसे युवा तेजी से जुड़ने लगे 1924 हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एशोसिएशन का गठन हुआ तथा जिसका मुख्य मकसद युवाओं को जोड़कर उन्हें आजादी के आन्दोलन की क्रान्तिकारी धारा जोड़कर अपनी गतिविधियों में तेजी लाना था।
शुरुआत दौर में क्रान्तिकारियों का मकसद सरकारी तन्त्र को जगह जगह नुकसान पंहुचाने तथा अपनी गतिविधियों को संचालित के लिए धन एकत्रित करना था। 9 अगस्त 1925 काकोरी में ट्रेन लूट के पीछे भी यही मकसद था। धीरे धीरे अनुभव ने उन्हें आन्दोलन का वैचारिक आधार बढ़ाने पर जोर दिया और लाहौर में 1925 को नौजवान भारत सभा गठन तथा भगतसिंह और अन्य साथियों के जुड़ने से क्रान्तिकारी आन्दोलन की दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव आयाष 9 व 10 सितंबर 1928 से एच आर ए अब एच आर एस ए के नाम से जाना जाने लगा। उन दिनों युवाओं पर सोवियत क्रान्ति का भी काफी प्रभाव था। इसलिए भगतसिंह के नेतृत्व में इसी दिशा की ओर अपने देश में बदलाव चाहते तथा वे पूर्ण स्वराज्य के पक्षधर थे।
दूसरी तरफ गांधी जी के नेतृत्व डोमिनियन स्टेट की मांग जो कि आधा राज जिसका नियंत्रण अन्ततः अंग्रेजी हुकूमत के पास ही रहे। दो विचारधाराओं का टकराव चल रहा था ।वक्ताओं ने कहा 8 अप्रैल 1928 पब्लिक सैफ्टी विलों के खिलाफ भगतसिंह, बटुकेश्वर दत्त द्वारा दिल्ली असेम्बली में बम फेंका गया। वे एसेम्बली बमकांड के माध्यम से अवाम के सामने क्रान्तिकारियों के उद्देश्यों को रखना चाहते थे। उसके बाद दोनों ने गिरफ्तारी दी। कोर्ट में जब भी क्रान्तिकारी पेश किये जाते तो कोर्ट के माध्यम से अवाम तक अपनी बात रखते। इस प्रकार अब क्रान्तिकारी आन्दोलन वैचारिक परिपक्वता से भरा हुआ था। उनका मानना था कि कौमी एकता के माध्यम से ही अंग्रेजों से लड़ा जा सकता है। क्योंकि हमारे देश में उस समय भी आज भी ऐसे ताकतें हैं जिन्हें कौमी एकता नापसंद है, जिसके लिए वे अंग्रेजों की मुखबिरी भी कर रहे थे तथा पेंशन भी ले रहे थे।
सन् 1929 को 17 नवम्बर साईमन कमीशन के बहिष्कार का नेतृत्व कर रहे लाला लाजपतराय पर पुलिस के बर्बर हमले तथा उनकी मौत तथा सरकार की दमनात्मक कार्यवाही के बीच क्रान्तिकारियों ने लालाजी के मौत के बदला लेने की योजना बनाई। जिसमें 17 दिसम्बर 1929 हत्या का जिम्मेदार स्कोट्स को मारने की योजना थी, किन्तु मारा गया जलियांवाला बाग का हथियारा साण्डर्स। असेंबली बमकांड के बाद अंग्रेजी हुकूमत ने एक के बाद एक क्रान्तिकारियों की गिरफ्तारी तथा उन पर सभी केश दर्ज किये, ताकि वे जेल से बाहर ही न आ सके। इस बीच तमाम केशों पर सुनवाई शुरू हुई।
वक्ताओं ने कहा जेल कैदियों के साथ हो रहे भेदभाव तथा अन्य सभी जनता की मांगों को लेकर भगतसिंह आदि क्रान्तिकारियों के द्वारा लम्बी भूख हड़ताल कर अन्त में खुशी खुशी देश के लिए शहादत दी। यह ऐसी मिसाल है कि जो युगों युगों तक अन्याय व अत्याचार के खिलाफ लड़ रहे अवाम को दिशा देती रहेगी। आज फिर से हमारे समाज में साम्प्रदायिक सौहार्दपूर्ण माहौल बनाने के संघर्ष को तेज करने की आवश्यकता है। तभी हम साझी बिरासत की परम्परा की रक्षा कर सकते हैं। यही शहीदों को हमारी सच्ची ,श्रद्धान्जलि होगी।
गोष्ठी की अध्यक्षता अर्जुन रावत ने की तथा संचालन सचिव अनन्त आकाश ने किया। इस अवसर पर पार्टी जिलासचिव राजेंद्र पुरोहित, सीटू जिलाध्यक्ष किशन गुनियाल, महामंत्री लेखराज, जनवादी महिला समिति की जिलाध्यक्ष नुरैशा अंसारी, एस एफ आई अध्यक्ष शैलेंद्र परमार, मनोज कुवर, उदय ममगाई, भगवन्त पयाल, रविंन्द्र नौडियाल, विनोद कुमार आदि उपस्थित थे।
दून में निकाला कैंडल मार्च
सीटू, एसएफआई, डीवाईएफआई की ओर से देहरादून में सीमेंट रोड स्थित एसएफआई कार्यालय से कार्यकर्ताओं ने डीबीएस चौक तक कैंडल मार्च निकाली। इस दौरान भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। कार्यक्रम का संचालन एस एफ आई से शैलेंद्र परमार और कार्यक्रम का समापन डीएवी पीजी कालेज के भूतपूर्व छात्र संघ अध्यक्ष व सीटू महामन्त्री लेखराज ने किया।
वक्ता के रूप मे लेखराज ने बताया कि वर्तमान परिस्थिति मे भगत सिंह के विचार ओर अधिक प्रासंगिक हो गये हैं। क्योंकि सुनियोजित तरिके से साम्प्रदायिकता का जहर घोला जा रहा है। इससे समाज मे वेमनस्य बढ़ रहा है और भाईचारा खत्म हो रहा है। इन सब कुरीतियों से लड़ने के लिए भगत सिंह के विचार एक हथियार के रूप में प्रयोग किए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि राजगुरु, सुखदेव, भगत सिंह को सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी, जब देश के अंदर भाईचारा सांप्रदायिक सद्भाव बना रहेगा। देश प्रगति के पथ पर अग्रसर होगा और शोषण विहीन समाज की स्थापना होगी जहाँ आदमी द्वारा आदमी का शोषण समाप्त होगा। इस मौके पर अनीषा, कमलेश देवी, दर्शनी राना, डीवाईएफआई से मनीष कुमार, अरुण लाम्बा, दीपक कुमार, रमन कुमार, राहुल बंटी कुमार, शैलेंद्र परमार, मनोज कुंवर, अनुप सिंह, विवेक आदि मौजूद रहे।
एसएफआइ की डीएवी इकाई ने भी दी श्रद्धांजलि
स्टूडेंट्स फैडरेशन ऑफ इण्डिया (एस एफ आई ) ने भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव के 91वीं शहादत दिवस के अवसर पर डीएवी महाविद्यालय देहरादून में श्रद्धांजलि का कार्यक्रम आयोजन कर शहीदों के चित्रों पर पुष्पांजलि अर्पित की। साथ ही शहीदों के स्वप्नों को साकार करने के लिए संघर्ष को तेज करने का निर्णय लिया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में महाविद्यालय के प्राचार्य डाक्टर अजय कुमार सक्सेना, डॉ अतुल सिंह, डॉ प्रशांत कुमार, एस एफ आई से पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष लेखराज जी आदि मौजूद रहे।
इसके बाद एसएफआई डीएवी कॉलेज इकाई की ओर से जिलाधिकारी एवं नगर आयुक्त से भेंट कर देहरादून के सर्वे चौक को भगतसिंह चौक घोषित करने की मांग की गई। इस अवसर पर इस कार्यक्रम में एस एफ आई प्रदेश कमेटी के सदस्य अतुल कांत, शैलेन्द्र परमार, डीएवी कालेज इकाई अध्यक्ष मनोज कुंवर, संजय कुनियाल, शुभम कंडारी, सोनू सिंह, हरि गोतम, रितिक राणा, सलोनी पंत, ज्योति, रिया, सपना, आयुष, आदित्य आदि लोग मौजूद रहे।
इन संगठनों ने भी आयोजित किया श्रद्धांजलि कार्यक्रम
शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव की शहादत पर उत्तराखंड स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी कल्याण समिति तथा संयुक्त नागरिक संगठन के संयुक्त तत्वाधान में श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसकी अध्यक्षता ब्रिगेडियर केजी बहल ने तथा संचालन मुकेश नारायण शर्मा ने किया। शहीदो के चित्रो पर पुष्पांजली अर्पित करते हुए सामाजिक संस्थाओ के प्रतिनिधियो ने अपने श्रद्धासुमन अर्पित किये।इस अवसर पर वक्ताओं ने उत्तराखंड की भावी सरकार, अफसरशाही और आमजन को शहीदों के आदर्शों, चरित्र, नैतिकता, त्यागऔर देशप्रेम के जज्बातो से प्रेरणा लेने की आवश्यकता पर जोर दिया। वक्ताओ ने कहा कि उत्तराखंड की सरकार के सामने जनहितो से सम्बन्धित विभिन्न चुनौतिया सामने हैं। इनमे राज्य की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था, पलायन, पर्यावरण, प्रदूषण, सड़कों की दुर्दशा,अतिक्रमण और सडको पर लगते दमघोटू जाम, सरकारी स्कूलों की दुर्दशा, पहाड़ी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, राज्य की अफसरशाही पर कठोरअंकुश लगाने की ज़रूरते शामिल हैं।
घोषणा पत्र में उल्लेखित वादों को पूरा करना भी जरूरी है। कहा चुनोतियो से निपटने के लिए शहीदों के पद चिह्नों पर चलकर लक्ष्य को पूरा करना जरूरी होगा। यही शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। कार्यक्रम में गवरमैंट पेंशनर संगठन के चौधरी ओमवीर सिंह, क्षत्रिय चेतना मंच के ठाकुर आर एस कैंतूरा, अखिल भारतीय समानता मंच के जगदीश कुकरेती, स्वतंत्रा सेनानी संगठन के गोवर्धन प्रसाद शर्मा, अपना परिवार के पुरुषोत्तम भट्ट, दून पूर्व सैनिक संगठन के कर्नल बी एम थापा, स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी कल्याण समिति के संदीप शास्त्री, सोशल जस्टिस की आशा टम्टा, संसदे के सुशील त्यागी, सहित सेनानी परिवारों के शक्ति प्रसाद डिमरी, डॉ. सुरजीत सिंह खेड़ा, भूपेंद्र सिंह कंडारी, सुधीर कौशिक, नीरज कुमार, नेशनल एसोसिएशन फॉर पैरंट्स एंड स्टूडेंट्स राइट्स के आरिफ खान, उत्तराखंड आन्दोलन कारी मंच के प्रदीप कुकरेती चौधरी चंद्रपाल सिंह, आशा देवी नौटियाल, निर्मला गोदियाल, देवानंद गोदियाल, दीपक चौहान, जयप्रकाश नंदा, निशा शर्मा, महीपाल सिंह रावत, प्रमोद कुमार आदि शामिल थे।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।