उत्तराखंडः दमदार कंडीडेट के बगैर सल्ट में भाजपा की राह कठिन, कांग्रेस पूर्व अध्यक्ष बोले-हरीश रावत और तीरथ लड़ें
भारत निर्चावन आयोग के तय कार्यक्रम के मुताबिक उत्तराखंड में 17 अप्रैल को अल्मोड़ा जिले की सल्ट विधानसभा की रिक्त सीट पर मतदान होगा। सल्ट चुनाव के लिए नामांकन की अंतिम तिथि 30 मार्च नियत की है। 3 अप्रैल का दिन नाम वापसी के लिए तय किया गया है। 17 अप्रैल को मतदान के बाद मतगणना दो मई को होगी। इसके लिए मुख्य राजनीतिक दलों भाजपा और कांग्रेस में प्रत्याशी चयन को लेकर मंथन शुरू हो गया है। वहीं, माना जा रहा है कि इस बार भाजपा को दमदार प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारना होगा। साथ ही क्षेत्रवाद को भी ध्यान रखना होगा। फिलहाल दोनों ही दलों ने चुनाव में उम्मीदवार को लेकर मंथन शुरू कर दिया है। भाजपा ने तीन सदस्यीय पैनल गठित किया है। वहीं, कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि सल्ट में उम्मीदवार चयन को लेकर विधानसभा के उपनेता करण माहरा और प्रदेश उपाध्यक्ष आर्यन शर्मा को पर्यवेक्षक बनाया है।
इसलिए हो रहे हैं चुनाव
गौरतलब है कि नवंबर माह में उत्तराखंड में सल्ट विधानसभा से भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह जीना का दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया था। विधायक कोरोना संक्रमण की चपेट में आ गए थे। इससे कुछ दिन पहले उनकी पत्नी का भी दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। सुरेंद्र सिंह जीना काफी लोकप्रिय थे। सुरेंद्र लगातार तीसरी बार विधायक बने थे। उनके निधन से सल्ट विधानसभा सीट रिक्त हो गई थी।
भाजपा को कांग्रेस चुनौती देने की तैयारी
सल्ट विधानसभा चुनाव में भाजपा को कांग्रेस की चुनौती देने की तैयारी है। पिछले चुनाव में यहां से कांग्रेस प्रत्याशी गंगा पंचौली ने चुनाव लड़ा था। वह सल्ट की ब्लॉक प्रमुख रह चुकी हैं। पिछले चुनाव में वह दूसरे नंबर पर रही थी। उनकी हार में मतों का अंतर भी काफी कम था। ऐसे में माना जा रहा है कि यदि कांग्रेस दमदार कंडीडेट को खड़ा करती है तो भाजपा के लिए दिक्कत पैदा हो सकती है।
कांग्रेस से ये हैं प्रबल दावेदार
कांग्रेस से गंगा पंचौली के साथ ही पूर्व विधायक रणजीत सिंह रावत के बेटे विक्रम रावत ने भी टिकट की दावेदारी कर रखी है। गंगा पंचौली के कहना है कि पिछले चार साल से क्षेत्र के लोगों से लगातार संपर्क में हैं, वहीं विक्रम रावत को चुनाव लड़ाने के लिए उनके पिता प्रबल पैरवी कर रहे हैं। चुनाव में धनबल आदि के मद्देनजर उन्हें मजबूत दावेदार की दृष्टि से देखा जा रहा है। साथ ही रणजीत सिंह रावत पूर्व में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के सलाहकार भी रह चुके हैं।
भाजपा के दावेदार
भाजपा में भी दावेदार को लेकर मंथन चल रहा है। एक नाम पूर्व विधायक सुरेंद्र सिंह जीना के बड़े भाई महेश जीना का नाम भी सामने आ रहा है। वह व्यावसायी हैं और दिल्ली में रहते हैं। वह अपने छोटे भाई का वित्तीय प्रबंधन भी देखते रहे थे। हालांकि उन्हें यदि चुनाव लड़ाया जाता है तो सहानुभूति वोट बटोरे जा सकते हैं। जैसा हर बार के ऐसे मामलों में होता रहा है।
क्षेत्रवाद है हावी
सल्ट विधानसभा में क्षेत्रवाद भी हावी है। ऐसे में भाजपा यदि महेश जीना का नाम तय करती है, तो भी चुनाव में दिक्कत पेश हो सकती है। यहां तक बोला जा रहा है कि जीना को लोग बाहरी इसलिए मानते हैं कि वह गांव में रहे ही नहीं। वहीं, यदि सीएम तीरथ सिंह रावत भी इस सीट से चुनाव लड़ते हैं तो सीट जीतने में उन्हें भी पापड़ बेलने पड़ सकते हैं।
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष किशोर की सलाह
उत्तराखंड कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने तो एक चैनल में डिबेट के दौरान कहा कि सीएम तीरथ सिंह रावत को बार-बार के चुनाव के बोझ से उत्तराखंड को बचाना चाहिए। उन्होंने कहा कि उनके विधायक के चुनाव लड़ने से लोकसभा पौड़ी की सीट भी खाली होगी। ऐसे में यदि वे सल्ट की बजाय किसी अन्य सीट से चुनाव लड़ते हैं तो प्रदेश को तीन तीन उपचुनाव झेलने पड़ेंगे। उन्होंने सुझाव दिया कि सीएम को सल्ट विधानसभा से चुनाव लड़ना चाहिए। कांग्रेस से हरीश रावत चुनाव लड़ें। फैसला जनता करेगी। वहीं, हरीश रावत कुछ दिन पूर्व सल्ट सीट को भाजपा के हक में छोड़ने की पैरवी करके कांग्रेस में नए विवाद को जन्म दे चुके हैं। गौरतलब है कि किशोर उपाध्याय को हरीश रावत के नेतृत्व में हुए 2017 के विधानसभा चुनाव में टिहरी के बजाय देहरादून की सहसपुर सीट से चुनाव लड़ाया गया था। नतीजा मनमाफिक नहीं निकला और वह चुनाव हार गए थे। किशोर ने मेहनत अपनी टिहरी सीट पर की और दूसरी सीट से चुनाव लड़ना उन्हें भारी पड़ गया था।
दिलचस्प हो सकता है मुकाबला
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यदि हरीश रावत और तीरथ सिंह रावत के बीच मुकाबला हो जाता है तो ये काफी दिलचस्प हो सकता है। हरीश रावत अल्मोड़ा के हैं और वह कुमाऊं के दौरे भी लगातार करते रहते हैं। वहीं, अक्सर देखा गया कि कोई मुख्यमंत्री यदि किसी भी सीट के उपचुनाव लड़ता है तो वह जीत जाता है। वहीं, दोनों ही नेता ऐसा साहस शायद ही दिखा पाएं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
हरीश रावत जी को लड़ना चाहिए
अब भाजपा का उत्तराखण्ड में जीतना मुश्किल है