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September 30, 2024

उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय ने साफ किया अपना पक्ष, अनर्गल खबर फैलाने वालों को दी धमकी, उठाए जा रहे हैं सवाल

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इन दिनों उत्तराखंड में मीडिया की खबरों में सरकारी नियुक्तियों में घोटाले की खबरें ज्यादा मिल रही हैं। उत्तराखंड अधिनस्थ चयन सेवा आयोग की परीक्षाओं में हुए घोटाले और 32 लोगों की गिरफ्तारी के बाद अब तो विधानसभा, शिक्षा विभाग, ऊर्जा निगम सहित अन्य विभागों में भी हुई भर्तियों पर सवाल उठने लगे हैं। विपक्षी दल कांग्रेस के नेताओं के साथ ही अन्य संगठन ऐसे मामलों की सीबीआइ जांच की मांग कर रहे हैं। वहीं, उत्तराखंड युवा प्रकोष्ठ की ओर से देहरादून में इस मांग को लेकर धरना दिया जा रहा है। अभी तक दूसरे राज्यों में विपक्षी दलों से जुड़े लोगों के खिलाफ जब भी सीबीआइ और ईडी की जांच होती है, तो बीजेपी का यही कहना होता है कि यदि किसी ने गलती नहीं की, तो जांच का सामना करने से क्यों डर रहे हैं। अब उत्तराखंड में यही बात उल्टी नजर आ रही है। हाल ही में भर्ती घोटालों में उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय का नाम भी उछाला गया तो कुलपति ने इस संबंध में स्पष्टीकरण दिया। साथ ही ऐसी खबरों को भ्रामक और विश्वविद्यालय की छवि को धूमिल करने का प्रयास बताया। वह यहां भी नहीं रुके और उन्होंने ऐसी खबरों को प्रकाशित करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की धमकी भी दी है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

अनर्गल खबरों से विश्वविद्यालय की छवि धूमिल न की जाए : कुलपति  
उत्तराखंड मुक्‍त विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. ओपीएस नेगी ने कहा कि कुछ लोग विश्‍वविद्यालय की 56 भर्ती वाले प्रकरण को बेवजह मीडिया में उठा कर विश्‍वविद्यालय की छवि को धुमिल करने की कोशिश कर रहे हैं, जो कि सर्वथा अनुचित है। साथ ही विश्‍वविद्यालय के शिक्षार्थियों के साथ खिलवाड़ है। प्रो. नेगी ने कहा कि ये 56 नियुक्तियां उनके कार्यकाल से पूर्व की हैं। उन्‍होंने विश्‍वविद्यालय में कुलपति के पद पर फरवरी 2019 में कार्यभार ग्रहण किया था। ऑडिट आपत्ति वाली सभी नियुक्तियां 2017 से पूर्व की हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के प्रभारी जनसंपर्क अधिकारी डॉ. राकेश चंद्र रयाल ने कुलपति की ओर से प्रेस नोट जारी किया। इसमें कुलपति ने कहा कि यह आडिट आपत्ति  2018-19 में लगी थीं और यह आंतरिक ऑडिट समिति की आपत्तियां थी। आपत्तियों के निस्‍तारण के लिए सुपष्‍ट आख्‍या तैयार कर नियुक्ति के प्राविधानों के अभिलेख लगागर निस्‍तारण हेतु शासन को प्रेषित किया गया था, लेकिन शासन स्‍तर पर समय रहते इनका निस्‍तरण नहीं हो पाया। वर्ष 2021 में इसी प्रकरण पर ‘अमरउजाला’ में प्रकाशित समाचार के संदर्भ में राजभवन से मांगे गए जवाब के क्रम में भी विश्‍वविद्यालय आपनी सुस्‍पष्‍ट आख्‍या आवश्‍यक संलग्‍नकों के साथ राजभवन को प्रेषित कर चुका था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

प्रो. नेगी ने कहा कि मुक्‍त विश्‍वविद्यालय एक किराए के कमरे से शुरू होकर आज अपने भवन पर संचालित हो रहा है। विश्‍वविद्यालय सम्‍पूर्ण राज्‍य के शिक्षार्थियों के लिए स्‍थापित किया गया है। लोग जैसे-जैसे दूरस्‍थ शिक्षा के महत्‍व को समझते रहे, वैसे वैसे विश्‍वविद्यालय में छात्र संख्‍या बढ़ती रही। आज विश्‍वविद्यालय में लगभग एक लाख शिक्षार्थी अध्‍ययनरत हैं। विश्‍वविद्यालय आज देश में ही नहीं विश्‍व में अपनी पहिचान बना रहा है। साइबर सिक्‍योरिटी व अन्‍य रोजगारपरक व विशिष्‍ट पाठ्यक्रमों के साथ विशेष शिक्षा जैसे अन्‍य पाठ्यक्रमों के संचालन से समावेशी शिक्षा को बढ़ावा दे रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने कहा कि मुक्‍त विश्‍वविद्यालय शिक्षार्थी को अध्‍ययन सामग्री (किताबें) भी उपलब्‍ध कराता है। अध्‍ययन सामग्री अथवा किताबें तैयार करने व अकादमिक कार्यों के लिए शिक्षकों, शैक्षिक परामर्शदाताओं की आवश्‍यकता होती है। इन्‍हें शिक्षार्थियों तक पहुंचाने व अन्‍य तकनीकी और गैर शैक्षणिक कार्यो के लिए कार्मिकों की आवश्‍यकता होती रहती है। शासन से स्‍थाई पदों पर स्‍वीकृत न होने के कारण समय-समय पर विश्‍वविद्यालय प्रथम अध्‍यादेश 2009, जो शासन द्वारा निर्मित है, के अध्‍याय – आठ में विश्‍वविद्यालय के दक्षतापूर्ण कार्य करने के लिए पाठ्यक्रम लेखकों, काउन्‍सलरों, परामर्शदाताओं तथा अन्‍य व्‍यक्तियों, के अल्‍पकालिक नियोजन अधिकतम 6 माह के लिए नियोजन का अधिकार विश्‍वविद्यालय को है। फलस्‍वरूप कार्य के महत्‍व को देखते हुए समय-समय पर विश्‍वविद्यालय के नियमों/परनियमों के आधार पर विस्‍तरित किया जाता रहता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्‍होंने यह भी कहा कि माननीय मंत्री उच्‍च शिक्षा डॉ. धन सिंह रावत व अन्‍य किसी को इन भर्तियों से जोड़ना उचित नहीं है। यदि अब कोई भी मीडिया कर्मी या अन्‍य व्‍यक्ति मीडिया में बिना तथ्‍यों को समझे बगैर इसे लेकर अनर्गल खबरें प्रकाशित करता है, वाइरल करता है तो विश्‍वविद्यालय की छवि को बचाने के लिए शिक्षार्थियों के हित में विश्‍वविद्यालय को अमूक व्‍यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने के लिए मजबूर होना होगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ये है परीक्षा घोटाला
गौरतलब है कि बेरोजगार संघ के प्रतिनिधिमंडल की ओर से सीएम को शिकायत की गई थी। उन्होंने उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की ओर से चार और पांच दिसंबर 2021 को आयोजित स्नातक स्तर की परीक्षा में अनियमितता के संबंध में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को ज्ञापन सौंप कर कार्रवाई की मांग की थी। इस पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश के बाद डीजीपी अशोक कुमार ने भर्ती परीक्षा में हुई गड़बड़ी को लेकर जांच एसटीएफ को सौंपी थी। परीक्षा में गड़बड़ी के मामले में सबसे पहले उत्तराखंड पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स ने छह युवकों को गिरफ्तार किया था। इस मामले में एक आरोपी से 37.10 लाख रूपये कैश बरामद हुआ। जो उसके द्वारा विभिन्न छात्रों से लिया गया था। इस मामले में अब तक कुल 32 लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं। इसमें बीजेपी नेता भी शामिल है, जिसे पार्टी ने छह साल के लिए निष्कासित कर दिया है। इसके बाद अब हर दिन किसी ना किसी विभाग में भर्ती घोटाला उजागर हो रहा है। साथ ही पूर्व विधानसभा अध्यक्षों पर भी बैकडोर से नियुक्ति करने के आरोप लगे। वहीं, पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री पर भी ऐसे ही आरोप लग रहे हैं। ऐसे में अब मांग उठ रही है कि पूरे प्रकरणों की सीबीआइ से जांच कराई जाए, या फिर उच्च न्यायालय के सीटिंग जज की अध्यक्षता में गठित समिति से जांच हो।

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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