कृषि कानून वापसी के पीएम मोदी के फैसले पर उत्तराखंड भाजपा की बोलती बंद, जानिए चुप्पी का कारण
शुक्रवार को देश के नाम संबोधन के दौरान पीएम मोदी की तीन कृषि कानून वापस लेने की घोषणा पर जहां विपक्षी दलों के साथ ही किसान संगठन जश्न मना रहे हैं, वहीं उत्तराखंड में भाजपाइयों की बोलती बंद है। अब ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भाजपाइ पीएम से नाराज हैं या फिर चुप रहना किसी रणनीति का हिस्सा है। भाजपा सूत्र तो यही बताते हैं कि फिलहाल वेट एंड वाच की रणनीति पर भाजपा चल रही है। इस मुद्दे को वो जनता के दिमाग से उतारना चाहती है। हालांकि पार्टी के लोगों का ये भी मानना है कि पीएम के इस फैसले से भले ही पीएम की छवि खराब हुई, लेकिन उन्होंने पार्टी संगठन को मजबूत करने के लिए ये कुर्बानी दी। जल्द की इसका सुखद परिणाम सामने आएगा। फिलहाल इस मुद्दे पर नेता पार्टी लाइन का इंतजार कर रहे हैं।
गौरतलब है कि शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को देश के नाम संबोधन में एक बहुत बड़ी घोषणा करते हुए तीन कृषि कानूनों को वापस ले लिया। गुरुपर्व के मौके पर देश को संबोधित कर रहे पीएम ने कृषि कानूनों को वापस लिए जाने का फैसला सुनाया। यह घोषणा तब आई है, जब इन कानूनों के खिलाफ देश के किसानों का एक समूह पिछले एक साल से आंदोलन कर रहा है। दिल्ली के बॉर्डर से लेकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में पिछले एक सालों में कई स्तर और चरणों में किसानों का आंदोलन देखा गया है। वहीं, अब उत्तराखंड, यूपी सहित पांच राज्यों में अगले साल चुनाव हैं। मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक तो कई बार चेतावनी दे चुके थे कि यदि समय रहते ये कानून वापस नहीं लिया तो आगामी चुनावों में भाजपा को बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा था कि हम तीन नए कानून लाए गए थे। मकसद था छोटे किसानों को और ताकत मिले। वर्षों से इसकी मांग हो रही थी। पहले भी कई सरकारों ने इन पर मंथन किया था। इस बार भी संसद में चर्चा हुई मंथन हुआ और यह कानून लाए गए। देश के कोने कोने में कोटि-कोटि किसानों ने अनेक किसान संगठनों ने इसका स्वागत किया समर्थन किया। मैं आज उन सभी का उन सभी का बहुत आभारी हूं, धन्यवाद करना चाहता हूं।
इन कानूनों को वापस लिए जाने की घोषणा करने से ठीक पहले पीएम ने कुछ यूं अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि कोशिशों के बावजूद हम कुछ किसानों को समझा नहीं पाए, भले ही किसानों का एक वर्ग ही विरोध कर रहा था। हम उन्हें अनेकों माध्यमों से समझाते रहे। बातचीत होती रही। हमने किसानों की बातों को तर्क को समझने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। हमने 2 साल तक इन नए कानूनों को सस्पेंड करने की भी बात की। आज देशवासियों से क्षमा मांगते हुए पवित्र हृदय से कहना चाहता हूं कि शायद हमारी तपस्या में कोई कमी रही होगी, जिसके कारण दिए के प्रकाश जैसा सत्य कुछ किसान भाइयों को हम समझा नहीं पाए। हमने इन तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है। पीएम ने कहा कि संसद के इसी शीतकालीन सत्र में सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया पूरा कर देगी। यानी कि इस शीतकालीन सत्र में ये कानून आधिकारिक तौर पर हटा लिए जाएंगे।
बता दें कि मोदी सरकार ने इन कानूनों को जून, 2020 में सबसे पहले अध्यादेश के तौर पर लागू किया था। इस अध्यादेश का पंजाब में तभी विरोध शुरू हो गया था। इसके बाद सितंबर के मॉनसून सत्र में इस पर बिल संसद के दोनों सदनों में पास कर दिया गया। किसानों का विरोध और तेज हो गया। हालांकि इसके बावजूद सरकार इसे राष्ट्रपति के पास ले गई और उनके हस्ताक्षर के साथ ही ये बिल कानून बन गए। तब से पंजाब-हरियाणा से शुरू हुआ किसान आंदोलन 26 नवंबर तक दिल्ली की सीमा पर पहुंच गया और आज तक यहां कई जगहों पर किसान मौजूद हैं और आंदोलन बड़ा रूप ले चुका है।
पीएम के कानूनों के वापसी के फैसले पर उत्तराखंड में भाजपा के किसी नेता का बयान नहीं आया। शुक्रवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से जब पत्रकारों ने चंपावत में पीएम की घोषणा के संबंध में पूछा तो उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि पीएम मोदी ने किसानों की भावनाओं का ख्याल रखा। साथ ही उन्होंने पीएम मोदी का आभार व्यक्त किया।
छवि हुई खराब, लेकिन पार्टी को पहुंचेगा फायदा
भाजपा सूत्रों का कहना है कि सभी जानते हैं कि कृषि कानून वापस लेने के फैसले से पीएम मोदी की छवि को धक्का लगा है। उन्होंने पार्टी के लिए अपनी छवि की परवाह नहीं की। क्योंकि अगले साल पांच राज्यों में चुनाव होने हैं। ऐसे में उन्होंने पार्टी को फायदा पहुंचाने के लिए इन कानूनों को वापस लेने का फैसला किया।
कार्यकर्ताओं और नेताओं को हिदायत
फिलहाल उत्तराखंड में भाजपा के कार्यकर्ताओं और नेताओं को इस मुद्दे पर कुछ भी ना बोलने की हिदायत है। साथ ही ये भी कहा गया है कि यदि कहीं बहुत जरूरत पड़ती तो इस मुद्दे पर अग्रेसिव नहीं होना है। जल्द ही पार्टी की इस संबंध में लाइन तय होगी कि कृषि कानून को लेकर क्या कहना है। तब तक सबको चुप रहने को कहा गया है।
पहले दी गाली, अब किस मुंह से कहेंगे किसान
यहां एक बात और कार्यकर्ताओं के गले नहीं उतर रही है कि जिन किसानों को कभी आतंकवादी, कभी पीजा बर्गर खाने वाला बताकर उनकी मांगों के विरोध में कार्यकर्ता खड़े रहे, अब वे किस मुंह से ये कहेंगे कि उनके पक्ष में अच्छा फैसला आया है। ऐसे में इस मुद्दे पर फिलहाल भाजपा वेट एंड वाच की रणनीति पर काम कर रही है।
पीएम मोदी ने खेला मास्टर स्ट्रोक
बीजेपी सूत्र तो बताते हैं कि पीएम मोदी ने तीन कृषि कानून की वापसी का ऐलान करके मास्टर स्ट्रोक खेला है। पंजाब में नाराज अकाली दल के फिर से साथ आने की संभावनाएं हैं। इसी तरह अन्य नाराज लोगों को भी मनाया जा सकता है। अभी वक्त है, इसलिए कार्यकर्ताओं को नेताओं को चुप रहने की सलाह दी गई है।
अब जल्द कोई भी सरकार नहीं डालेगी इस पर हाथ
सूत्र तो कहते हैं कि जिस तरह से संजय गांधी के नसबंदी अभियान में कांग्रेस की किरकिरी हुई थी, ठीक उसी तरह कृषि कानूनों को लेकर भी भाजपा मुसीबत में फंसी। करीब 40 साल के कृषि सुधार की बात हो रही थी। इसके लिए प्रयास किया गया तो विरोध हो गया। इस आंदोलन से ये भी पता चल गया कि लोकतंत्र में जनता को एकदम नाराज नहीं किया जा सकता है। फिलहाल कोई भाजपा नेता इस मुद्दे पर कुछ नहीं कहेगा। धीरे धीरे मामला ठंडे बस्ते में ठीक उसी तरह चला जाएगा, जैसे कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन सिलेंडरों की कमी, आइसीयू बेड की कमी आदि के मामले ठंडे बस्ते में चले गए।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।