यहां भगवान शंकर ने किया था एक रात विश्राम, होती है भूमिगत शिवलिंग की पूजा

यहाँ गन्धमादन पर्वत पर अभी भी अश्वत्थामा, बलि, महर्षि व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य व परशुराम जी चिरंजीव रहकर विचरण करते हैं। भगवान भोलेनाथ को पहले से ही कैलाश प्रिय है। भगवान नारायण ने बदरी वन में व भोलेनाथ ने केदार (दल -दल) में अपना निवास स्थान उत्तराखण्ड में भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करने के लिए चुना है। वहीं बसुकेदार में भगवान शिव ने एक रात्रि विश्राम किया।
ऐसे पड़ा बसुकेदार का नाम
मान्यता है कि गौत्र हत्या के पाप से मुक्ति के लिए योगेश्वर श्रीकृष्ण की मंत्रणा पर पाण्डव काशी विश्वनाथ गये। लेकिन गौत्र हत्या, ब्रह्म हत्या आदि के कारण भोलेनाथ को पाण्डवों से घृणा हो गयी थी। पाण्डवों के काशी पहुंचते ही भोलेनाथ ने वहाँ से उत्तर की ओर के लिए प्रस्थान किया क्योंकि भगवान भोले पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे। हरिद्वार उत्तरकाशी, बूढ़ा केदार होते हुए भगवान बसुकेदार, गुप्तकाशी से होकर भगवान शिव केदारनाथ गए थे। भगवान शंकर ने एक रात्रि इसी बसुकेदार स्थान पर विश्राम किया था, जिससे यहां का नाम बसुकेदार रखा गया। जिसका वर्णन केदारखंड में मिलता है।
भगवान आशुतोष के यहाँ पर एक रात्रि विश्राम करने पर भोलेनाथ का भूमिगत आपलिंग की पूजा होती है। मंदिर में जल चढ़ाने पर जल भूमिगत शिवलिंग में चला जाता है। कहा जाता है कि तपस्वी व्यक्ति को ही इस शिवलिंग के दर्शन हो पाते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने यहां पर एक रात्रि विश्राम (बासा) किया था। इसी बासा से यहां का नाम बसु (बासा) केदार (शिव) अर्थात बसुकेदार पड़ा।
महाशिवरात्रि, पवित्र सावन व माघ मास में यहां पर भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना कर जलाभिषेक व रुद्राभिषेक किया जाता है। यह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है। मध्य हिमालय में स्थित यह देवतीर्थ बाँज, बुराँश, अंयार काफल, मौळ आदि 4000 से 6000 फीट की ऊंचाई पर उगने वाली वनस्पतियों से परिपूर्ण है। क्रौंच पर्वत पर स्थित कार्तिक स्वामी मन्दिर व तृतीय केदार श्री तुंगनाथ के दिव्य दर्शन भी इस स्थान से बखूबी हो जाते हैं।
छह सौ साल पहले किया गया मंदिर का निर्माण
अगस्त्युनि ब्लॉक में पड़ने वाले भगवान बसुकेदार के मंदिर का निर्माण एक हजार छः सौ वर्ष पूर्व जगदगुरू शंकराचार्य ने किया था। यह कत्यूरी शैली में निर्मित आठ छोटे बड़े मंदिरों का समूह है। मुख्य मंदिर शिव के केदार स्वरूप को समर्पित है। यह प्राचीन शिवालय समूचे क्षेत्र के लगभग 40 गांवों की आस्था का प्रतीक है।
मंदिर के नीचे भरा है पानी
सालभर श्रद्धालुओं का यहां आना जाना लगा रहता है। कहा जाता है कि बसुकेदार मंदिर के नीचे पानी भरा हुआ है। इसके अलावा गुप्त शिवलिंग है, जो पानी के नीचे है और भगवान भोले को जल चढ़ाने के बाद नीचे शिवलिंग में जाता है। जिसका वर्णन स्कंद पुराण के केदारखंड में मिलता है। बसुकेदार में भगवान शिव की महिमा का विशेष महत्व है। केदारघाटी में भगवान शंकर के ज्यादातर मंदिर केदारनाथ की आकृति के बने हैं। चाहे वह गुप्तकाशी का विश्वनाथ मंदिर हो या फिर त्रियुगीनारायण।
मनोवांछित फल की प्राप्ति को पहुंचते हैं श्रद्धालु
प्रत्येक वर्ष महाशिव रात्रि पर्व, सावन व मास में यहाँ भगवान के दर्शनों के लिए दूर दराज क्षेत्रों से बड़ी संख्या में भक्तजन पहुंचते हैं । कहा कि जाता है कि जो भक्त यहां सच्चे मन से भगवान की शरण में पहुंचता है, उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। मंदिर में रह रहे बाबा अविदूत गिरी एवं माई तारागिरी (इन्द्र देई) कहते हैं कि बसुकेदार मंदिर से क्षेत्र के लगभग चार दर्जन से अधिक गांवों की आस्था जुड़ी है। इन्होंने कई बार शासन-प्रशासन से मंदिर के संरक्षण के लिए मांग भी की है।
ऐसे पहुंचे बसुकेदार मंदिर
रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड हाईवे पर पहला मार्ग रुद्रप्रयाग से विजयनगर तक 16 किमी, उसके बाद विजयनगर-डडोली-बसुकेदार मोटरमार्ग से 20 किमी दूरी तय करके बसुकेदार पहुंचा जा सकता है। दूसरा मार्ग रुद्रप्रयाग से बांसवाडा 30 किमी, उसके बाद बांसवाडा-बष्टी-बसुकेदार मोटरमार्ग से 12 किमी दूरी तक बसुकेदार पहुंचा जा सकता है। तीसरा मार्ग रुद्रप्रयाग-गुप्तकाशी हाईवे पर 42 किमी व उसके बाद गुप्तकाशी-मयाली मोटमार्ग से 25 किमी दूरी तय बसुकेदार पहुंचा जा सकता है। बसुकेदार क्षेत्र में उतरने के बाद सड़क से दो सौ मीटर पैदल दूरी तय कर मंदिर पहुंचा सकता है।चन्द्रापुरी से 5किमी० की पैदल यात्रा कर भी इस पवित्र तीर्थ. में पहुंचा जा सकता है।
*ॐ वन्दे देव उमापतिं सुरगुरुं, वन्दे जगत्कारणम् l
*वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं, वन्दे पशूनां पतिम् ।।*
वन्दे सूर्य शशांकवह्नि नयनं, वन्दे मुकुन्दप्रियम् l
वन्दे भक्त जनाश्रयं च वरदं, वन्दे शिवंशंकरम् ।।
लेखक का परिचयः
माधव सिंह नेगी प्रधानाध्यापक राजकीय प्राथमिक विद्यालय जैली क्षेत्र जखोली जनपद रुद्रप्रयाग उत्तराखंड।