महिलाओं को 30 फीसद क्षैतिज आरक्षण को लेकर दमदार पैरवी करने की मांग को लेकर यूकेडी का प्रदर्शन
इस मौके पर उत्तराखंड क्रांति दल की निवर्तमान केंद्रीय महिला अध्यक्ष प्रमिला रावत ने कहा कि यह बहुत बड़ी विडंबना की बात है कि सरकार की कमजोर पैरवी के कारण राज्य सेवा आयोग की सम्मिलित सेवा (प्रवर) के पदों पर उच्च न्यायलय की ओर से रोक लगा दी गई है। इसके साथ ही वर्ष 2006 के शासनादेश पर भी रोक लगा दी गई है। यह उस राज्य के लिए बहुत बड़ा आघात है, जिस राज्य की लड़ाई एवं संघर्ष के केंद्र बिंदु में महिलाएं ही थीं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि वर्ष 2006 के बाद एक बार की कांग्रेस सरकार और तीन बार की भाजपा सरकार के लिए भी ये बड़ी शर्म की बात है कि 2006 के शासनादेश को कानून नही बना सकी। कतिपय अवसरों पर देखा गया कि सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध विधान सभा में विधेयक लाकर उच्च न्यायालय के फैसले को नकार दिया। वहीं, इस मामले में सरकार मौन है और महिला विरोधी बनी हुई है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
प्रमिला रावत ने कहा कि उत्तराखंड राज्य के संघर्ष में 42 से भी अधिक लोगों ने अपनी शहादतें दी हैं। इनमे दो महिलाएं थीं। इनके नाम स्वर्गीय बेलमती चौहान एवम स्वर्गीय हंसा धनई हैं। जो 2 सितंबर 1994 को मसूरी में पुलिस की गोलियों का शिकार हो गई थी। यही नहीं एक और दो अक्टूबर 1994 को रात्रि में उत्तराखंड की मातृशक्ति के साथ पुलिस प्रशासन की ओर से ऐसा जघन्य अपराध किया गया, जिसकी सजा “सजा ए मौत ” से कम नही होनी चाहिए थी। इसके बावजूद हमारी किसी भी सरकार ने महिलाओं के प्रति किए गए ऐसे शर्मनाक एवम अमानवीय व्यवहार के लिए संबंधित न्यायालयों में समुचित पैरवी नही की। इस कारण हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के दोषी अब तक खुलेआम घूम रहे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय पंडित नारायणदत्त तिवारी ने सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़ी उत्तराखंड की महिलाओं के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण रखते हुए राज्य की महिलाओं के लिए नौकरियों में 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण का शासनादेश जारी किया था। 22 वर्ष के उत्तराखंड में सत्तासीन एवं सत्ता के नजदीक रहने वाले राजनेताओं व नौकरशाहों ने हर स्तर पर भ्रष्टाचार किया, अब यह जनता के सम्मुख उजागर हो चुका है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि हमारे विधायक विधान सभा में एक जाति विशेष को आरक्षण देने की बात तो करते हैं, वहीं सांसद दिल्ली की संसद में बंगालियों को आरक्षण की मांग भी करते हैं। किसी ने भी उत्तराखंड मूल की महिलाओ को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण पर न तो सदन में गंभीरता दिखाई और न ही उच्च न्यायालय में। उन्होंने कहा कि राज्य के बाहर की महिलाओं का उत्तराखंड मूल की महिलाओं के आरक्षण के खिलाफ न्यायालय में जाना भी न्यायसंगत नहीं था। बाकी 70 प्रतिशत पदों के विरूद्ध तो वे आवेदन कर ही सकती थीं। वहीं, सरकार और सरकार के महाधिवक्ता की लापरवाही, कमजोर पैरवी के चलते उत्तराखंड मूल की महिलाओं के 30 प्रतिशत आरक्षण पर रोक लगना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि उक्रांद सरकार से मांग करता है कि उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अविलंब अपील प्रस्तुत करते हुए उत्तराखंड के पक्ष को मजबूत पैरवी करे। प्रदर्शन करने वालों में बीडी रतूड़ी, एपी जुयाल, सुरेन्द्र कुकरेती, जयप्रकाश उपाध्याय, विजय बौड़ाई, अशोक नेगी, दीपक रावत, शकुंतला रावत, उत्तरा पन्त बहुगुणा, किरण रावत, सुलोचना इष्टवाल आदि शामिल थे।
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भानु बंगवाल
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।