एचआइएमएस में एमडी इमरजेंसी मेडिसिन में दो सीटें मंजूर, अब सीटें हुई 113, निर्धन और मेधावी को निशुल्क शिक्षा
कुलपति डॉ.विजय धस्माना ने बताया कि एनएमसी की टीम ने मेडिकल कॉलेज का निरीक्षण किया था। इसमें उन्होंने कॉलेज व हॉस्पिटल में मौजूद सुविधाओं को परखा। टीम की रिपोर्ट के आधार पर एनएमसी ने एचआईएमएस को इमरजेंसी मेडिसिन विभाग में पीजी (एमडी) कोर्स की हरी झंडी दे दी है। कुलपति डॉ.विजय धस्माना ने बताया कि नीट-पीजी की सेंट्रलाइज्ड काउंसिलिंग के बाद ही छात्र-छात्राएं मेडिकल कॉलेज की इन सीटों पर प्रवेश पा सकते हैं।
इमरजेंसी स्वास्थ्य सेवा में विशेषज्ञों की कमी होगी दूर
कुलपति डॉ.विजय धस्माना ने कहा कि किसी भी हॉस्पिटल में इमरजेंसी सेवा सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है। देशभर में इमरजेंसी स्वास्थ्य सेवा मे विशेषज्ञों की कमी है। एचआईएमएस में इमरजेंसी मेडिसिन में पीजी सीटों पर कोर्स के बाद अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी कुछ दूर हो सकती है।
क्या होती है इमरजेंसी मेडिसिन
इमरजेंसी मेडिसिन, चिकित्सा विज्ञान की वह शाखा है, जिसमें गंभीर से गंभीर रोगियों को यथा संभव शीघ्र प्राथमिक चिकित्सीय उपचार देकर उनकी शारीरिक तकलीफ को कम करना होता है। इमरजेंसी मेडिसिन के चिकित्सकों को हर तरह के केस डील करने होते हैं। इमरेजंसी में आए चिकित्सक सामान्य रोग का मरीज हो या गंभारी बिमारी से ग्रसित अथवा रोगी चोटिल हो, सभी का प्राथमिक उपचार करते हैं। इमरजेंसी ब्लॉक में सीटी, आईसीयू व प्रसव अथवा अन्य सर्जरी के लिए ऑपरेशन थियेटर की भी व्यवस्था होती है। हिमालयन हॉस्पिटल में 24 घंटे इमरजेंसी सेवा सुचारु रहती है।
निर्धन व मेधावी छात्र-छात्राओं को देते हैं निशुल्क शिक्षा
कुलपति डॉ.विजय धस्माना ने बताया कि एसआरएचयू में विभिन्न कोर्सेस में अध्ययनरत छात्र-छात्राओं को प्रतिवर्ष करोडों रुपए की स्कॉलरशिप दी जाती है। इसी कड़ी में जिन निर्धन व मेधावी छात्र-छात्राओं को एचआईएमएस में प्रवेश मिल जाता है और आगे की पढ़ाई के लिए उनके पास फीस देने के लिए पैसा नहीं होता है तो एसआरएचयू से उन्हें निकाला नहीं जाता। हम उन्हें निशुल्क पढ़ाते हैं, इसकी बदले में वह बांड साइन करते हैं।
बॉन्ड के मुताबिक उन छात्र-छात्राओं को हिमालयन हॉस्पिटल के पहाड़ व राज्य के दूरस्थ क्षेत्रों में स्थित स्वास्थ्य केंद्रों पर कुछ साल मरीजों को स्वास्थ्य सेवा देनी होती है। इस तरह से काफी चिकित्सक ऐसे निकल आए हैं जो हमारे साथ मिलकर पहाड़ों पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।