साहित्यकार सोमवारी लाल सकलानी की दो कविताएं-किसान खड़ा है, सड़कों पर और अग्निपथ
किसान खड़ा है, सड़कों पर !
मिलजुल कर सब काम करो, व्यर्थ ना बकवास करो !
किसान खड़ा सड़कों पर है, को- रोना जब घर पर है !
नायक भूत पूर्व वर्तमान सुनो, कृषक को मत खड़ा करो,
सरकार की बात सुनो, हो अनुचित तो घोर विरोध करो।
अन्नदाता को मत तड़फाना, वरना फिर मत पछताना !
गंभीरता से सब बात कहो सुनो, भाग्यविधाता नहीं बनो।
अधिकार नियम के रखवालों, कृषक को मत उकसाओ,
किसान देश की रीढ़ रहा सदा, कोई भी न कमजोर करो।
यह पक्ष – विपक्ष का वक्त नहीं,अहंकार का समय नहीं।
सर्वदलीय संवाद करो, जानों क्या ग़लत है क्या है सही?
प्रजातंत्र की लाज रखो, सदा संवैधानिक हर बात कहो।
कृषक का हित मान धरो,शांत मन शीघ्र समाधान करो।
अग्निपथ
विराट ब्रह्मांड में हम गिरते उल्कापिंड हैं,
अस्तित्व की लड़ते लड़ाई भटके इंसान हैं।
संघर्ष से पैदा हुए हम संघर्ष में थे पले बढ़े ,
संघर्ष का हम गीत गाते शांति के पथ पर थे चले ।
कोई हथोड़ा हाथ थामें, कुछ आग लेकर के चले।
कोई समय की आंधियों में, जाने कहां गायब हुए।
हम पहेली बन चुके हैं या अज्ञानता का श्राप।
ऊपर पहुंचकर अंत में हम अदृश्य होते शुष्क भाप ।
क्षेत्र में हम कृषक होते, सरहदों में रक्षक जवान ।
जिंदा कलम के हम सिपाही, थे कभी दाता भी महान।
अब चुनौती खत्म होती, दुर्दशा पर धरा रोती।
दिख रही है आज हमको, इंसानियत की सृष्टि रोती।
जिंदगी की बारात में हम, आए चले जाने को हैं ।
लड़खड़ाते थक गए हम, अब मन सो जाने को है।
अग्निपथ पर हम चले थे, भीष्म फिर भी ना बने।
मखमली चादर हैं ओढ़र, शूल पीछा कर रहे ।
हमने कसौटी पर कसा था, स्वर्ण के संसार को ।
हर बार लोहा हाथ आया ,समझे नहीं व्यापार को।
कवि का परिचय
सोमवारी लाल सकलानी, निशांत ।
सुमन कॉलोनी चंबा, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।