आज आसमान में दिखेगा अनोखा नजारा, उल्कापिंडों की होगी आतिशबाजी, देखना न चूकें, जानिए कारण
आज रात आसमान पर आप अनोखे नजारों का लुत्फ उठा सकते हैं। रात को आसमान पर उल्का पिंडों की बौछार होगी। उल्का पिंडों की बौछार से ऐसा लगेगा जैसे आसमान में आतिशबाजी हो रही है।
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यह उल्कावृष्टि मिथुन राशि की दिशा में देखी जा सकती है। इसलिए इसे जेमिनीड मेटिओर शावर यानी मिथुन उल्कावृष्ठि का नाम दिया गया है। इस नजारे को चंद्रमा के अस्त होने के बाद बेहतर देखा जा सकता है। यह उल्कावृष्टि 3200 फैथान नामक धूमकेतु के छोड़े गए मलबे यानी उल्काओं के कारण होगी। इन दिनों पृथ्वी इस मलबे से होकर गुजर रही है और पृथ्वी के वातावरण में आते ही उल्काएं जलने लगेंगी और आतिशबाजी जैसा नजारा देखने को मिलेगा।
खगोल विज्ञानियों के मुताबिक उल्कावृष्टि हमारे सौरमंडल की आकर्षक खगोलीय घटनाओं में शामिल है। आम बोलचाल में इन्हें तारा टूटना कहा जाता है। मगर यह घटना तारे टूटने से नही, बल्कि पृथ्वी के वातावरण में किसी धूमकेतु से छोड़ी गई उल्काओं के जलने से होती है। सोमवार रात से मंगलवार भोर तक भी आकर्षक उल्टावृष्टि होगी। इसमें प्रति मिनट जलती उल्का का नजारा दिखने का आकलन है।
देश हर कोने से ले सकेंगे आतिशबाजी का नजारा
यदि आज आसमान साफ रहेगा तो जेमिनिड उल्का पिंड बौछार को भारत के हर हिस्से से देखा जा सकेगा। उल्का पिंड चमकदार रोशनी की जगमगाती धारियां होती हैं, जिन्हें अक्सर रात में आसमान में देखा जा सकता है। इन्हें शूटिंग स्टार भी कहा जाता है।
इस कारण होती है आसमान पर आतिशबाजी
वास्तव में जब धूल के कण जितनी छोटी एक चट्टानी वस्तु बेहद तेज गति से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करती है, तो घर्षण के कारण प्रकाश की खूबसूरत धारी बनती है। साल की एक निश्चित अवधि में आकाश की निश्चित दिशा से आते एक नहीं, बल्कि कई उल्का पिंड देखने को मिलते हैं। जिन्हें उल्का पिंड बौछार कहा जाता है।
इस समय होती है उल्का पिंडों की बौछार
उल्का पिंडों की बौछार अकसर उस समय होती है, जब पृथ्वी विभिन्न उल्का तारों के सूरज के निकट जाने के बाद छोड़ी गई धूल के बचे मलबे से गुजरती है। इनमें से जेमिनिड उल्का पिंड बौछार सबसे शानदार उल्का पिंड बौछारों में से एक होती है। हर बौछार हर साल दिसंबर के दूसरे सप्ताह के आस-पास दिखाई देती है। इस साल पूर्वानुमान है कि आसमान साफ होने के कारण प्रति घंटे 50 उल्का पिंड़ों की बौछार दिख सकती है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।