Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

November 1, 2025

उत्तराखंड में बूढ़ी दिवाली (इगास) पर्व आज, सीएम धामी ने दी बधाई, जानिए इस पर्व से जुड़ी मान्यताएं और परंपराओं के बारे में

आज एक नवंबर 2025 को उत्तराखंड में इगास या बूढ़ी दिवाली का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। ये त्योहार दिवाली के 11 दिन बाद मनाया जाता है। इगास पर्व पहाड़ की लोक भावनाओं और परंपराओं का प्रतीक भी है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेशवासियों को इगास पर्व की बधाई दी। साथ ही उन्होंने अपनी लोक परम्पराओं एवं लोक संस्कृति को आगे बढ़ाने का किया आह्वान किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने संदेश में कहा कि हमारी लोक संस्कृति एवं परम्परा देवभूमि की पहचान है। उन्होंने कहा कि किसी भी राज्य की लोक संस्कृति एवं लोक परम्परा उस राज्य की आत्मा होती है, इसमें इगास का पर्व भी शामिल है। हमारे लोक पर्व एवं समृद्ध सांस्कृतिक विरासत सामाजिक जीवन में जीवंतता प्रदान करने का कार्य करते हैं। मुख्यमंत्री ने प्रदेशवासियों से अपनी लोक संस्कृति एवं लोक परम्पराओं को आगे बढ़ाने में सहयोगी बनने की अपील की। उन्होंने कहा कि जिस तरह से संपूर्ण देश में सांस्कृतिक विरासत और गौरव की पुनर्स्थापना हो रही है, उसी तरह उत्तराखंडवासी अपने लोकपर्व इगास को आज बडे़ उत्साह से मना रहे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारे लोग इगास पर्व पर अपनी परम्पराओं के साथ अपने पैतृक गांवों से भी जुड सके इसके लिये राज्य में इगास पर्व पर सार्वजनिक अवकाश की परम्परा शुरू की गई है। उन्होंने कहा कि हमारी युवा पीढ़ी अपनी लोक संस्कृति एवं लोक पर्वों से जुड़े इसके भी प्रयास होने चाहिए। मुख्यमंत्री ने प्रवासी उत्तराखंडवासियों से भी अनुरोध किया कि वे भी अपने लोक पर्व को अपने गांव में मनाने का प्रयास करें तथा प्रदेश के विकास में सहभागी बने। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने प्रदेशवासियों की सुख-शांति एवं समृद्धि की भी कामना की है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

दिवाली के 11 दिन बाद मनाया जाता है इगास बग्वाल
उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में दीवाली के 11 दिन बाद लोक पर्व के रूप में बूढ़ी दीवाली मनाई जाती है। इसे इगास बग्वाल कहा जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान राम जब रावण के वध के बाद वनवास से अयोध्या लौटे थे तो लोगों ने कार्तिक कृष्ण अमावस्या को दीपक जलाकर उनका स्वागत किया था, जबकि गढ़वाल क्षेत्र में भगवान राम के लौटने की खबर दीवाली के 11 दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को मिली थी। यही कारण है कि पहाड़वासियों ने इस पर खुशी जाहिर करते हुए एकादशी को दीपावली का त्योहार लोक पर्व के रूप में मनाया था। इसे इगास बग्वाल या बूढ़ी दीवाली कहा जाता है। इस दिन गाय और बैल को पूजा जाता है, रात को सभी मिलकर पारंपरिक भैलो खेलते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

वीर माधो सिंह भंडारी की वीरता से जोड़कर भी है कथा
इगास पर्व से वीर माधो सिंह भंडारी की कथा भी जुड़ी है। इसका उल्लेख उत्तराखंड के लोकगीतों में भी मिलता है। माना जाता है कि माधो सिंह भंडारी जब राजा के आदेश पर अपने वीर सैनिकों के साथ तिब्बत से जंग के लिए गए, तो लंबे वक्त तक वह वापस नहीं आए। लोगों को लग रहा था कि सभी वीरगति को प्राप्त हो गए हैं। माधो सिंह भंडारी ने तिब्बत के साथ कई युद्ध में हिस्सा लिया और आखिरकार उन्हें जीत मिली। इसके बाद जब वह वापस दीपावली के 11 दिन बाद गढ़वाल पहुंचे, तो यह खबर मिलने पर राजा ने एकादशी के दिन दिवाली मनाने की घोषणा की। तब से लेकर अब तक इगास बग्वाल को लोक पर्व के रूप में गढ़वाल क्षेत्र में मनाया जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

खेले जाते हैं भैलू
इगास पर्व के उपलक्ष्य में धनतेरस से ही पहाड़ों में भैलू बनाए जाते हैं। भेलू के लिए चीड़ की लकड़ी का छोटा गट्ठर बनाया जाता है। इसे पेड़ की बेल या छाल से बांधा जाता है। इसका एक सिरा लंबा छोड़ दिया है। इगास पर्व के दिन इस पर आग लगाकर इसे घुमाया जाता है। मौके पर पूरे गांव के लोग एकत्र होते हैं। ढोल दमाऊ बजते हैं और लोग उत्सव मनाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जो अपने ऊपर भेलू घुमाता है, उसके ऊपर से दीपावली के दिन सारे संकट दूर हो जाते हैं।
नोटः सच का साथ देने में हमारा साथी बनिए। यदि आप लोकसाक्ष्य की खबरों को नियमित रूप से पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दिए गए आप्शन से हमारे फेसबुक पेज या व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं, बस आपको एक क्लिक करना है। यदि खबर अच्छी लगे तो आप फेसबुक या व्हाट्सएप में शेयर भी कर सकते हो। यदि आप अपनी पसंद की खबर शेयर करोगे तो ज्यादा लोगों तक पहुंचेगी। बस इतना ख्याल रखिए।

Bhanu Bangwal

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *