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December 24, 2024

आज के दिन हुआ था तिलाड़ी गोलीकांड, क्रूर नरेश ने निहत्थे ग्रामीणों पर चलवाई गोलियां, खबर छापने पर संपादक को जेल, जानिए इतिहासः रामचंद्र नौटियाल

30 मई उत्तराखंड के इतिहास में एक काला दिन है। ये ऐसा दिन है, जिसे सुनते ही यहां के स्थानीय लोग आज भी सिहर उठते हैं। तत्कालीन टिहरी राज्य रियासत में जंगलों के हक हुकूक को लेकर रवाई जौनपुर परगना के ग्रामीण लोगों में आंदोलन सुलग रहा था।

30 मई उत्तराखंड के इतिहास में एक काला दिन है। ये ऐसा दिन है, जिसे सुनते ही यहां के स्थानीय लोग आज भी सिहर उठते हैं। तत्कालीन टिहरी राज्य रियासत में जंगलों के हक हुकूक को लेकर रवाई जौनपुर परगना के ग्रामीण लोगों में आंदोलन सुलग रहा था। वे 30 मई 1930 को अपने लकड़ी, घास, चारा को लेकर यमुना नदी के तट पर बड़कोट शहर के निकट तिलाडी में एक आम विचार-विमर्श शांतिपूर्ण ढंग से कर रहे थे। इस असहाय जनता पर टिहरी नरेश नरेंद्र शाह की सेना ने बिना किसी पूर्व सूचना के ताबड़तोड़ गोलियां चलाई। बताया जाता है कि इस गोलीकांड में 200 से अधिक लोग मारे गए थे। क्रूर नरेन्द्र देव शाह की फौज ने तीनों तरफ से तिलाड़ी मैदान में इक्कठे हुए सैकड़ों ग्रामीण लोगों को घेर लिया। चौथी तरफ से यमुना नदी बहती है। इस हृदय विदारक घटना में कुछ गोलियों के शिकार हुए कुछ ने बचने के लिए यमुना में छलांग लगा दी वे नदी की तेज धारा में बह गए। राजशाही के उत्पीड़न के खिलाफ आंदोलन में शहीद हुए लोगों की याद में आज भी तिलाड़ी में स्मारक है, लेकिन प्रचार और प्रसार, शासन की उपेक्षा के चलते इन शहीदों के बारे में नई पीढ़ी को जानकारी नहीं मिल पा रही है। तब ये इलाका टिहरी जिले में पड़ता था। 24 फरवरी 1960 को टिहरी से अलग कर उत्तरकाशी जिला बना। अब ये इलाका उत्तरकाशी जिले में है। यही नहीं, तब उत्पीड़न का आलम यहां तक था कि खबर छापने पर संपादक को भी जेल हो गई थी।
तिलाड़ी का यह आन्दोलन उत्तराखंड का ही नहीं वरन पूरे भारत का पहला आंदोलन हैं जिसमें लोगों ने जंगल पर अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ी थी। जहां अपने अधिकारों व हक हकूको की मांग कर रही जनता पर शासक नरेंद्र शाह के दीवान चक्रधर के मार्फत यह लोमहर्षक हत्याकांड रचा गया। जंगलों पर स्थानीय लोगों के इस आंदोलन को सरकार भी भूल गयी हैं। साथ ही विपक्षी दलों के नेता भी। छोटी छोटी बातों को लेकर ट्विट करने वाले लोग भी इस गोलीकांड को भूलने लगे हैं।
तत्कालीन टिहरी नरेश ने दर्जनों लोगों को गोली से इसलिए भुनवा दिया, क्योंकि वहां की जनता अपने हक की बहाली के लिए पहली बार लामबंद हुई थी। बेचारी जनता का अपराध सिर्फ इतना था कि वह राजा की आज्ञा के बिना ही अपने वन अधिकारों की बहाली को लेकर यमुना तट की तिलाडी में एक महापंचायत कर रही थी। राजा के चाटुकारों को यह पसंद नहीं आया ।
पूर्व विधायक विद्यासागर नौटियाल के उपन्यास “यमुना के बागी बेटे” मैं इसका बहुत विस्तार से वृतांत दिया गया है। खुद विद्यासागर नौटियाल को इस उपन्यास के लिए सामग्री जुटाने और कथा को उपन्यास के रूप में ढालने में उन्हें 28 साल से अधिक लग गए। तिलाड़ीकांड जन आंदोलनों का एक सूत्रपात था। इसे पर्वतीय क्षेत्र का पहला क्रांतिकारी आंदोलन कहा जा सकता है।
तत्कालीन समय में जल जंगल और जमीन पर मालिकाना हक दरबार का होता था। प्रजा जन दरबारियों की इजाजत के बगैर जंगलों में प्रवेश नहीं कर सकती थी। ऊंचे पहाड़ी शिखरों व घाटियों के जंगलों, चारागाहों में सदियों से लोग पशुपालन पर किसी तरह अपना गुजारा करते आए थे। वहीं, अपने राज महल के स्वर्ग में निवास करने वाला उनका राजा उनके जैसे मामूली सपने नहीं देखता था।
उसकी वफादारी गुलाम प्रजा के प्रति नहीं, बल्कि लंदन में बैठने वाले अंग्रेज महाप्रभु के प्रति थी। उस जमाने सुदूर रवाईं के समाचार महीनों बाद देहरादून पहुंच पाते थे। तत्कालीन गढ़वाल के पहले समाचार पत्र गढ़वाली के संपादक विशंभर दत्त चंदोला ने अपने समाचार पत्र “गढ़वाली” में तिलाडी कांड की घटना को प्रमुखता से छापा था। चौतरफा इस घटना की निंदा की गई व इस घटना को “जालियांवाला बाग कांड” की संज्ञा दी गई और राजा के हुक्मरानों को जनरल डायर की संज्ञा दी गई।
समाचारों को प्रकाशित करने के मुलजिम साप्ताहिक गढ़वाली के संपादक विश्वंभर दत्त चंदोला ने अदालत में अपने संवाददाता का नाम बताने से इंकार कर दिया था। अंग्रेज भारत की अदालत ने उन्हें सश्रम कारावास की सजा दी थी। आज 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस भी है। ऐसे में तक पत्रकारिता का कर्तव्य नैतिकता साहस को रोशनी प्रदान करते रहने वाले कलम के उस निर्भीक योद्धा विशंभर दत्त चंदोला को विनम्र श्रद्धांजलि।
तिलाडी मैदान मे लगभग 450 जमा हुए थे व 100के आसपास शहीद हुए थे। कुछ लोग लापता व कुछ घायल हुए थे। इसका उल्लेख विद्यासागर नौटियाल ने अपने उपन्यास “यमुना के बागी बेटे” में किया है। इसके बाद इन ग्रामीणों पर झूठे मुकद्दमे थोपे गये। जिन्हें बाद में राजा को जन दबाव के चलते और चारों हुई इस तिलाड़ी कांड की भर्त्सना के कारण वापस लेना पडा। अन्तत: विजय जनता जनार्दन की हुई।
इसी समय भारतवर्ष मे आजादी का राष्ट्रीय आन्दोलन चल रहा था। श्रीदेव सुमन ने प्रजामंडल की स्थापना की थी। वे भी राजा के कुली बेगार कुली उतार व कुली बर्दायश जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ लड रहे थे। श्रीदेव सुमन व अन्य सभी स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों ने इस रवाई तिलाडी गोलीकांड की आलोचना की। सारे देश में यह खबर फैली।
बताया तो यहां तक जाता है कि दिल्ली के अखबारों तक इस अमानवीय व्यवहार की गूंज सुनाई दी। स्वतन्त्र भारत में दौलत राम रवांल्टा ने लखनऊ में अपने समर्थकों सहित भूख हडताल पर बैठे व रवाईं तिलाडी गोलीकांड में शहीद व लापता हुए व जीवित तत्कालीन क्रान्तिकारियों को “स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी” का दर्जा दिये जाने की मांग की। जोकि तत्कालीन उत्तरप्रदेश सरकार को जनदबाव के आगे मानना पडा व “स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी” घोषित कर दिए।
इस “तिलाडी महापंचायत” रवाईं की 16 व जौनपुर परगना की नौ पट्टियों का अपार जनसमूह शामिल था। रवाईं की पंचगाञी, फतेहपर्वत, बंगाण, सिंगतूर गीठ भण्डारस्यूं, बनाल दरब्याट, रामासिराईं तल्ली-मल्ली बडकोट, पौंटी ठकराल, बड्यार मुगरसन्ती आदि। जौनपुर की खाटल, गोडर, इड्वालस्यूं, लालूर, छज्यूला, दसज्यूला, पालीगाड, सिलवाड, दशगी-हातड आदि।
बडकोट (उत्तरकाशी) तिलाडी और जिब्या कोटधार दशगी (उत्तरकाशी) में तिलाडी शहीद स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी स्मारक स्थल है। युगों युगों तक ये क्रान्तिकारी याद आते रहेंगे व आने वाली पीढी को अपने हकों के लिए कैसे लडा जाता है, इसकी प्रेरणा देते रहेंगे।
मुझे तोड लेना बनमाली उस पथ पर देना फेंक
मातृभूमि पर शीष चढाने जा यें जहां वीर अनेक
शहीद स्मारक उपेक्षित
स्वतन्त्रता के बाद सरकारों ने तिलाड़ी शहीद स्मारक की उपेक्षा की। वर्तमान में भी सरकार, शहीद स्मारक स्थल तो बना रही हैं, लेकिन जिस स्थान पर आंदोलनकारी शहीद हुए, उसे भूलाया जा रहा है। इन स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों के परिजनों के लिए भी कोई विशेष कदम नहीं उठाए गए। ना ही शहीद स्मारक तिलाड़ी (रवाईं) बडकोट में कोई विशेष कार्य आज तक किया गया। ना ही किसी भी सरकार ने इस ऐतिहासिक शहीद स्मारक को विकसित किया। इससे स्थानीय जनता में काफी रोष है कि सरकार ने इन क्रान्तिकारियों व शहीदों को सम्मान के लिए कोई ठोस कदम नही उठाया।
इस क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों,शिक्षाविदों स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों की उत्तराखंड सरकार से अपील है कि उत्तराखंड के जालियांवाबाग कांड के नाम से प्रचलित इस ऐतिहासिक आन्दोलन को उत्तराखंड के विद्यालयों मे पाठ्यक्रम मे शामिल किया जाय। इससे यहां का जनमानस इस ऐतिहासिक विरासत को जान व समझ सकें।


लेखक का परिचय
रामचन्द्र नौटियाल राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय गड़थ विकासखंड चिन्यालीसौड, उत्तरकाशी में भाषा के अध्यापक हैं। वह गांव जिब्या पट्टी दशगी जिला उत्तरकाशी उत्तराखंड के निवासी हैं। रामचन्द्र नौटियाल जब हाईस्कूल में ही पढ़ते थे, तब से ही लेखन व सृजन कार्य शुरू कर दिया था। जनपद उत्तरकाशी मे कई साहित्यिक मंचों पर अपनी प्रस्तुतियां दे चुके हैं।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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