तिलाड़ी गोलीकांडः उत्तराखंड के इतिहास में काला दिन, शहादत को याद कर आज भी सिहर उठते हैं लोगः रामचंद्र नौटियाल
उत्तराखंड का इतिहास अनेकों आंदोलनों से भरा पड़ा है। अपने हक़ हकूक की लड़ाई में अनेक उत्तराखंडियों ने अपना जीवन न्योछावर किया है। अपने हको के लिए हुए अनेक आंदोलनों में से एक चर्चित आंदोलन तिलाड़ी आंदोलन या तिलाड़ीकांड अपने हक़ की मांग करते लोगो पर अत्यचार का एक काला अध्याय है। एक तरफ देशभर में लोग अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ लड़ रहे थे, वहीं, उत्तराखंड में टिहरी के लोग टिहरी रियासत के अत्याचारों के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे। 30 मई 1930 को टिहरी रियासत के अधिकारियों ने तिलाड़ी के मैदान में अपने हकहकूकों को लेकर पंचायत कर रहे सैकड़ों ग्रामीणों को गोलियों से भून डाला था। गोलियों से बचने के लिए भागे कई ग्रामीण यमुना नदी में बह गए थे। तिलाड़ी कांड को रवाईं ढंडक और गढ़वाल के जलियावाला बाग कांड के नाम से जाना जाता है। इस गोलीकांड को याद कर आज भी लोग सिहर उठते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
टिहरी रियासत ने किए ये अत्याचार
तिलाड़ी कांड एक माह या एक साल में उपजा आंदोलन नहीं था। ब्रिटिश सरकार ने वनो के अनियमित दोहन को रोकने के लिए वन सम्पदा दोहन के अधिकार आपने हाथ में ले लिए। इसी को आगे बढ़ाते हुए टिहरी रियासत ने 1885 में वन बंदोबस्त शुरू किया। 1927 में रवाई घाटी में भी वन बंदोबस्त शुरू कर दिया गया। तब रंवाई घाटी टिहरी जिले में थी। उत्तरकाशी जिला 24 फरवरी 1960 में बनाया गया। वन बंदोबस्त के तहत ग्रामीणों के जंगलों अधिकार ख़त्म कर दिए। वन संपदा के प्रयोग पर कर लगा दिए गए। पारम्परिक त्योहारों पर भी रोक लगा दी गई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
बढ़ने लगा आक्रोश
एक भैस एक गाय और एक जोड़ी बैल से अधिक पशु रखने पर एक पशु पर एक रूपये साल का कर थोप दिया गया। इसकी वजह से रवाई घाटी के स्थानीय लोगों में रोष बढ़ने लगा। नए वन बंदोबस्त में वनो पे पशु चराने पर शुल्क , नदियों में मछली मरना भी बंद करवा दिया। आलू की उपज पर प्रतिमन एक रुपया कर लगा दिया। इस प्रकार के कर जनता के ऊपर थोप दिए गए। इससे जनता में आक्रोश फ़ैल गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अत्याचारों के खिलाफ एकजुट होने लगे लोग
टिहरी के राजा नरेन्द्रशाह की राजधानी में अंग्रेज गवर्नर हेली अस्पताल की नीव रखने आये। इस आयोजन में समस्त राज्य और बाहर से भी कई लोग आये थे। राजा नरेन्द्रशाह के राजदरबार की तरफ से गवर्नर हेली के मनोरंजन के लिए गरीब लोगो को नंगा होकर तालाब में कूदने को कहा गया। इस कारण जनमानस के मन में विद्रोह की आग जलने लगी। आख़िरकार अपने हक़ हकूकों की रक्षा के लिए जनता आगे बढ़ी और उन्होंने रवाई पंचायत की स्थापना की। अत्याचारों के खिलाफ जगह जगह बैठकें, जनसभाओं और मीटिंग का सिलसिला शुरू हुआ। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

30 मई 1930 को तत्कालीन टिहरी राज्य रियासत में जंगलों के हक हुकूक को लेकर रवाई जौनपुर परगना के ग्रामीण लोग अपने लकड़ी घास चारा को लेकर यमुना नदी के तट पर बड़कोट शहर के निकट तिलाडी में एक आम विचार-विमर्श शांतिपूर्ण ढंग से कर रहे थे। इस असहाय जनता पर टिहरी नरेश नरेंद्र शाह बिना की फौज ने ताबड़तोड़ गोलियां चलाई। क्रूर नरेंद्र शाह की फौज ने तीनों तरफ से तिलाड़ी मैदान में इक्कठे हुए सैकड़ों ग्रामीण लोगों को घेर लिया। चौथी तरफ से यमुना नदी बहती है। इस हृदय विदारक घटना में कुछ गोलियों के शिकार हुए। कुछ ने बचने के लिए यमुना में छलांग लगा दी और वे नदी की तेज धारा में बह गए। तिलाडी मैदान मे लगभग 450 जमा हुए थे। इनमें करीब 100 के आसपास लोग शहीद हुए थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दीवान चक्रधर के मार्फत रही गोलीकांड की साजिश
अपने अधिकारों व हक हकूको की मांग कर रही जनता पर शासक नरेंद्र शाह के दीवान चक्रधर के मार्फत यह लोमहर्षक हत्याकांड रचा गया। तत्कालीन टिहरी नरेश ने दर्जनों लोगों को गोली से इसलिए भुनवा दिया, क्योंकि वह अपने हक की बहाली के लिए पहली बार लामबंद हुए थे । बेचारी जनता का अपराध सिर्फ इतना था कि वह राजा की आज्ञा के बिना ही अपने वन अधिकारों की बहाली को लेकर यमुना तट की तिलाडी में एक महापंचायत कर रहे थे। राजा के चाटुकारों को यह पसंद नहीं आया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
विद्यासागर नौटियाल के उपन्यास में पूरा वृतांत
पूर्व विधायक एवं साहित्यकार विद्यासागर नौटियाल के उपन्यास “यमुना के बागी बेटे” में इसका पूरा वृतांत दिया गया है। खुद विद्यासागर नौटियाल को इस उपन्यास के लिए सामग्री जुटाने और कथा को उपन्यास के रूप में ढालने में उन्हें 28 साल से अधिक लग गए। तिलाड़ीकांड जन आंदोलनों का एक सूत्रपात था। पर्वतीय क्षेत्र का पहला क्रांतिकारी आंदोलन इसे कहा जा सकता है। तत्कालीन समय में जल जंगल और जमीन पर मालिकाना हक दरबार का होता था। प्रजा जन दरबारियों की इजाजत के बगैर उन जंगलों में प्रवेश नहीं कर सकते थे। ऊंचे पहाड़ी शिखरों व घाटियों के जंगलों, चारागाहों में सदियों से पशुपालन पर किसी तरह अपना गुजारा करते आए थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
विशंभर दत्त चंदोला ने प्रमुखता से छापा था समाचार
वहीं, अपने राज महल के स्वर्ग में निवास करने वाला उनका राजा उनके जैसे मामूली सपने नहीं देखता था। उसकी वफादारी गुलाम प्रजा के प्रति नहीं, बल्कि लंदन में बैठने वाले अंग्रेज महाप्रभु के प्रति थी। उस जमाने सुदूर रवाईं के समाचार महीनों बाद देहरादून पहुंच पाते थे। तत्कालीन गढ़वाल के पहले समाचार पत्र गढ़वाली के संपादक विशंभर दत्त चंदोला ने अपने समाचार पत्र “गढ़वाली” में तिलाडी कांड की घटना को प्रमुखता से छापा था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जनरल डायर की दी गई संज्ञा
चौतरफा इस घटना की निंदा की गई व इस घटना को “जालियांवाला बाग कांड” की संज्ञा दी गई और राजा के हुक्मरानों को जनरल डायर की संज्ञा दी गई। समाचारों को प्रकाशित करने के मुलजिम साप्ताहिक गढ़वाली के संपादक विश्वंभर दत्त चंदोला ने अदालत में अपने संवाददाता का नाम बताने से इंकार कर दिया था। अंग्रेज भारत की अदालत ने उन्हें सश्रम कारावास की सजा दी थी। युगों युगों तक पत्रकारिता का कर्तव्य नैतिकता साहस को रोशनी प्रदान करते रहने वाले कलम के उस निर्भीक योद्धा विशंभर दत्त चंदोला को विनम्र श्रद्धांजलि। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
आखिरकार जनता ही हुई जीत
इसके बाद इन ग्रामीणों पर झूठे मुकद्दमे थोपे गये। इन्हें बाद में राजा को जन दबाव के चलते और चारों हुई इस तिलाडीकाण्ड की भर्त्सना के कारण वापस लेना पडा। अन्तत: विजय जनता जनार्दन की हुई। इसी समय भारतवर्ष मे आजादी का राष्ट्रीय आन्दोलन चल रहा था। श्रीदेव सुमन प्रजामण्डल की स्थापना की थी। वे भी राजा के कुली बेगार कुली उतार व कुली बर्दायश जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ लड रहे थे। श्रीदेव सुमन व अन्य सभी स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों ने इस रवाई तिलाडी गोलीकांड की आलोचना की। साथ ही सारे देश में यह खबर फैली। बताया तो यहां तक जाता है कि दिल्ली के अखबारों तक इस अमानवीय व्यवहार की गूंज सुनाई दी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी घोषित
स्वतन्त्र भारत में दौलत राम रवांल्टा ने लखनऊ में अपने समर्थकों सहित भूख हडताल पर बैठे व रवाईं तिलाडी गोलीकांड में शहीद व लापता हुए व जीवित तत्कालीन क्रान्तिकारियों को “स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी” का दर्जा दिये जाने की मांग की। जोकि तत्कालीन उत्तरप्रदेश सरकार को जनदबाव के आगे मानना पडा व “स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी” घोषित कर दिए। इस “तिलाडी महापंचायत” रवाईं की 16व जौनपुर परगना की नौ पट्टियों का अपार जनसमूह शामिल था। रवाईं की पंचगाञी, फतेहपर्वत, बंगाण, सिंगतूर गीठ भण्डारस्यूं, बनाल दरब्याट, रामासिराईं तल्ली-मल्ली बडकोट, पौंटी ठकराल, बड्यार मुगरसन्ती आदि। जौनपुर की खाटल, गोडर,इड्वालस्यूं, लालूर, छज्यूला, दसज्यूला, पालीगाड, सिलवाड, दशगी-हातड आदि। अब घटनास्थल पर शहीद स्मारक भी बनाय गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
याद आते रहेंगे क्रांतिकारी
युगों युगों तक ये क्रान्तिकारी याद आते रहेंगे व आने वाली पीढी को अपने हकों के लिए कैसे लड़ा जाता है, इसकी प्रेरणा देते रहेंगे। तिलाडी के उन वीर स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों को हम शत शत नमन व हार्दिक श्रदांजलि अर्पित करते हैं।
मुझे तोड लेना बनमाली उस पथ पर देना फेंक
मातृभूमि पर शीष चढाने जा यें जहां वीर अनेक।
लेखक का परिचय
रामचन्द्र नौटियाल राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय गड़थ विकासखंड चिन्यालीसौड, उत्तरकाशी में भाषा के अध्यापक हैं। वह गांव जिब्या पट्टी दशगी जिला उत्तरकाशी उत्तराखंड के निवासी हैं। रामचन्द्र नौटियाल जब हाईस्कूल में ही पढ़ते थे, तब से ही लेखन व सृजन कार्य शुरू कर दिया था। वह कई साहित्यिक मंचों पर अपनी प्रस्तुतियां देते रहते हैं।
नोटः सच का साथ देने में हमारा साथी बनिए। यदि आप लोकसाक्ष्य की खबरों को नियमित रूप से पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दिए गए आप्शन से हमारे फेसबुक पेज या व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं, बस आपको एक क्लिक करना है। यदि खबर अच्छी लगे तो आप फेसबुक या व्हाट्सएप में शेयर भी कर सकते हो। यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब (subscribe) कर सकते हैं।

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।