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November 17, 2024

तीन वामदलों ने सरकार पर लगाया नफरत की राजनीति का आरोप, राजधानी दून में दिया सामूहिक धरना

उत्तराखंड के तीन वामदलों ने प्रदेश सरकार पर लैंड जिहाद और लव जिहाद के नाम पर राज्य में नफरत की राजनीति करने का आरोप लगाया। कहा कि पूरे प्रदेश का माहौल खराब हो रहा है। इसके खिलाफ जिला स्तर पर धरनों का आयोजन किया गया। राजधानी देहरादून में दीनदयाल पार्क पर संयुक्त धरना दिया गया। इस धरने का आह्वान भाकपा, माकपा, भाकपा (माले) की ओर से किया गया था। इसमें इन दलों के अलावा अन्य श्रमिक संगठन, किसान संगठन सहित अन्य समान विचारधारा वाले लोगों ने शिरकत की। साथ ही राज्यपाल को ज्ञापन भेजकर नफरत की राजनीति पर रोक लगाने की मांग की गई। ये धरना सुबह 11 बजे से लेकर दोपहर दो बजे तक चला। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इस मौके पर वक्ताओं ने कहा कि कहा कि लैंड जिहाद और लव जिहाद जैसी असंवैधानिक शब्दावली का निरंतर प्रयोग करके मुख्यमंत्री ने स्वयं सांप्रदायिक उन्माद के प्रचारक की भूमिका निभाई। पुरोला में सांप्रदायिक तनाव के दौरान वे दो मौकों पर उत्तरकाशी जिले में थे, लेकिन वहां रहने के दौरान एक भी बार लोगों से न तो शांति की अपील की और न ही कानून हाथ में लेने वालों की खिलाफ कार्यवाही की बात कही। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

वक्ताओं ने कहा कि चार फरवरी 2020 में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने लोकसभा में लिखित जवाब दिया कि लव जिहाद कानूनी रूप से परिभाषित नहीं है। केंद्रीय एजेंसियों ने लव जिहाद का कोई मामला रिपोर्ट नहीं किया है। देश में 2011 से कोई जनगणना नहीं हुई है तो मुख्यमंत्री के पास कौन सा आंकड़ा है, जिसके आधार पर वे डेमोग्राफी में बदलाव जैसी असंवैधानिक शब्दावली का प्रयोग कर रहे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

वक्ताओं ने सवाल उठाए कि लैंड जिहाद जैसी शब्दावली भी असंवैधानिक और गैर कानूनी है। यह उस सरकार का मुखिया प्रयोग कर रहा है, जिन्होंने स्वयं प्रदेश में ज़मीनों की असीमित बिक्री का कानून बनाया। बहुसंख्यक हिंदुओं में अल्पसंख्यकों के प्रति डर और घृणा का भाव भरा जा रहा है। इसके पीछे असल मकसद ध्रुवीकरण करके वोटों की फसल बटोरना है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

वक्ताओं ने आरोप लगाया कि अल्पसंख्यकों को जिस तरह घर-दुकान खाली करने के लिए आरएसएस समर्थित सांप्रदायिक समूहों द्वारा धमकाया जा रहा है, वह पूरी तरह गैर कानूनी है। ऐसे समूहों और व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय ऐसा प्रदर्शित किया जा रहा है, जैसे कि उन्हें प्रशासनिक संरक्षण हासिल हो। किसी भी तरह के अपराध की रोकथाम और अंकुश लगाने की कार्यवाही कानूनी तरीके से होनी चाहिए। किसी भी स्वयंभू धार्मिक संगठन या व्यक्ति को उसकी आड़ में कानून और संविधान से खिलवाड़ की अनुमति कतई नहीं मिलनी चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

वक्ताओं ने कहा कि माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेशों के बावजूद उत्तराखंड में पुलिस द्वारा नफरत भरे भाषण देने वालों के खिलाफ कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं की जा रही है। राज्य की पुलिस और पुलिस प्रमुख को बताना चाहिए कि उसकी क्या मजबूरी है, जो उसे उच्चतम न्यायालय की अवमानना करने के लिए विवश कर रही है। साथ ही राज्य के तमाम नागरिकों से अपील की गई है कि वे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के इस जेल में न फंसे। इस जाल मे लोगों को फांसने वाले तो इससे लाभ हासिल करेंगे पर आम जन के हिस्से इस से बर्बादी ही आएगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

इस दौरान कहा गया कि उत्तराखंड में नौकरियों की लूट, जल-जंगल-जमीन की लूट, स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली, पलायन, जंगली जानवरों का आतंक, पर्वतीय कृषि की तबाही जैसे तमाम सवाल हैं। जो उत्तराखंड की व्यापक जनता के सवाल हैं। इनके लिए मिल कर संघर्ष करने की आवश्यकता है। इन सवालों का हल करने में नाकाम सत्ता ही लोगों को धर्म के नाम पर लोगों को बांट कर इन सवालों पर अपनी असफलता से बच निकलना चाहते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

वक्ताओं ने कहा कि प्रतिगामी ताकतों ने शान्त राज्य को अशांत करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। इसके जबाब में साम्प्रदायिक सौहार्द के लिये किये गये सभी प्रयासों ने सरकार को बैकफुट पर ला खड़ा कर दिया। मजबूरन आज सरकार को शान्ति कानून व्यवस्था की बात करने के लिए विवश होना पड़ा है। शान्ति, आपसी सदभाव एवं भाईचारे के लिए सभी सौहार्दपूर्ण वातावरण चाहने वालों का संघर्ष जारी रहेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

ये रहे उपस्थित
इस अवसर सीपीआई के राष्ट्रीय परिषद के सदस्य समर भंडारी, सीपीएम राज्य सचिव राजेंद्र सिंह नेगी, सीपीआई (एमएल) के राज्य सचिव इन्देश मैखुरी, जिलासचिव राजेंद्र पुरोहित, महानगर सचिव अनन्त आकाश, पछवादून सचिव कमरूद्दीन, किसान सभा के राज्य अध्यक्ष सुरेन्द्र सिंह सजवाण, महामंत्री गंगाधर नौटियाल, पूर्व जिलापंचायत अध्यक्ष शिवप्रसाद देवली, सीपीआई के वरिष्ठ नेता गिरिधर पण्डित, जीडी डंगवाल, एटक के महामंत्री अशोक शर्मा, एसएस रजवार, हरिओम पाली, बिक्रम सिंह पुण्डीर, चेतना मंच से शंकर, उत्तराखण्ड लोक वाहिनी के राजीव लोचन शाह, जन सरोकारों से त्रिलोचन भट्ट, पीएसएम के विजय भट्ट, पीपुल्स फोरम के जयकृत कण्डवाल, सीआईटीयू के जिला अध्यक्ष कृष्ण गुनियाल, महामन्त्री लेखराज, उपाध्यक्ष भगवन्त पयाल, बैंक यूनियन के नेता जगमोहन मेहंदीरता, एसएफआई के अध्यक्ष नितिन मलेठा, महामन्त्री हिमांशु चौहान, विश्वविद्यालय इकाई की सचिव सभी सामवेदी, जनवादी महिला समिति की अध्यक्ष नुरैशा अंसारी, उपाध्यक्ष बिन्दा मिश्रा, डीएसएम के महेंद्र, एआईएलयू के शम्भू प्रसाद ममगाई, बीजीवीएस के इन्देश नौटियाल, जनसंवाद के सतीश धौलाखण्डी, किसान सभा की कोषाध्यक्ष माला गुरूंग, अमर बहादुर शाही, इस्लाम, एजाज, कुन्दन, रामसिंह, गुमानसिंह, संगीता, अनिता, एन एस पंवार, यूएन बलूनी, राजेंद्र शर्मा, राजेश कुमार आदि बड़ी संख्या में तीन दलों के कार्यकर्ता एवं सामाजिक संगठनों के लोग शामिल थे। सभा का समापन ट्रेड यूनियन नेता जगदीश कुकरेती ने किया।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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