12 वर्ष के स्थान पर इस बार 11 साल में है महाकुंभ, जानिए कारण, देश में बड़े परिवर्तन का दे रहा संकेत: आचार्य डॉ. संतोष खंडूड़ी
इस बार हरिद्वार महाकुंभ 12 वर्ष में नहीं 11 वर्ष में हो रहा है। पूर्व में 2010 महाकुंभ के अनुसार यह 2022 में 12 वर्ष के अंतराल में आना चाहिए था। लेकिन इस बार 11 साल में मनाया जा रहा है। ग्रह नक्षत्र मुहूर्त के अनुसार अर्थात ज्योतिषी गणनाओं के आधार पर जब गुरु बृहस्पति कुंभ राशि पर और सूर्य मेष राशि पर प्रवेश करते हैं, उसी काल में महाकुंभ पर्व मनाया जाता है। यह गृह योग कर्ण की स्थिति 2022 की बजाय 2021 में आ रही है। ऐसे में इसी साल हरिद्वार महाकुंभ मनाया जा रहा है। वहीं, महाकुंभ की अवधि को घटाने को लेकर आचार्य डॉ. संतोष खंडूड़ी किसी बड़े खतरे के संकेत भी बता रहे हैं। आइए जानते हैं उनकी राय क्या है।
धीरे धीरे कमजोर पड़ रहा है महाकुंभ
12 वर्ष में आने के बाद चार माह के लिए महाकुंभ मनाया जाता है। इस कारण यह महाकुंभ वक्त से पहले 11 वें वर्ष में होने जा रहा है। जैसे कि कोई भी बच्चा वक्त से पहले होता है तो वे कमजोर होता है, इस स्थिति को देखते हुए यह देखा जा रहा है कि कुंभ वक्त से पहले होने पर कुंभ धीरे धीरे कमजोर पड़ता जा रहा है। आर्थात शिथिल होता दिखाई दे रहा है। इसमें कोरोना महामारी के चलते सरकार की व्यवस्थाओं को देखते हुए अभी तक कुंभ के दो माह बीतने जा रहे हैं, लेकिन अब सरकार ने इस महाकुंभ को मात्र एक माह से लिए ही सिमटा दिया है।
देश में बड़े परिवर्तन का दे रहा संकेत
वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह संदेश आम जनमानस सहित राजनेताओं के लिए भी सावधान करने के लिए है। निश्चित ही इस घटना को देखकर अब हर कार्य वक्त से पहले परिवर्तन की स्थिति को दोहराता है। अर्थात गृह नक्षत्र और प्रकृति के इस दिव्य संयोग को देखते हुए निश्चित ही एक बड़ा परिवर्तन दिखाई दे रहा है। जो किसी विशेष रूप में आम जन को भोगना पड़ सकता है। आमजन के प्रयोग में आने वाली हर वस्तु, जो विषतुल्य दिखाई देगी। अर्थात पुराणों में कहा गया है धर्मो रक्षति रक्षित:। अर्थात आमजन हो या सरकार यदि धर्म का संरक्षण व संवर्धन नहीं होगा तो किसी की भी रक्षा नहीं हो पाएगी। पहला कर्तव्य की रक्षा करेंगे तो धर्म आपकी रक्षा करेगा।
युगों से चली आ रही परंपरा, सरकार पड़ रही कमजोर
यह कुंभ आज से नहीं, युगों युगों से चली आ रही यह परंपरा धरती पर देव, गंधर्व, मानव, दानव सभी को एक सूत्र में बांटने का काम करती है। साधु, संत, सन्यासी, योगी, अपने जप-तप योग व यज्ञ के माध्यम से इस महाकुंभ को सुशोभित करते हैं। चार माह की यह तपस्या धरती को पुनर्जीवन देती है। व धरती का संतुलन भी बनाती है, परंतु पिछले लंबे समय से हो रही प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की वजह से हमारे त्योहार, पर्व जो हमें एकता के सूत्र में बांधते थे, वो अब सिमटते हुए दिखाई दे रहे हैं। जिसमें कि सरकार भी कमजोर पड़ती दिखाई दे रही है।
चार माह में होते रहे ये स्नान
महाकुंभ जहां कि चार माह माह का होता था। इस अवधि में मकर संक्रांति, पौष पूर्णिमा, एकादशी, मौनी अमावस्या, बसंत पंचमी, रथ सप्तमी, माघी पूर्णिमा, भीष्म एकादशी, महाशिवरात्रि, सोमवती आमावस्या, बैसाखी, पूर्णिमा आदि इतने स्नान होते थे। अब सिमट करके सरकार ने महाकुंभ को अप्रैल माह के अंदर सिर्फ तीन स्नानों को ही महत्व दिया है। इसमें सोमवती आमावस्या, बैसाखी और पूर्णिमा ही रह गए हैं।
एक माह करने से हो सकती है दिक्कत
इन स्नानों को लेकर अखाड़ा परिषद, पंत समुदाय, पंडा समाज, व्यापार मंडल आदि सभी असंतुष्ट हैं। जहां जो आम जनता चार माह में क्रम में आनी थी, अब वो एक माह के भीतर आने पर और सीमित स्नानों का समय होने पर बीमारी व भगदड़ की स्थिति पैदा हो सकती है। क्योंकि 12 वर्षों से किया जाने वाला आमजन का इंतजार हर व्यक्ति कुंभ को लेकर पूरी तरह तैयार रहता है। अभी भी कुंभ को लेकर सरकार ने हरी झंडी नहीं दी।
अप्रैल माह में हो सकता है संकट
यह आने वाले अप्रैल माह में बड़े संकट का कारण हो सकता है। तमाम व्यापारी, यातायात अन्य सभी लोग कुंभ की योजनाओं को लेकर टकटकी लगाए हैं। जबकि जहां चारों ओर मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च ही नहीं, स्कूल भी खोल दिए गए हैं। तमाम आफिसों को हर कार्य के लिए खोल दिया गया है। तो कुंभ को लेकर अटकलें क्यों की जा रही हैं। क्या कोरोना केवल कुंभ के लिए ही आया है। या सरकार की अभी तक कुंभ को लेकर कोई तैयारी नहीं है। आखिर कुंभ बना सरकार के लिए समस्या। क्या संत समुदाय या अखड़ा परिषद निकाल पाएंगे समाधान।
देवताओं और दानवों के प्रयासों की देन है महाकुंभ
यह महाकुंभ देव और दानवों के द्वारा किए गए प्रयास समुद्र मंथन का परिणाम है। इसमें से निकले अमृत के घड़े की बूंद जब और जहां धरती पर गिरी वहीं, महाकुंभ का दिव्य रूप दिखाई दिया।
आचार्य का परिचय
आचार्य डॉ. संतोष खंडूड़ी
(धर्मज्ञ, ज्योतिष विभूषण, वास्तु, कथा प्रवक्ता)
चंद्रविहार कारगी चौक, देहरादून, उत्तराखंड।
फोन-9760690069
-9410743100
कुंभ 11 वर्ष में आना कोई अनहोनी घटना नहीं है। लगभग 83 वर्ष पर कुंभ 11वें वर्ष आता है।
आचार्य ? महोदय बृहस्पति की यात्रा की गणितीय जानकारी नहीं रखते हैं। बृहस्पति पूरे 12 वर्ष में नहीं बल्कि लगभग पौने बारह वर्ष में सूर्य की परिक्रमा पूरी करते हैं। इस तरह सातवां कुंभ 11वर्ष में पड़ता है। कोई अशुभ फल नहीं है।
भ्रम न फैलाएं आचार्य।
कुंभ कमजोर पड़ने का बयान गलत है।
लगभग प्रत्येक 7वां कुंभ 11 वर्ष पड़ता है। बृहस्पति 11वर्ष कुछ महिनों और दिनों में सूर्य की परिक्रमा पूरी करता है पूरे 12साल में नहीं। ऐसा होता रहेगा। अपशकुन नहीं है।