इस कंपनी ने बीजेपी को दिया 52 करोड़ का चंदा, उसकी कोरोना वैक्सीन से हार्ट अटैक, खून के थक्के

कोरोना वैक्सीन को लेकर जहां केंद्र सरकार प्रचार कर लोगों से वोट मांग रही है। वहीं, इसकी वैक्सीन को लेकर एक नई जानकारी सामने आई है। भारत में कोविशिल्ड नाम से वैक्सीन बनाने वाली कंपनी ने यूके की अदालत में खुद ही स्वीकार किया कि उनकी वैक्सीन के कई साइड इफेक्ट हो सकते हैं। इसमें खास बात ये है कि इस टीके को बनाने वाली कंपनी ने इलेक्टोरल बांड के जरिये बीजेपी को 52 करोड़ रुपये का चंदा दिया। पिछले कुछ समय से भारत में हार्ट अटैक के मामले बढ़ने लगे हैं। ऐसे में लोग कोरोना के टीके पर संदेह व्यक्त कर रहे थे, लेकिन इसके कोई पुख्ता प्रमाण नहीं थे। अब कंपनी ने ही यूके की कोर्ट में इसका खुलासा किया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इलेक्टोरल बांड की सूची सार्वजनिक होने पर हुआ था खुलासा
सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बाँन्ड को असंवैधानिक करार दिया था। इसके बाद इसकी सूची सार्वजनिक करने पर खुलासा हुआ कि वैक्सीन बनाने वाली कंपनी कोविशील्ड ने भाजपा को 52 करोड़ का चंदा दिया। सीरम इंस्टीट्यूट ने प्रूडेंट ट्रस्ट को तीन किश्तों में 52.5 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए थे। पहली किश्त 40 करोड़ रुपये, दूसरी किश्त में 10 करोड़ रुपये और तीसरी किश्त में 2.5 करोड़ रुपये दिए। भारत में केंद्र ने कोविड-19 के दौरान सीरम इंस्टीट्यूट को वैक्सीन बनाने का एकाधिकार अधिकार दिया था। कहा जा रहा है कि इसकी एवज में ही बीजेपी को चंदा दिया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कंपनी ने स्वीकार किया कि हो सकते हैं साइड इफेक्ट
ब्रिटिश फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने पहली बार कोर्ट में स्वीकार किया है कि उसकी कोविड-19 वैक्सीन से गंभीर साइड इफेक्ट हो सकते हैं। इसी वैक्सीन को भारत में हम कोविशील्ड के नाम से जानते हैं। एस्ट्राजेनेका ने इस वैक्सीन को यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के साथ मिलकर तैयार किया था। वैक्सीन लेने के बाद मौत, ब्लड क्लॉटिंग और दूसरी गंभीर दिक्कतों के कारण एस्ट्राजेनेका कानूनी कार्रवाई का सामना कर रही है। कई परिवारों ने आरोप लगाया कि वैक्सीन के कारण गंभीर साइड इफेक्ट हुए हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भारत में कोविशील्ड के नाम पर हुआ इस्तेमाल
ब्रिटेन के हाईकोर्ट में पेश दस्तावेजों में एस्ट्राजेनेका ने साइड इफेक्ट्स की बात कबूल की है। हालांकि, वैक्सीन से होने वाले साइड इफेक्ट्स को स्वीकार करने के बाद भी कंपनी इससे होने वाली बीमारियों या बुरे प्रभावों के दावों का विरोध कर रही है। यह खबर भारत के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां कोविड-19 के प्रसार के दौरान बड़े पैमाने पर ऑक्सफोर्ड-एस्ट्रोजेनेका की इसी वैक्सीन को कोविशील्ड के नाम से इस्तेमाल किया गया था। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दूसरे देशों में भी किया गया निर्यात
भारतीय कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने एस्ट्राजेनेका से हासिल लाइसेंस के तहत देश में इस वैक्सीन का उत्पादन किया था और इसे सिर्फ भारत के कोविड टीकाकरण अभियान में ही नहीं इस्तेमाल किया गया था, बल्कि दुनिया के कई देशों को निर्यात किया गया। कोविशील्ड के अलावा इस वैक्सीन को कई देशों में वैक्सजेवरिया ब्रांड नाम से भी बेचा गया था। एस्ट्राजेनेका पर यह मुकदमा जेमी स्कॉट ने दायर किया है, जो इस टीके को लेने के बाद ब्रेन डैमेज के शिकार हुए थे। कई परिवारों ने भी कोर्ट में इस टीके के दुष्प्रभावों की शिकायत की थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कुप्रभाव को लेकर किया मुकदमा
ब्रिटिश अखबार द टेलीग्राफ ने कोर्ट के दस्तावेजों के हवाले से एक रिपोर्ट तैयार की है। इसके मुताबिक, एस्ट्राजेनेका के खिलाफ पहला केस जेमी स्कॉट नाम के व्यक्ति ने दर्ज करवाया था। अप्रैल 2021 में एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन लेने के बाद वे स्थायी रूप से ब्रेन इंजरी का शिकार हो गए। वैक्सीन लेने के बाद वो काम नहीं कर पाए। जेमी की हालत ऐसी थी कि अस्पताल ने उस दौरान उनकी पत्नी को तीन बार कॉल करके बताया कि उनके पति मरने वाले हैं। जेमी को TTS (थ्रोम्बोसिस विथ थ्रोम्बोसायटोपीनिया सिन्ड्रोम) नाम का गंभीर साइड इफेक्ट हुआ। इससे लोगों के दिमाग में खून के थक्के (Blood clots) बन जाते हैं और प्लेटलेट्स की संख्या कम हो जाती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
यूके हाईकोर्ट में कंपनी के खिलाफ 51 केस दर्ज
रिपोर्ट के मुताबिक, एस्ट्राजेनेका ने इस साल फरवरी में ही कोर्ट में डॉक्यूमेंट जमा किया। इसी में बताया कि इसकी कोविड वैक्सीन से कुछ मामलों में TTS हो सकता है। यूके हाई कोर्ट में कंपनी के खिलाफ 51 केस दर्ज हैं। पीड़ित परिवार वाले कंपनी से करीब 1000 करोड़ रुपये (100 मिलियन पाउंड) मुआवजे की मांग कर रहे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कंपनी दे रही थी ये तर्क
इससे पहले, मई 2023 में एस्ट्राजेनेका ने कहा था कि वैक्सीन के कारण सामान्य तौर पर TTS होने की बात को वो नहीं स्वीकारता है। हालांकि अब कंपनी कह रही है कि कुछ दुर्लभ मामलों में ऐसा हो सकता है। उसे नहीं पता कि ऐसा क्यों हुआ। कंपनी का ये भी कहना है कि वैक्सीन के बिना भी TTS हो सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पीड़ित परिवार ने लगाए ये आरोप
पीड़ित परिवारों के वकील ने कोर्ट में दावा किया कि एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन “खराब” है और इसके प्रभाव को “काफी बढ़ा-चढ़ाकर” दिखाया गया है। हालांकि एस्ट्राजेनेका ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। जब एस्ट्राजेनेका की कोविड-19 वैक्सीन लगनी शुरू हुई थी, तब भी इसके साइड इफेक्ट्स को लेकर खूब विवाद हुआ था। हालांकि तब कंपनी ने कहा था कि ट्रायल के दौरान वैक्सीन के कोई गंभीर साइड इफेक्ट्स देखने को नहीं मिले थे। कहा गया था कि वैक्सीन लगने के बाद थकान, गले में दर्द और हल्का बुखार जैसे लक्षण दिखे, लेकिन किसी की मौत या गंभीर बीमारी का कोई मामला सामने नहीं आया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भारत में कोविशील्ड की 80 फीसद डोज हुई इस्तेमाल
भारत में इस वैक्सीन का निर्माण सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) ने किया था। मार्केट में वैक्सीन आने से पहले ही SII ने एस्ट्राजेनेका के साथ समझौता किया था। सीरम इंस्टीट्यूट दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कंपनी है। भारत में करीब 80 फीसदी वैक्सीन डोज कोविशील्ड की ही लगाई गई है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पीड़ितों को झेलनी पड़ी सेंसरशिप
इसी साल जनवरी में द टेलीग्राफ ने एक और रिपोर्ट छापी थी। ये रिपोर्ट बताती है कि एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन के कारण जिन लोगों को गंभीर साइड इफेक्ट्स झेलने पड़े, उन पीड़ितों ने शिकायत की कि उन्हें सोशल मीडिया पर अपने लक्षणों के बारे में बात करने पर सेंसरशिप का सामना करना पड़ा है।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।