खूबसूरती का नजारा देखना है तो पिथौरागढ़ चले आइए, कीजिए नामिक ग्लेशियर की ट्रेकिंग
1 min readयूं तो उत्तराखंड के सभी जिलों में बेहद खूबसूरत पर्यटक स्थल हैं। ऐसे स्थलों में प्रकृति ने नेमते बिखेरी हुई है। कौन सा स्थल सबसे ज्यादा बेहतर है, ये कहना उचित नहीं होगा। क्योंकि सभी की अपनी खासियत है। हम यहां ऐसे ही स्थल का जिक्र कर रहे हैं, जो पिथौरागढ़ जिले में स्थित है। इसका नाम पर नामिक ग्लेशियर। इस ग्लेशियर की यात्रा भी रोमांचकारी है। यहां ट्रेकिंग करके पहुंचा जाता है। आइए हम आपको विस्तार से बताते हैं।
पिण्डारी ग्लेशियर के समकक्ष कुमाऊँ में नामिक ग्लेशियर भी ट्रेकिंग के लिए उपयुक्त है। नंदाकोट (6860 मीटर) शिखर श्रृंखला के दक्षिणी ढालों में फैला नामिक स्थल, अद्भुत सौन्दर्यशाली नामिक ग्लेशियर के मुहाने से उपजी रामगंगा द्वारा बनायी गयी हरियल नामिक घाटी है। यहीं रामगंगा के जलग्रहण क्षेत्र में अपने नाम के अनुरूप सदा दीप्तिमान हीरामणि पर्वत श्रृंखला, आनरगल, नंदाकुंड, थालाग्वार, चफवा व पेनठाग बुग्याल का विलक्षणदृश्यात्मकता किसी का भी मन रिझाने में समर्थ जान पड़ती है। नामिक ग्लेशियर और हीरामणि पिथौरागढ़ जनपद के जोहार-मुनस्वारी क्षेत्र में स्थित है। पिथौरागढ़-मुनस्यारी मोटर मार्ग में 112वें किलोमीटर पर स्थित बला गाँव ही नामिक के लिए ट्रैकिंग मार्ग की राह बनाता है।
बर्फ में अंग्रेज दौड़ाते थे लकड़ी की नाव
बला से नामिक की दूरी 48 किलोमीटर है। बला के ठीक सामने आकाश चूमती कालमुनि पर्वतमाला और उसके दक्षिण-पश्चिमी ढाल में गिरता विशाल बिरथी जल प्रपात हिमालयी सौन्दर्य की अनुभूति देते हैं। कुजगेर पुल पहुंचने पर यात्रा पथ सघन जंगल से गुजरता है। यहाँ से धीरे-धीरे चढ़ाई चढ़ते हुए भालूयार, रूगेरू रवार, मल्ला रूगेरू, सुसुदुम तक पहुँचा जा सकता है। सुसुदुमु के समीप ही थाला ग्वार है। थालाग्वार की सीमा आरम्भ होते ही वृक्ष झाड़ियों का स्वरूप ले लेते हैं। सफेद, गुलाबी बुराश के वृक्ष प्रकृति से अनोखा समायोजन करते हुए झाड़ियाँ सदृश आकार ग्रहण कर लेते हैं। साथ ही आरम्भ होता है, मखमली घास का लम्बा ढालू मैदान। स्थानीय लोगों का
कहना है कि अंग्रेज अपने शासनकाल में यहाँ बर्फ में लकड़ी की नाव दौड़ाते थे, जो इस बात की पुष्टि करती है कि कभी यहाँ स्कीइंग होती थी।
भेड़ बकरियों के चिह्न के सहारे से बढ़ते हैं ऊंचाई की ओर
थालाग्वार से नामिक ग्लेशियर को ओर को मार्ग के चिह्न नहीं दिखते। बुग्यालों की दिशा में जाते हुए भेड़-बकरियों द्वारा छोड़े गये चिन्हों के सहारे ही ऊँचाइयों की ओर जाया जाता है। इस तरह टाँटी, लालमड़ी व चफुत्रा तक पहुँचने पर भेड़पालकों के शिविर दिखते हैं। यह अत्यनत आकर्षक कैम्पिंग स्थल है। यहाँ प्रत्येक क्षण बुग्यालों से स्वच्छंद उड़ान भरते मोनाल व डया पक्षियों के झुंड रामगंगा की ओर सुरई के जंगलों में आश्रय को उतरते दिखते हैं।
मणियों की भांति जगमगाती शिला
चफुआ से तल्ला-मल्ला रणथण पर्वत शीर्ष फिर मूक बनी चट्टानों से गुजरता मार्ग सुसुदुम तक जाता है। जहाँ शिविर लगाकर विश्राम किया जा सकता है। सुसुदम में विनायक घांघल बुग्याल फिर घुटुली होते हुए नंदाकुंड तक मार्ग जाता है। यहाँ कभी दो सरोवर थे। भूगर्भीय हलचल के कारण एक का जल रिस गया। अब मात्र नन्दाकुंड है, जिसका अपना आकर्षण है। नन्दाकुंड के पश्चात् रूमा गिरिद्वार तक अपेक्षाकृत कठिन चढ़ाई है। चढ़ाई के उपरान्त आरम्भ होता है हीरामणि का अद्भुत क्षेत्र। हीरामणि पर्वत श्रृंखला ज्योतिर्मयी है। एक अनोखा प्रकाश यहाँ के वातावरण में फैला रहता है। मणियों की भाँति जगमगाती शिलाओं के कारण ही इसका नाम हीरामणि पड़ा।
सुखद अनुभूति देता है नामिक बुग्याल
हीरामणि से यात्रापथ पेनठांग बुग्याल होते हुए नामिक हिम पथ शून्य बिन्दु तक उतरता है। नामिक की विशेषता है कि रामगंगा के द्वारा बनी संकरी घाटी के सहारे हरियाली शून्य बिन्दु के पास नामिक बुग्याल की सीमा तक आ गई है। यहाँ ज्यूनीफर की झाड़ियाँ और भोजपत्र के वृक्षों का मिलना एक सुखद अनुभूति देता है। नामिक बुग्याल
के मध्य एक खुली कंदरा के समीप शिविर स्थान है और इससे दो किलोमीटर ऊपर चढ़ने पर नामिक ग्लेशियर अपनी सम्पूर्णता के साथ सामने आता है तथा सम्मोहन की सीमा तक आनन्दित करता है।
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लेखक का परिचय
लेखक देवकी नंदन पांडे जाने माने इतिहासकार हैं। वह देहरादून में टैगोर कालोनी में रहते हैं। उनकी इतिहास से संबंधित जानकारी की करीब 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। मूल रूप से कुमाऊं के निवासी पांडे लंबे समय से देहरादून में रह रहे हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।