चमोली आपदा राहत में लापरवाहीः जिस टनल में नहीं थे मजदूर, चार दिन वहां किया रेस्क्यू, ऋषिगंगा नदी में बनी झील

उत्तराखंड में चमोली जिले में आपदा के बाद राहत और बचाव कार्यों में बहुत बड़ी लापरवाही सामने आई है। तीन दिन तक एनटीपीसी की जिस टनल में लापता 35 मजदूरों की खोज का काम चल रहा था, इसे लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। पता चला कि उक्त टनल में श्रमिक काम ही नहीं कर रहे थे। मजूदूर इस टनल से करीब 12 मीटर नीचे दूसरी निर्माणाधीन टनल एसएफटी में काम कर रहे थे। ये टनल एसएफटी (सिल्ट फ्लशिंग टनल) गाद निकासी के लिए बनाई जा रही थी। अब राहत और बचाव के लिए दूसरी टनल में रेस्क्यू की रणनीति बदली गई। इस टनल तक पहुंचने के लिए करीब 12 मीटर गहराई तक ड्रिल करन की रणनीति बनाई गई। जो सफल नहीं हो सकी। इस पर अब दोबारा पुरानी रणनीति पर ही कार्य किया जा रहा है। वहीं, एनटीपीसी की टनल में राहत कार्यों पर लगी जेसीबी मशीन भी आठ दस साल पुरानी है। इससे लगातार काम करना भी मुश्किल है। इस संबंध में मशीन आपरेटर का एक वीडियो भी वायरल हो रहा है। इसमें मशीनों से दिक्कत की बात सामने आई है। उधर, ऋषिगंगा नदी में झील बने होने की बात सामने आई है। चमोली के पुलिस अधीक्षक यशवंत सिंह चौहान ने बताया कि रैंणी से पांच किलोमीटर ऊपर पैंग गांव के पास ऋषिगांव में झील बनी है। गढ़वाल विश्वविद्यालय और वाडिया इंस्टीट्यूट के भू वैज्ञानिकों ने इसकी जानकारी दी है। इस झील से रिसाव भी हो रहा है। संभवता आज दिन में ऋषिगंगा में पानी बढ़ने का कारण ये भी हो सकता है।
वहीं, आज ऋषिगंगा नदी का जल स्तर बढ़ने के कारण पानी तपोवन स्थित के करीब तक पहुंच गया था। ऐसे में रेस्क्यू काम रोक दिया गया था। करीब डेढ़ घंटे बाद पानी कम होने पर फिर रेस्क्यू शुरू किया गया। वहीं, चिनुक हैलीकॉप्टर के जरिये रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए चमोली में मशीनें पहुंचाई गई हैं।
इस मामले में चमोली जिले के एसपी यशवंत सिंह चौहान का कहना है कि जहां पर रेस्क्यू चल रहा है, वहां टनलों का जाल है। कल ही ये संभावना जताई गई कि नीचे की टनल में लोग हो सकते हैं। इस पर जिस टनल में काम चल रहा है, उसमें ड्रिलिंग करके दूसरी टनल तक कैमरे पहुंचाकर पहले ये देखने की योजना बनाई गई थी। इस पर आज काम भी शुरू किया गया था। छह मीटर के बाद ड्रिलिंग संभव नहीं हो पाई। उधर, गढ़वाल के आयुक्त रविनाथ रमन ने पत्रकारों से कहा कि हमारा ड्रिल का प्रयास सफल नहीं हो पाया है। अब पुराने तरीके से ही टनल खोलने का अभियान चलाया जाएगा।
ये थी संभावना
आपदा के बाद एनटीपीसी की विष्णुगाड तपोवन जल विद्युत परियोजना की टनल में मजदूरों के फंसने की आशंका जताई गई। इसके चलते रेस्क्यू टीम ने पहले एक टनल से 12 लोगों को सुरक्षित निकाल लिया था। इसके बाद दूसरी करीब ढाई सौ मीटर लंबी टनल में मजदूरों के फंसे होने की संभावना के चलते इसमें रेस्क्यू किया जा रहा था। अब बुधवार की रात एक ऐसा खुलासा हुआ, जिस पर मंडलायुक्त गढ़वाल रविनाथ रमन ने एनटीपीसी और जिलाधिकारी चमोली दोनों पर नाराजगी जताई।
ये हुआ खुलासा
पता चला कि जिस टनल में चार दिन तक रेस्क्यू अभियान चला वहां एनटीपीसी का इन दिनों कोई काम नहीं हो रहा था। वहीं, इसी टनल से करीब 12 मीटर नीचे दूसरी टनल का निर्माण किया जा रहा था। करीब 560 मीटर लंबी टनल के लिए अब तक 120 मीटर तक खुदाई हो चुकी थी। इसी में मजदूरों के फंसने की संभावना है। ये टनल सिल्ट की निकासी के लिए बनाई जा रही थी। जब मंडलायुक्त को इसका पता चला तो उन्होंने अधिकारियों को फटकार लगाने के साथ ही दूसरी टनल में बचाव कार्य आरंभ करने को कहा।
रोका गया काम, दूसरी टनल में खोजबीन होगी
अब जिस टनल में अभी तक रेस्क्यू चल रहा था उसे रोक दिया गया। अब दूसरी टनल में करीब सौ मीटर आगे ड्रिलिंग की जा रही है। पहले इसमें ड्रिल मशीन से छेद कर उसमें कैमरे डाले जाएंगे। यदि भीतर व्यक्तियों के होने का पता चलता है तो वहां अभियान शुरू किया जाएगा। इस टनल में भी ड्रिल का कार्य फ्लाप हो गया। सुबह ग्यारह बजे ड्रिल के निर्णय को बदलना पड़ा। अब इस टनल की सफाई कर आगे बढ़ने की रणनीति पर काम करने का फैसला किया गया है। बताया जा रहा है कि छह मीटर ड्रिल के बाद लोहे का जाल और कंक्रीट की मजबूत सतह मिलने के चलते और गहराई में ड्रिलिंग संभव नहीं हो पा रही है। अब इस टनल का मुख्य मुहाना खोजा जा रहा है।
ऋषिगंगा नदी में अभी भी बताई जा रही झील
इस बीच ये खबर आई है कि ऋषिगंगा नदी अब भी उस जगह पर रुकी हुई हैं, जहां ऋषिगंगा नदी और रौंठीगाड़ नदी का संगम होता है। सात फरवरी की सुबह 5600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रौंठी पीक से भारी हिमस्खलन हुआ, जिसने अपने साथ भारी चट्टानी मलबा रौंठीगाड़ नदी में डाल दिया।इस नदी से होते हुए ये मलबा नीचे ऋषिगंगा नदी में मिला जिससे नीचे के इलाकों में तबाही मची और दो पावर प्रोजेक्ट नेस्तनाबूद हो गए।
एनडीटीवी की खबर के मुताबिक जिस जगह पर ऋषिगंगा और रौंठीगाड़ नदी का संगम होता है वहां रौंठीगाड़ में आए भारी मलबे ने ऋषिगंगा नदी का पानी रोक दिया है। 7 फरवरी से ये पानी रुका हुआ है, जिससे ऋषिगंगा नदी एक झील में तब्दील हो रही है। गढ़वाल यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट औफ़ रुरल टैक्नौलजी के असिस्टेट प्रोफेसर और जियोलोजिस्ट डॉक्टर नरेश राणा हादसे की वजह के अध्ययन के लिए मौके पर पहुंचे और ऋषिगंगा नदी में झील की जानकारी प्रशासन तक पहुंचाई। नरेश राणा ने वह मलबा दिखाया जिसने ऋषिगंगा नदी का पानी संगम के पास रोका हुआ है। मलबे के पीछे हरे रंग का पानी दिख रहा है जो झील का एक सिरा है। डॉ. राणा आगे बढ़कर इस झील की लंबाई जानने की कोशिश करेंगे। ये इलाका बहुत ही दुर्गम है इसलिए यहां पैदल आगे बढ़ना काफी दुष्कर काम है। जाने-माने भूगर्भशास्त्री डॉ नवीन जुयाल के मुताबिक, इस झील के पानी को नियंत्रित तरीके से निकाला जाना ज़रूरी है, ताकि मलबे पर पानी का दबाव कम हो सके। उनके मुताबिक ऐसा जल्दी से जल्दी किया जाना चाहिए क्योंकि ऋषिगंगा नदी में पीछे से सात ग्लेशियरों का पानी जमा हो रहा है।
ऐसे आई थी आपदा
गौरतलब है कि उत्तराखंड के चमोली जिले में अचानक ऋषिगंगा और धौलगंगा नदी में पानी का जलजला आने से रैणी गांव में ऋषिगंगा नदी पर हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट का डैम धवस्त हो गया था। इसने भारी तबाही मचाई और पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित धौलीगंगा नदी में एनटीपीसी के बांध को भी चपेट में ले लिया था।
इससे भारी तबाही मची। घटना रविवार सात फरवरी की सुबह करीब दस बजे की थी। इससे अलकनंदा नदी में भी पानी बढ़ गया था। तब प्रशासन ने नदी तटों को खाली कराने के बाद ही श्रीनगर बैराज से पानी कंट्रोल कर लिया। वहीं, टिहरी डाम से भी आगे पानी को बंद कर दिया था। इससे बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न नहीं हुई। आपदा से कई छोटे पुल ध्वस्त हो गए। 13 गांवों का आपस में संपर्क कट गया।
चमोली उत्तराखंड के चमोली में आपदा में लापता लोगों की तलाश का काम पांचवे दिन भी जारी रहा। राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र की ओर से बताया जा रहा है कि आपदा में कुल 204 लोग लापता हुए थे। इनमें 36 शव बरामद कर लिए गए हैं। 10 की शिनाख्त की जा चुकी है। 26 शवों की शिनाख्त बाकी है। अभी 168 लोग लापता हैं।
रहले एनटीपीसी की जिस टनल में चार दिन तक काम चला, उसके 180 मीटर दूर टी-प्वाइंट व्यक्तियों के फंसे होने की संभावना जताई गई। इसके चलते ही टनल को साफ करने का काम लगातार चलता रहा। ये टनल करीब 250 मीटर लंबी है। इसमें 130 मीटर तक मलबा हटाया जा चुका था। अब लापता लोगों के संबंध में दूसरा खुलासा होने से प्रशासन को रणनीति बदलनी पड़ रही है।
जुटे हैं इतने जवान
प्रभावित क्षेत्रों में एसडीआरएफ के 100, एनडीआरएफ के 176, आईटीबीपी के 425 जवान एसएसबी की 1 टीम, आर्मी के 124 जवान, आर्मी की 02 मेडिकल टीम, स्वास्थ्य विभाग उत्तराखण्ड की 04 मेडिकल टीमें और फायर विभाग के 16 फायरमैन, लगाए गए हैं। राजस्व विभाग, पुलिस दूरसंचार और सिविल पुलिस के कार्मिक भी कार्यरत हैं। बीआरओ द्वारा 2 जेसीबी, 1 व्हील लोडर, 2 हाईड्रो एक्सकेवेटर, आदि मशीनें लगाई गई हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।