दूसरे दिन चप्पल पहनकर आने का फरमान, जूते में पहुंची छात्राओं को नंगे पैर देनी पड़ी बोर्ड परीक्षा
उत्तराखंड में 16 मार्च से उत्तराखंड उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा परिषद की ओर से इंटरमीडिएट और 17 मार्च से हाईस्कूल बोर्ड की परीक्षाएं आरंभ हो चुकी हैं। बोर्ड परीक्षाओं में नकल रोकने के लिए राजधानी देहरादून में राजपुर रोड स्थित राजकीय बालिका इंटर कॉलेज में नायब प्रयोग किए जा रहे हैं। पहले दिन प्रयोग की तमाम सोशल मीडिया में जमकर किरकिरी हुई तो परीक्षा केंद्र के संचालकों ने दूसरे दिन दूसरा प्रयोग अपनाया। हालांकि, ये प्रयोग अभी जूते और चप्पल तक ही सीमित है, लेकिन परीक्षा केंद्र संचालक अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
16 मार्च को जब छात्राएं परीक्षा देने पहुंची तो उनसे एक स्थान पर जूते उतरवा लिए गए। ये कॉलेज सचिवालय से सटा हुआ है। या कहें कि सचिवालय और कॉलेज के बीच फासला बाउंड्री वाल का है। यानि की सरकार की नाक के समाने ही ये सब हो रहा है। जूते उतरवाने के बाद छात्राओं को नंगे पैर परीक्षा देने के लिए कहा गया है। यही नहीं, कई छात्राओं को पथरीली जमीन पर ही नंगे पैर चलकर अपने परीक्षा कक्ष तक पहुंचना पड़ा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
तर्क दिया गया कि जूते के भीतर नकल की पर्चियां आसानी से छिपाई जा सकती हैं। इसलिए नकल रोकने के लिए ऐसा किया गया है। हालांकि, जब कोई पर्ची से नकल करेगा तो परीक्षा कक्ष निरीक्षक की भी तो जिम्मेदारी बनती है कि वह परीक्षार्थियों पर पैनी नजर रखे। यदि कोई परीक्षार्थी नकल करता है तो, उस पर नजर पड़नी भी स्वाभाविक है। कॉलेज के परीक्षा संचालकों की इस हरकत की सोशल मीडिया में जमकर किरकिरी हुई तो दूसरे दिन नकल रोकने के लिए दूसरा फंडा अपनाया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दूसरे दिन भी जूते उतरवाए, चप्पल वाली छात्राओं को राहत
वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र अंथवाल सोशल मीडिया में अपनी पोस्ट के जरिये बताते हैं कि परीक्षा केंद्र संचालक बाज दूसरे दिन भी पूरी तरह नहीं आए। जूते उतरवाने पर किरकिरी हुई, तो इतना जरूर किया कि सुबह-सवेरे सभी बच्चियों को आनन-फानन में मैसेज कर के चप्पल पहन कर आने को कह दिया गया। जो बच्चियां चप्पल पहनकर आईं, उन्हें परीक्षा कक्ष में मय चप्पल भेजा गया। जो स्कूल शूज पहन कर ही पहुंची, उनके जूते परीक्षा कक्ष के बाहर ही उतरवा कर उन्हें नंगे पैर परीक्षा दिलवाई गई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
बोर्ड का नहीं है कोई आदेश
वहीं, उत्तराखंड बोर्ड दोहरा रहा है कि जूते उतरवा कर नंगे पैर परीक्षा दिलवाने का कोई निर्देश हमारा नहीं है। शिक्षा मंत्रालय और निदेशालय के पास गैरसैंण का बहाना है, जहां बजट सत्र के दौरान सब व्यस्त थे। रही बात परीक्षा केंद्र प्रशासन की, तो अपने तुगलकी फरमान पर उनका तर्क है कि जूते में नकल के लिए पर्चियां छिपाई जाती हैं। इसलिए जूते बाहर ही उतरवाए जा रहे हैं। वहीं, अब अचानक देहरादून का मौसम सर्द हो गया है। लगातार बारिश के चलते हाथ पैर ठंडे हो रहे हैं। ऐसे में चप्पलों में या नंगे पैर परीक्षा देने से इसका छात्राओं के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ सकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जूते उतारने को संस्कारों से जोड़ा
एक कुतर्क को सही साबित करने के लिए एक साथ कई कुतर्क दिए जा रहे हैं। परीक्षा केंद्र संचालकों के पास पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि नकल की पर्चियां तो ‘कपड़ों’ में भी छिपाई जाती हैं। यदि ये सवाल पूछो तो उनका जवाब मिलता है कि जूते बाहर ही उतरवा लेने से बच्चे संस्कार सीखेंगे। काश सबसे पहले उन गुरुओं को भी संस्कार सिखा लेते, जो मोटा वेतन लेने के बावजूद ट्यूशन से कमाई कर रहे हैं। या फिर वे जो दूरस्थ गांवों में पढ़ाने को नहीं जाते हैं और अपने स्थान पर किसी युवक को कुछ राशि देकर पढ़ाने को भेज देते हैं। ऐसे मामले कई बार पकड़ में आ चुके हैं। कुछ दिन निलंबन के बाद ऐसे मामले दबा दिए जाते हैं। साथ ही संस्कार, उन नीति निर्माताओं को भी सीखने चाहिए, जो पढ़ाने की बजाय शिक्षकों की कई बार दूसरे राष्ट्रीय अभियानों में ड्यूटी लगा देते हैं।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।