Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

December 17, 2024

पांच सौ साल से इन गांव में नई फसल का सबसे पहले ईष्ट देवताओं को लगाते हैं भोग, फिर करते हैं इस्तेमाल

उत्तराखंड के बहुत से गांवों में ज्येष्ठ माह (जून माह) में रवि की फसल से प्राप्त अनाज (गेहूं) से पहले अपने इष्ट देवताओं को भोग लगाया जाता है। इसके बाद ही अपने प्रयोग में लाने की परम्परा है।

उत्तराखंड को यों ही देवभूमि नहीं कहा जाता, बल्कि यहां के लोकाचार, परम्परायें एवं रीति रिवाज इसको देवभूमि कहलाने की पुष्टी करते हैं। उत्तराखंड के बहुत से गांवों में ज्येष्ठ माह (जून माह) में रवि की फसल से प्राप्त अनाज (गेहूं) से पहले अपने इष्ट देवताओं को भोग लगाया जाता है। इसके बाद ही अपने प्रयोग में लाने की परम्परा है। इसी परम्परा के तहत रुद्रप्रयाग जनपद के विकासखंड अगस्त्यमुनि के धारकोट, निर्वाली गाँव में पिछले पांच सौ से भी अधिक सालों से स्थानीय चंडिका मंदिर व ईशानेश्वर महादेव मन्दिर में गेंहू को पीसकर आटे से भोग लगाने की परम्परा का निर्वहन होता चला आ रहा है।ऐसे जुटाया जाता है भोग
इस काम में गांव के युवाओं की ओर से सेवित ग्राम के प्रत्येक परिवार से लगभग 100 ग्राम गेहूं का आटा इकट्ठा किया जाता है। साथ ही भोग व भोजन की अन्य सामग्री को जुटाने के लिए कुछ धनराशि ली जाती है। ये धनराशि प्रति परिवार करीब बीस रुपये होती है। इस तरह से करीब 100 परिवार इसमें योगदान देते हैं।

भोग की विशेषता
विशेषता वाली बात यह है कि यह आटा हाल में ही खेती से प्राप्त गेहूं से बना होता है। यदि कोई परिवार अभी तक पुराने साल के ही गेहूं के आटे या बाजार से खरीदकर लाये गये आटे का ही प्रयोग कर रहा हो, तो वह पड़ोसी परिवार से नये गेंहू का आटा पैंछा (उधार) लेता है। बाद में नये गेहूं पिसा कर उस उधार को वापस कर लेता है।
चंडिका मंदिर में होता है आयोजन
गाँव के प्रत्येक परिवार से इकट्ठे किये गये इस आटे को भोग व भोजन की क्रय की गई अन्य सामग्री के साथ स्थानीय चंडिका मन्दिर परिसर तक पहुँचाया जाता है। जहाँ ग्राम समाज की ओर से नियत पाँच व्यक्ति (पंचजन) यजमान के रूप में देवी के पूजन अर्चन का कार्य करते हैं। पूजन के विधि विधान की तैयारी और मंदिर का रख रखाव गांव के सेमवाल परिवार करते हैं। वहीं पूजन कार्य में मुख्य पुरोहित की भूमिका चौकियाल जाति के ब्राह्मणों द्वारा निभाई जाती है।
आरोग्यता की कामना
पूजन में गाँव की अधिष्ठात्री देवी व देवाधिदेव महादेव ईशानेश्वर से सुख एवं आरोग्यता की कामना की जाती है। इस अवसर पर गाँव के प्रत्येक परिवार का एक सदस्य इस पूजन में भाग लेता है। युवाओं की ओर से मंदिर परिसर में ही स्थित विशाल बरगद के वृक्ष के नीचे विभिन्न पकवान बनाये जाते हैं, जबकि देवी को भोग चढ़ाये जाये वाले वाले व्यंजन को मन्दिर की ही भोगशाला में बनाया जाता है।


इस बार भी निभाई परंपरा
इस अवसर पर भक्तों की प्रार्थना पर अपने नर पश्वा पर मां चंडिका अवतरित होकर भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती है। गाँव के युवा और सामाजिक पत्रकार मयंक तिवारी ने बताया कि इस वर्ष के “नया नाज चढ़ाये जाने” के इस कार्यक्रम में मुख्य पुरोहित की भूमिका का निर्वहन पंडित राजीव चौकियाल व मुख्य यजमान के रूप में पं दिनेश चन्द्र तिवारी, अमित कप्रवान, रितिक सजवाण, लक्ष्मण सिंह राणा, मयंक तिवाड़ी आदि उपस्थित थे।

लेखक का परिचय
नाम- हेमंत चौकियाल
निवासी-ग्राम धारकोट, पोस्ट चोपड़ा, ब्लॉक अगस्त्यमुनि जिला रूद्रप्रयाग उत्तराखंड।
शिक्षक-राजकरीय उच्चतर प्राथमिक विद्यालय डाँगी गुनाऊँ, अगस्त्यमुनि जिला रूद्रप्रयाग उत्तराखंड।
mail-hemant.chaukiyal@gmail.com

Website | + posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

1 thought on “पांच सौ साल से इन गांव में नई फसल का सबसे पहले ईष्ट देवताओं को लगाते हैं भोग, फिर करते हैं इस्तेमाल

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page