Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

December 24, 2024

एचआरएचयू की शानदार पहलः अभी तक बचाते आए लोगों की जान, अब किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के भी प्रयास

देहरादून में डोईवाला स्थित शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में आयाम स्थापित कर चुका स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय (एसआरएचयू) अब पहाड़ में किसानों को आत्मनिर्भर भी बना रहा।

देहरादून में डोईवाला स्थित शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में आयाम स्थापित कर चुका स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय (एसआरएचयू) अब पहाड़ में किसानों को आत्मनिर्भर भी बना रहा। अभी तक ये संस्थान दूर दराज से आने वाले पर्वतीय क्षेत्र के साथ ही राज्य से बाहर के लोगों के लिए भी जीवनदायिनी के रूप में सेवा कर रहा है। अब उत्तराखंड के किसानों के लिए भी संस्थान ने शानदार पहल की है। संस्थान के कुलपति डॉ.विजय धस्माना ने बताया कि इसके तहत विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ किसानों को व्यवसायिक खेती का प्रशिक्षण दे रहे हैं। विश्वविद्यालय ने किसानों की ओर से तैयार की गई व्यवसायिक फसल की खरीद कर उन्हें सम्मानित किया।
पौड़ी गढ़वाल के तोली गांव में स्थित गौरी हिमालयन कॉलेज ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में ग्राम्या कृषक गोष्ठी का आयोजन किया गया। ग्राम प्रधान विपिन धस्माना व अन्य किसानों ने व्यवसायिक खेती से जुड़कर आमदनी को कैसे बढ़ाया जा सकता है, इसके इसके अनुभव साझा किए। आरडीआई उप-निदेशक डॉ.राजीव बिजल्वाण, प्रिसिंपल अरुण पांथरी, कमल जोशी। शिवम ढौंडियाल ने कार्यक्रम का संचालन किया।
कृषि में तकनीक को जोड़कर आमदनी बढ़ाना मुख्य उद्देश्य
कुलपति डॉ. विजय धस्माना ने बताया संस्थान के रूरल डेवलपमेंट इंस्टीट्टयूट (आरडीआई) की ओर से साल 2018 से जयहरीखाल ब्लॉक के तोली गांव के आसपास के क्षेत्र में व्यापक सामुदायिक विकास कार्यक्रम (सीसीडीपी) चलाया जा रहा है। इसके तहत संस्थान के विशेषज्ञ ग्रामीणों को व्यवसायिक कृषि का प्रशिक्षण दे रहे हैं। इसका मूल उद्देश्य है पहाड़ में किसानों की आय बढाकर सामाजिक उत्थान करना।
किसानों की निर्भरता खत्म करना लक्ष्य
कुलपति डॉ. विजय धस्माना ने कहा कि हम किसानों की निर्भरता खत्म कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी काम कर रहे हैं। इसके लिए हम सेंटर फॉर एरोमेटिक प्लांट्स (सीएपी) के साथ मिलकर किसानों के लिए ट्रेनिंग कार्यक्रम भी चला रहे हैं। इसमें हम किसानों भौगोलिक संरचना के अनुसार फसलों के चयन के साथ कृषि में इस्तेमाल होने वाली तकनीक व आधुनिक यंत्रों का प्रशिक्षण देते हैं। इस क्षेत्र में मुख्यतः चार क्षेत्रों में कार्य करना प्रारंभ किया। इसमें लैमन ग्रास एवं रोजमैरी की खेती, लहसुन, अदरक एवं हल्दू की खेती तथा नर्सरी के कार्यों को बढ़ावा शामिल है। इसके अलावा नींबू का उत्पादन बड़े स्तर पर करने का प्रयास किया।

पलायन पर भी लगेगी रोक
कुलपति डॉ. विजय धस्माना ने कहा कि इस प्रशिक्षण के मुख्यत: चार फायदे होंगे। पहला तकनीक की मदद से शारिरिक श्रम को कम कर पहाड़ों में व्यवसायिक कृषि बढ़ावा मिलेगा। दूसरा, तकनीक के इस्तेमाल से युवा भी कृषि के प्रति आकर्षित होंगे। ज्यादा से ज्यादा युवाओं के कृषि व्यवसाय से जुड़ने से पलायन भी रुकेगा। तीसरा, किसानों की फसलों के लिए बाजार उपलब्ध होगा, ताकि उन्हें उनकी फसल का उचित दाम मिले और उनकी आमदनी बढ़े।
किसानों को किया गया सम्मानित
कुलपति डॉ. विजय धस्माना ने कहा कि अब किसानों को उनकी फसल की कीमत के लिए इंतजार नहीं करना पड़ेगा। विश्वविद्यालय बाजार मूल्य के हिसाब से उनकी फसल को खरीदेगा और तुरंत उसकी कीमत देगा। कार्यक्रम में टीपीएस रावत, विनोद चौहान, नीलम नेगी, कमला देवी, सुषमा देवी, प्रीति देवी, विक्रम सिंह किसानों की फसल को खरीदकर प्रोत्साहन राशि देकर उन्हें सम्मानित किया।
डेमोस्ट्रेशन यूनिट से मिलेगी जानकारी
कुलपति डॉ. विजय धस्माना ने बताया कि विश्वविद्लाय गांव में एक डेमोस्ट्रेशन यूनिट विकसित स्थापित करेगा। इसमें हैंडलूम यूनिट, नर्सरी, डिस्टिलेशन यूनिट एवं प्रोसेस यूनिट विकसित की जा रही है। इससे क्षेत्र के किसानों को प्रशिक्षण देने के साथ कृषि में नवीन तकनीक की जानकारी दी जाएगी।
किसान इस्तेमाल कर सकेंगे मशीन
इसके अतिरिक्त संस्थान किसानों को हल लगाने के लिए मिनी ट्रेक्टर, गड्ढे करने की मशीन, झाड़ी काटने की मशीन आदि इस्तेमाल करने के लिए देगा क्योंकि सभी किसानों के पास यह मशीनें नहीं है। इन कृषि यंत्रों के उपयोग से किसानों को लाभ मिलेगा।


हम अपने पूर्वजों से लें सीख
कुलपति डॉ. विजय धस्माना ने कहा कि हमारे पूर्वज बहुत कर्मठ थे। जब वह पहाड़ में बसे होंगे, तब न जेसीबी थी और न ही फावड़े-बेलचे। उन लोगों ने कड़ी मेहनत से यह पहाड़ काट काटकर खेते बनाए। कोरोना काल में भी कृषि क्षेत्र में ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव न के बराबर ही रहा।कोरोना महामारी के चलते कई युवाओं ने पहाड़ का रुख किया है। ऐसे युवा पारंपरिक खेती के विकल्प के तौर पर लेमनग्रास, रोजमैरी, लहसून, अदरक, हल्दी आदि की खेती करें तो इससे कई गुना मुनाफा कमा कर तरक्की की इबारत लिख सकते हैं।

Website | + posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page