दो साल बाद आज से शुरू हो गई कांवड़ यात्रा, प्रशासन पूरी तरह तैयार, यहां कराएं रजिस्ट्रेशन
सावन महीने में आज यानि कि 14 जुलाई से कांवड़ यात्रा शुरू हो गई है। सावन का महीना शिवभक्तों के लिए खास होता है।
सावन महीने में आज यानि कि 14 जुलाई से कांवड़ यात्रा शुरू हो गई है। सावन का महीना शिवभक्तों के लिए खास होता है। मान्यता है कि इस महीने सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा अर्चना करने से भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं। भगवान शिव को प्रसन्न करने व उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए लाखों श्रद्धालु कांवड़ यात्रा निकालते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान शिव भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इस बार दो साद बाद कांवड़ यात्रा हो रही है। कोरोनाकाल के दौरान यात्रा स्थगित कर दी गई थी। कांवड मेला-2022 में उत्तराखंड आने वाले सभी श्रद्धालुओं के लिए उत्तराखंड पुलिस की ओर से रजिस्ट्रेशन के लिए पोर्टल https://policecitizenportal.uk.gov.in/Kavad खोला गया है। राज्य की पुलिस ने श्रद्धालुओं से अनुरोध किया है कि पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करके ही कांवड मेला 2022 में आएं। इससे यात्रा में कोई असुविधा नही होगी।आज कांवड़ यात्रा के पहले दिन हरकी पैड़ी पर गंगा पूजन किया गया। इसके बाद कांवड़ यात्रा की शुरुआत हो गई है। इस बार सावन 12 अगस्त तक चलेगा। सावन के पवित्र महीने में इस बार चार सोमवार पड़ेंगे। सावन का पहला सोमवार 18 जुलाई को पड़ेगा। वहीं सावन का अंतिम सोमवार 15 अगस्त को है। आज सुबह दस बजे संत-महात्माओं के साथ हरिद्वार के प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों ने गंगा पूजन किया। दो साल बाद हो रही कांवड़ यात्रा में इस बार चार करोड़ से अधिक कांवड़ यात्रियों के आने का अनुमान है। प्रशासन ने कांवड़ की सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं। हरिद्वार से नीलकंठ तक करीब दस हजार पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है। पैदल कांवड़ यात्री और डाक कांवड़ के लिए प्रशासन ने अलग-अलग रूट तैयार किया है।
गंगा पूजन के साथ शुरू हुई कांवड़ यात्रा के दौरान जय मां गंगे और बम बम भोले के जयकारों के बीच भोले के भक्त कावड़ यात्री हरकी पैड़ी हरिद्वार से गंगाजल लेकर अपने-अपने गंतव्य की ओर बढ़ने लगे हैं। यात्रा को लेकर कांवड़ यात्रियों में भी खासा उत्साह है। कांवड़ यात्रा में दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पंजाब से बड़ी संख्या में शिवभक्त हरिद्वार पहुंचते हैं। शिवभक्त महाशिवरात्रि पर शिवालयों में महादेव का जलाभिषेक करने को गंगा जल लेने हरिद्वार आते हैं।
मेला क्षेत्र में सुरक्षा के कड़े इंतजाम
संपूर्ण मेला क्षेत्र को 12 सुपर जोन, 32 जोन व 129 सेक्टर में बांटा गया है। हरकी पैड़ी सहित चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। मेला क्षेत्र में आतंकवाद विरोधी दस्ते की दो टीम हर समय मुस्तैद रहेंगी। प्रदेश के एडीजी ला एंड आर्डर वी मुरुगेशन सहित जिला पुलिस प्रशासन के अधिकारियों ने बुधवार दोपहर पुलिस बल को ब्रीफ करते हुए मेला ड्यूटी पर रवाना किया।
यात्रियों को कहते हैं कांवड़िया
यात्रा शुरू करने से पहले भक्त बांस की लकड़ी पर दोनों ओर टिकी हुई टोकरियों के साथ किसी पवित्र स्थान पर पहुंचते हैं। इन्हीं टोकरियों में गंगाजल लेकर लौटते हैं। इस कांवड़ को यात्रा के दौरान अपने कंधे पर रखकर यात्रा करते हैं, इस यात्रा को कांवड़ यात्रा और श्राद्धलुओं को कांवडिया कहा जाता है।
कांवड़ यात्रा का इतिहास
कहा जाता है कि भगवान परशुराम भगवान शंकर के परम भक्त थे। मान्यता है कि वे सबसे पहले कांवड़ लेकर बागपत जिले के पास पुरा महादेव गए थे। उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर से गंगा का जल लेकर भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था। उस समय सावन महीना था। इसी परंपरा को निभाते हुए श्रद्धालु सावन मास में कांवड़ यात्रा निकालने लगे।
कांवड़ यात्रा के नियम
हिंदू धर्म के अनुसार, कांवड़ियों को एक साधु की तरह रहना होता है। गंगाजल भरने से लेकर उसे शिवलिंग पर अभिषेक करने तक का सफर नंगे पांव करते हैं। यात्रा के दौरान किसी भी तरह के मांसाहार की मनाही होती है। इसके अलावा किसी को अपशब्द नहीं बोला जाता। इसके अलावा चारपाई, बेड आदि पर बैठने की मनाही होती है।
खड़ी कांवड़ यात्रा
भगवान शिव के कई भक्त सावन में खड़ी कांवड़ यात्रा करते हैं। इस कांवड़ यात्रा में श्रद्धालु सहयोगी की मदद से कांवड़ यात्रा करते हैं। इस दौरान जब कांवड़ लाने वाला भक्त आराम करता है तो उसका सहयोगी कांधे पर कांवड़ लिए खड़ा रहता है।
डाक कांवड़
यह कांवड़ सबसे मुश्किल कांवड़ मानी जाती है। डाक कांवड़ यात्रा में भक्त एक निश्चित समय अवधि में अपनी कांवड़ यात्रा पूरी करते हैं। इस यात्रा को दौड़ कर पूरा किया जाता है। भक्त तय समय अवधि में हरिद्वार के जल भरकर शिवजी का जलाभिषेक करते हैं। आमतौर पर डाक कांवड़ 12, 14, 16, 18, 20 या इससे अधिक घंटे की होती है। इस दौरान भक्त तय समय में ही शिवलिंग पर जल अर्पित करते हैं। डाक कांवड़ यात्रा में भक्त हरिद्वार से जल भरकर दौड़ते हुए शिव मंदिरों में पहुंचते हैं। डाक कांवड़ यात्रा में चलने वाला श्रद्धालु अगर रुक जाए या उसके हाथ से कांवड़ छूट जाए तो यात्रा खंडित मानी जाता है। ऐसे में ये यात्रा गणतव्य तक पहुंचने से पहले रुकती नहीं है।
झूला कांवड़
सावन में अधिकांश भक्त झूला कावड़ यात्रा करते हैं। इस कांवड़ यात्रा में बच्चे, बूढ़े और महिलाएं भी आसानी से कांवड़ यात्रा करती हैं। इस कांवड़ यात्रा की खासियत यह है कि इसे स्टैंड या पेड़ पर रखकर कुछ देर आराम कर किया जा सकता है। इस कांवड़ यात्रा में आराम या भोजन करने के बाद पुनः शुद्ध होना पड़ता है।





