मदारी से लेकर बाबाओं तक का सफर, दोनों का खेल एक जैसा, इनके बिजनेस के बीच झगड़ रही आम जनता
किसी जमाने में गली गली गांव और मोहल्लों में मदारी की डुगडुगी सुनाई देती थी। हो सकता है आज भी देश के कुछ शहरों और गांवों में ये सुनाई देती हो, लेकिन मैने अब मोहल्लों में इस तरह के खेल नहीं देखे, जो करीब 45 साल पहले आम बात थी। अब मदारियों की ट्रेंड बदल गया है। उनका स्थान बाबाओं ने ले लिया है। मदारी डुगडुगी बजार भीड़ एकत्र करता था। बांसुरी बजाता था। खेल दिखाता था। फिर लोगों ने पेट भरने के लिए एक मुट्ठी अनाज की मांग करता था। लोग खुशी खुशी दे देते थे। अब मदारी पंडाल और जनसभाओं में पहुंचते हैं। कोई वोट मांगता है तो कोई धर्म के नाम पर दान। वहीं, किसी ने तो कई उत्पादों की दुकानें खोल दी। भीड़ बढ़ रही है। लोग उनके पीछे पागल हो रहे हैं। वे रिेंग मास्टर की तरह लोगों को नचा रहे हैं। भय दिखाकर उनका काम चल रहा है। अगड़ों को पिछड़ों से, उत्तर को दक्षिण से, पूरब को पश्चिम से, ठाकुर को पंडित से, हिंदू को मुस्लिम से, या फिर ईसाई से भय दिखाया जा रहा है। खेल चल रहा है। डुगडुगी बज रही है। ताली भी बजती है और समाज के ठेकेदारों का काम भी चलता है। जब तक डुगडुगी बजेगी, तब तक ये खेल जारी रहेगा। (जारी, अगले पैरे में देखिए)
मदारी का खेल
मदारी जब भीड़ जमा कर लेता था तो उसके साथ एक लड़का या परिवार के कुछ लोग होते थे। जो उसके खेल में मदद करते थे। मदारी गोल घेरा बनाए दर्शकों के बीच कोई डंडा या फिर कुछ अन्य वस्तु रखता था। फिर कहता कि उसे कोई उठाए, लेकिन दर्शकों में शायद ही कोई साहस कर पाता कि उस डंडे को छू तक ले। मदारी का डर, क्या पता वह जादू के बकरा या मुर्गा ना बना दे। मैने कई बार मदारी के खेल में शामिल होने के लिए उसकी लाठी को उठाया, लेकिन उसने मुझे इस काम में शामिल नहीं किया और दूसरा ही बच्चा इसके लिए चुना। करीब 25 साल पहले मैने इसी तरह का एक खेल देहरादून में एडीएम के कार्यालय में भी देखा। तब पता चला कि मदारी अब गांव और गली मोहल्लों में खेल दिखाने की बजाय पढ़े लिखे तबके को ही खेल दिखाने सरकारी कार्यालय पहुंच रहे हैं। (जारी, अगले पैरे में देखिए)
खेल में क्या था ऐसा
खेल वही थे। कभी कटोरी को हवा में उछालकर गायब करना, तो कभी खाली बर्तन से सामान निकालना। ये खेल चलता रहा। अंत में मदारी के खेल में ये होता है कि किसी व्यक्ति को जमीन पर लिटाकर, उस पर चादर ओढ़ाकर पर्दे के पीछे से या तो उसकी गर्दन काटे, या फिर शरीर को कुछ हिस्सों में बांट दे। एडीएम के कार्यलय में उसने इस काम के लिए एक चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी को चुना। उसे मंत्री से बेहोश किया और फिर उसे चादर के भीतर ऐसे तोड़ा मरोड़ा कि लगा उसका शरीर कई हिस्सों में बांट रहा है। खेल खत्म हुआ और एडीएम ने मदारी को ईनाम दिया। दूसरे कर्मचारियों ने भी अपनी जेब को ढीला किया। कुछ दिन बाद मुझे वही चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी मिला। मैने उससे पूछा कि मदारी वाले खेल में तुम्हें बेहोश किया गया, उसकी सच्चाई क्या है। वो कर्मचारी बोला-सर क्या बताऊं, उसे रोटी खानी थी। सो मैने मदद कर दी। यानि कि मदारी ने खेल दिखाने से पहले उसे सब समझा और पढ़ा दिया था कि उसे क्या बोलना है। (जारी, अगले पैरे में देखिए)
गली मोहल्लों वाला मदारी
अब मेरे मोहल्ले में हुए एक खेल के बारे में जानिए। करीब 45 साल पहले मदारी मोहल्ले के एक बच्चे को अपने खेल में शामिल करता है। बच्चे से कहता है कि तेरी शादी हो गई। वो मना करता है। मदारी उसकी दुल्हन के लिए एक खाली टोकरी से सामान निकालता है। टोकरी कपड़े से ढकी होती है। इस सामान में साड़ियां, चूड़ी व कुछ अन्य वस्तुएं होती हैं। फिर अचानक बच्चा कहता है कि मेरी पत्नी को रेडियो भी चाहिए। (जारी, अगले पैरे में देखिए)
मदारी उपक्रम करता है कि ये संभव नहीं है। फिर लोगों से पैसों की डिमांड करता है। लोग उसकी मदद करते हैं। जी खोलकर दान दक्षिणा देते हैं। अंत में वह एक रेडियो निकालता है। लोग ताली बजाते हैं। उस बच्चे से बाद में जब मैने पूछा कि मुझे मदारी अपने खेल में शामिल क्यों नहीं करता, तो उसने बताया कि मदारी ने खेल दिखाने से पहले उसे सब कुछ बता दिया था कि क्या बोलना है। (जारी, अगले पैरे में देखिए)
बाबाओं का खेल
अब हम बाबा कहें या प्रचारक। वह भी ठीक उसी प्रकार का खेल दिखा रहे हैं, जो मदारी के खेल में देखता था। दावा किया जाता है कि बाबा की दवा खाकर सारे रोग का निदान हो गया। बाबा का मंत्र लेकर परिवार के संकट दूर हो गए। बाबा भूत प्रेत को भगाते हैं। ऐसे बाबाओं की भरमार है। साथ ही उनके अनुयायियों की भी। ये तो समझ आ गया कि मदारी की तरह उनके पंडाल में पहले से सिखाए गए काफी लोग भी होते हैं। ठीक मदारी के खेल की तरह। यदि बाबा में वाकई शक्ति है तो वे इन समस्याओं का निदान क्यों नहीं करते। जो मैं आगे बता रहा हूं। (जारी, अगले पैरे में देखिए)
तंत्र मंत्र की शक्ति से चीन को दो जवाब
बाबा चमत्कारी हैं तो उन्हें चीन को भी जवाब देना चाहिए। वो भी तंत्र मंत्र की शक्ति से। हाल ही की रिपोर्ट बताती है कि लद्दाख सीमा पर चीन की सेना किसी बड़े युद्ध की तैयारी कर रही है। चीन के राष्ट्रपति ने सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए उनसे बातचीत भी की। अब इन बाबा को चाहिए कि वह तंत्र और मंत्री की शक्ति से चीनी सेना को कई किलोमीटर दूर खदेड़ दे। ये देश की जनता पर उपकार होगा। इनके अनुयायी भी ऐसे हैं कि वे एक शब्द इनके बारे में सुनने को तैयार नहीं। बाबा बिजनेस कर रहे हैं और जनता इन्हें लेकर आपस में लड़ रही है। आग में घी मीडिया भी दे रहा है। (जारी, अगले पैरे में देखिए)
धर्म परिवर्तन का भय
बाबा तो भय दिखा रहे हैं कि हिंदुओं पर संकट है। धर्म परिवर्तन कर हिंदुओं को दूसरे धर्म अपनाने पर विवश किया जा रहा है। सब एक हो जाओ। क्या समस्या ये है या फिर दूसरी। क्यों कोई धर्म परिवर्तन का निर्णय लेगा। ऐसा निर्णय लेने वाले आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं। बच्चों को शिक्षा, रोजगार के लालच में वे धर्म परिवर्तन को विवश होते हैं। इसका इलाज सिर्फ एकमात्र यही है कि रोजगार के संसाधन बढ़ें और गरीब का स्तर ऊपर उठे। शिक्षा, स्वास्थ्य सब मुफ्त हों। यहां तो नेताओं ने स्कूल खोल दिए हैं, अस्पताल खोल दिए हैं, फिर फ्री स्वास्थ्य की बात भी बेमानी होगी। उन्हें डर है कि गरीब तबका ज्यादा पढ़ गया तो सारा खेल खराब हो जाएगा। (जारी, अगले पैरे में देखिए)
अब स्थिति ये है कि 80 करोड़ लोग सरकार के मुफ्त राशन योजना के भागीदार बने। यानि कि देश में 80 करोड़ जनता गरीब है। गरीबी दूर करने की कोई योजना नहीं है। मुफ्त के राशन से गरीबी दूर नहीं हो सकती। ऐसे में अध्यात्म, धर्म की बात करो। दूसरे धर्म के लोगों को गालियां दो, लोगों को डराओ। राजनीति करते रहो। ये ही तो सब हो रहा है। पहले और अब में अंतर क्या है। (जारी, अगले पैरे में देखिए)
मीडिया से उम्मीद
मीडिया से आप देश को बदलने और सही बात परोसने की उम्मीद कम ही कर सकते हो। क्योंकि आजकल चैनलों में चमत्कार पर चर्चा हो रही है। गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य के मुद्दे गायब हैं। किसान सड़कों पर हैं। युवा सड़कों पर हैं। चाहे कांग्रेस शासित राज्य हो या फिर बीजेपी शासित, सरकारी नौकरियों में भर्ती अटकी हुई हैं। जहां भर्ती परीक्षा हो रही हैं, वहां पेपर लीक हो रहे हैं। बार बार परीक्षा निरस्त हो रही है। फिर ध्यान बंटाने के लिए बाबा का ही तो सहारा है। मीडिया भी तो मजमा लगा रहा है। लोगों को गुमराह कर रहा है। (जारी, अगले पैरे में देखिए)
मीडिया और अंधविश्वास
मेरा बड़ा भाई भी पत्रकार रहा और मैं भी करीब 32 साल से पत्रकारिता कर रहा हूं। पहले मीडिया अंधविश्वास और पाखंड को लेकर रिसर्च करता था। करीब 1985 की बात होगी। देहरादून के अनारवाला में एक मकान में अचानक आग लग रही थी। मकान में रहने वाला काफी सामान बाहर निकाल चुका था और पेड़ के नीचे परिवार ने आसरा बना लिया। मकान पुराना था। रात को उस पर पथराव होता था। आजकल के मीडिया की तरह तब भी मीडिया ने उस घर को भूत का घर घोषित कर दिया। तब मेरे भाई राजू बंगवाल ने दैनिक समाचार पत्र दून दर्पण में खबर प्रकाशित की और मकान में आग लगनी बंद हो गई। (जारी, अगले पैरे में देखिए)
ये उठाए सवाल
रिपोर्ट में सवाल उठाए गए कि मकान में जब भी आग लगती है तो सामान वो ही जलता है जो अनउपयोगी है। जैसे कोई कपड़ा, दरी आदि। पूर्व फौजी का ये मकान था और हो सकता है उसे रासायनिक का ज्ञान हो। फिर बताया गया कि गीला कपड़ा जैसे ही सूखता हो तो हवा के संपर्क में आने से कैसे उसमें आग लग सकती है। कारण बताए कि पूर्व फौजी दूसरा नया मकान बनाना चाहता है। इसके लिए उससे लोगों की आर्थिक मदद की दरकार होगी। ऐसे में उसने इस तरह के चमत्कार कर भूत का भय दिखाकर सहानुभूति बटोरने का प्रयास किया। ताकि लोग उसे चंदा दे दें और वह नया मकान बना सके। लेख प्रकाशित होने के कुछ ही दिन बाद मकान में आग लगनी बंद हो गई। साथ ही मकान से बाहर निकला परिवार वापस घर में घुस गया। (जारी, अगले पैरे में देखिए)
दूसरा उदाहरण
करीब 20 साल पहले की बात है। हिमाचल प्रदेश के शिमला में एक धार्मिक गुरु ने खुद को कमरे में बंद किया और वहां समाधी लगा ली। बाहर से लोग शीशे से गुरु को देखते थे। फिर अचानक गुरु समाधि से गायब हो गए। समाधी कई दिनों के लिए थी। लोगों ने चकत्कार के रूप में इसे प्रचारित किया। मीडिया ने भी भरपूर सहयोग किया। ठीक उसी तरह जैसे दो हजार के नोट में चिप होने की बात कहकर प्रचार किया गया। यहां भी राजू बंगवाल ने अमर उजाला में रिपोर्ट प्रकाशित की। इस पर धमकियां मिली। पुलिस अधीक्षक कुछ ज्यादा इस मामले में दिलचस्पी दिखा गए। उन्होंने उस स्थल के चारों और पहरा लगा दिया, जिससे धर्म गुरु वापस कमरे में ना घुस सके। इसके बाद धर्म गुरु किसी शहर में घूमता हुआ पकड़ा गया। उसकी योजना निर्धारित अवधि पर वापस कमरे में घुसने की थी, जो पुलिस और पत्रकार की जागरूकता के चलते पूरी नहीं हो पाई। (जारी, अगले पैरे में देखिए)
एक उदाहरण ये भी
उस समय मैं अमर उजाला में था। दो साल ऋषिकेश और तीन साल सहारनपुर में रहा और वर्ष 1998 के अंत में तबादला होने पर मैं वापस देहरादून घर लौट आया। वर्ष 99 में मैं एक पत्रकार वार्ता में गया। ये वार्ता किसी अस्पताल में थी। वहां कई चिकित्सक भी थे और एक ज्योतिष महाराज भी। ज्योतिष महाराज किसी का हाथ पकड़कर उसका टच थैरेपी से भूत, वर्तमान और भविष्य बताने का दावा करते थे। प्रेस वार्ता के बाद मैने उन महाराज की परीक्षा ले डाली। (जारी, अगले पैरे में देखिए)
मैने महाराज से कहा कि मेरी समस्या का समाधान कर दो। मेरा रिश्ता नहीं हो रहा है। जहां भी शादी की बात चलती है मैं उन्हें अपने बारे में सच बता देता हूं। ऐसे में कोई मुझे लड़की देने को तैयार नहीं रहता है। क्योंकि मैं बता देता हूं कि रात को कभी कभी शराब पीता हूं। इसका कोई दिन तय नहीं है। मेरा घर वापस लौटने का कोई समय तय नहीं है। इस पर ज्योतिष महाराज ने दावा किया कि तीन माह बाद मेरी शादी हो जाएगी। फिर जलपान का आयोजन था। तब एक चिकित्सक ने मुझसे कहा कि तीन माह बाद हमें दावत में बुला रहे हो। मैंने कहा कि हां दो अक्टूबर को। वो बोले क्या कहीं बात चल रही है। मैंने उनसे कहा कि उस दिन मेरे बेटे का पहला जन्मदिन है।
भानु बंगवाल
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भानु बंगवाल
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।