देवताओं का प्रभातकाल है मकर संक्रांति का पर्वः माधव सिंह नेगी
माघ मकर गत रवि जब होई। तीरथ पतिहिं आव सब कोई ।।
देव दनुज किंनर नर श्रेनीं। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनी ।।
सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना मकर संक्रांति कहलाता है। इसी दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। शास्त्रों में उत्तरायण की अवधि को देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि कहा गया है। इस तरह मकर संक्रान्ति एक प्रकार से देवताओं का प्रभात काल है। इस दिन स्नान, दान, जप, तप, श्राद्ध तथा अनुष्ठान आदि का अत्यधिक महत्व है। कहते हैं कि इस अवसर पर किया गया दान सौ गुणा होकर प्राप्त होता है।
तमिलनाडु में पोंगल के रूप में मनाते हैं पर्व
मकर संक्रांति के दिन घृत-तिल-कंबल-खिचड़ी दान का विशेष महत्व है। इसका दान करने वाला सम्पूर्ण भोगों को भोगकर मोक्ष को प्राप्त होता है। तमिलनाडुमें मकर-संक्रान्ति को ‘पोंगल ‘के रूपमें मनाया जाता है। इस दिन तिल, चावल, दालकी खिचड़ी बनायी जाती है। नयी फसल का चावल, दाल, तिलके भोज्यपदार्थसे पूजा करके कृषिदेवताके प्रति कृतज्ञता प्रकट की जाता है। तमिल पंचांग का नया वर्ष पोंगल से शुरू होता है।
माघ का महीना, प्रकृति होने लगती है अनुकूल
माघ का महीना पहले माध का महीना था, जो बाद में माघ हो गया। “माध” शब्द का संबंध श्री कृष्ण के एक स्वरूप “माधव” से है। इस महीने को अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस महीने में ढेर सारे धार्मिक पर्व आते हैं। साथ ही प्रकृति भी अनुकूल होने लगती है। इसी महीने में संगम पर “कल्पवास” भी किया जाता है जिससे व्यक्ति शरीर और आत्मा से नवीन हो जाता है।अन्य मान्यताओं में ज्योतिष के अनुसार पौष के बाद माघ माह का प्रारम्भ होता है। इसका नाम माघ इसलिए रखा गया क्योंकि यह मघा नक्षत्रयुक्त से प्रारम्भ होता है।
चन्द्रमास के महीनों के नाम नक्षत्रों पर ही आधारित हैं, जैसे, चैत का चित्रा, बैशाख विशाखा, ज्येष्ठ का ज्येष्ठा, आषाढ़ का आषाढ़ा, सावन का श्रवण, भाद्रपद का भाद्रपदा, अश्विन का अश्विनी, कार्तिक का कृतिका, मार्गशीर्ष का मृगशिरा, पौष का पुष्य, माघ का मघा व फाल्गुन का फाल्गुनी नक्षत्र से संबंध है।पौष मास में पुष्य नक्षत्र की पूर्णिमा के बाद मघा नक्षत्र से निवेदन माघ मास का प्रारम्भ होता है, जबकि सौर मास के अनुसार पौष महीने के अंत दिवस के बाद माघ मास प्रारम्भ हो जाता है।
श्रीकृष्ण की पूजा का विशेष महत्व
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, माघ महीने में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा का विशेष फल मिलता है। मान्यता है कि इस महीने में काले तिलों से पूजा करने से शनि ग्रह के कुप्रभाव से राहत मिलती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इस महीने में यदि विधिपूर्वक भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाए तो सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। माघ मास में विधिपूर्वक भगवान श्रीकृष्ण की पूजा से पहले सुबह तिल, जल, फूल, कुश लेकर प्रकार संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद श्रीकृष्ण की प्रार्थना और पूजा करें। श्रीकृष्ण को घर में शुद्धतापूर्वक बने पकवानों का भोग लगाएं। उसमें तुलसी के पत्ते जरूर डालें।
तीर्थ और नदियों में स्नान का महत्व
इस तरह पूरे माघ मास में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से दुख दूर होते हैं और घर में सुख-समृद्धि रहती है। माघ मास की ऐसी महिमा है कि इसमें जहां कहीं भी जल हो, वह गंगाजल के समान होता है, फिर भी प्रयाग, काशी, नैमिषारण्य, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार तथा अन्य पवित्र तीर्थों और नदियों में स्नान का बड़ा महत्व है।
‘माघे निमग्नाः सलिले सुशीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति।’
‘प्रीतये वासुदेवस्य सर्वपापानुत्तये।माघ स्नानं प्रकुर्वीत स्वर्गलाभाय मानवः॥
पापों से मिलती है मुक्ति
पुराणों के अनुसार इस मास में शीतल जल के भीतर डुबकी लगाने वाले मनुष्य पापमुक्त हो स्वर्ग लोक में जाते हैं। पद्मपुराण के अनुसार माघ मास में पूजा करने से भी भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघ महीने में स्नान मात्र से होती है। इसलिए सभी पापों से मुक्ति और भगवान वासुदेव की प्रीति प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान करना चाहिए।
माघमासे गमिष्यन्ति गंगायमुनसंगमे।
ब्रह्मा विष्णु महादेवरुद्रादित्यमरूद्गणा:।।
प्रयागराज में स्नान से मिलता है पुण्य
माघ मास में प्रयाग संगम तट पर कल्पवास करने का विधान है। साथ ही माघ मास की अमावास्या को प्रयागराज में स्नान से अनंत पुण्य प्राप्त होते हैं। वह सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाता है क्योंकि ब्रह्मा, विष्णु, महादेव, रुद्र, आदित्य तथा मरूद्गण माघ मास में प्रयागराज के लिए यमुना के संगम पर गमन करते हैं।
पद्म पुराण में माघ मास में कल्पवास के दौरान स्नान, दान और तप के माहात्म्य का विस्तार से वर्णन मिलता है। इसके अलावा माघ में ब्रह्मवैवर्तपुराण की कथा सुनने के महत्व का वर्णन भी मिलता है।
वसंत ऋतु का प्रारंभ
माघ महीने की शुक्ल पंचमी से वसन्त ऋतु का आरम्भ होता है और तिल चतुर्थी, रथसप्तमी, भीष्माष्टमी आदि व्रत प्रारम्भ होते हैं। माघ शुक्ल चतुर्थी को उमा चतुर्थी कहा जाता है। शुक्ल सप्तमी को व्रत का अनुष्ठान होता है। माघ कृष्ण द्वादशी को यम ने तिलों का निर्माण किया और दशरथ ने उन्हें पृथ्वी पर लाकर खेतों में बोया था। अतएव मनुष्यों को उस दिन उपवास रखकर तिलों का दान कर तिलों को ही खाना चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा होती है।
लेखक का परिचय
नाम- माधव सिंह नेगी
प्रधानाध्यापक- राजकीय प्राथमिक विद्यालय जैली, ब्लॉक जखोली, रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।