Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

April 19, 2025

केंद्र सरकार ने राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जवाब देने को सुप्रीम कोर्ट से मांगा समय

केंद्र ने राजद्रोह पर औपनिवेशिक युग के दंड कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए उच्चतम न्यायालय से समय मांगा है।

केंद्र ने राजद्रोह पर औपनिवेशिक युग के दंड कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए उच्चतम न्यायालय से समय मांगा है। प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने 27 अप्रैल को केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था। कहा था कि वह पांच मई को मामले में अंतिम सुनवाई शुरू करेगी तथा स्थगन के लिए किसी भी अनुरोध पर विचार नहीं करेगी. अदालत के समक्ष दायर एक आवेदन में केंद्र ने कहा कि हलफनामे का मसौदा तैयार है और वह सक्षम प्राधिकारी से पुष्टि की प्रतीक्षा कर रहा है।
शीर्ष अदालत ने अपने पिछले आदेश में कहा था कि वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (राजद्रोह) की वैधता के खिलाफ याचिकाकर्ता की ओर से दलील संबंधी नेतृत्व करेंगे। राजद्रोह से संबंधित दंडात्मक कानून के दुरुपयोग से चिंतित शीर्ष अदालत ने पिछले साल जुलाई में केंद्र सरकार से पूछा था कि वह उस प्रावधान को निरस्त क्यों नहीं कर रही, जिसे स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने और महात्मा गांधी जैसे लोगों को चुप कराने के लिए अंग्रेजों द्वारा इस्तेमाल किया गया।
भादंसं की धारा 124 ए (राजद्रोह) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और पूर्व मेजर-जनरल एस जी वोम्बटकेरे की याचिकाओं की पड़ताल के लिए सहमत होते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसकी मुख्य चिंता ‘कानून का दुरुपयोग’ है जिसके कारण मामलों की संख्या में वृद्धि हो रही है। पिछले साल जुलाई में याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हुए शीर्ष अदालत ने प्रावधान के कथित दुरुपयोग का उल्लेख किया था और पूछा था कि क्या आजादी के 75 साल बाद भी औपनिवेशिक युग के कानून की आवश्यकता है ?
प्रधान न्यायाधीश ने कहा था कि यह एक औपनिवेशिक कानून है। यह स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए था. इसी कानून का इस्तेमाल अंग्रेजों ने महात्मा गांधी, तिलक आदि को चुप कराने के लिए किया था. क्या आजादी के 75 साल बाद भी यह जरूरी है ? अन्य याचिकाकर्ताओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी और मणिपुर से पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेमचा तथा छत्तीसगढ़ से कन्हैया लाल शुक्ला शामिल हैं।

Website |  + posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page