केंद्र सरकार ने राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जवाब देने को सुप्रीम कोर्ट से मांगा समय
केंद्र ने राजद्रोह पर औपनिवेशिक युग के दंड कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए उच्चतम न्यायालय से समय मांगा है।

शीर्ष अदालत ने अपने पिछले आदेश में कहा था कि वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (राजद्रोह) की वैधता के खिलाफ याचिकाकर्ता की ओर से दलील संबंधी नेतृत्व करेंगे। राजद्रोह से संबंधित दंडात्मक कानून के दुरुपयोग से चिंतित शीर्ष अदालत ने पिछले साल जुलाई में केंद्र सरकार से पूछा था कि वह उस प्रावधान को निरस्त क्यों नहीं कर रही, जिसे स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने और महात्मा गांधी जैसे लोगों को चुप कराने के लिए अंग्रेजों द्वारा इस्तेमाल किया गया।
भादंसं की धारा 124 ए (राजद्रोह) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और पूर्व मेजर-जनरल एस जी वोम्बटकेरे की याचिकाओं की पड़ताल के लिए सहमत होते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसकी मुख्य चिंता ‘कानून का दुरुपयोग’ है जिसके कारण मामलों की संख्या में वृद्धि हो रही है। पिछले साल जुलाई में याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हुए शीर्ष अदालत ने प्रावधान के कथित दुरुपयोग का उल्लेख किया था और पूछा था कि क्या आजादी के 75 साल बाद भी औपनिवेशिक युग के कानून की आवश्यकता है ?
प्रधान न्यायाधीश ने कहा था कि यह एक औपनिवेशिक कानून है। यह स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए था. इसी कानून का इस्तेमाल अंग्रेजों ने महात्मा गांधी, तिलक आदि को चुप कराने के लिए किया था. क्या आजादी के 75 साल बाद भी यह जरूरी है ? अन्य याचिकाकर्ताओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी और मणिपुर से पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेमचा तथा छत्तीसगढ़ से कन्हैया लाल शुक्ला शामिल हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।