अंग्रेजों ने किया करार, अब हिंदुस्तानियों का इंकारः विनोद जोशी
देहरादून में देश के प्रतिष्ठित संस्थान वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) में प्रवेश को लेकर अंग्रेजों ने जो करार किया था, उसे आजादी के बाद अब ध्वस्त कर दिया गया। स्थिति ये है कि शार्ट कट रास्ता अपनाने के लिए युवा तो संस्थान का गेट फांदकर अपने गणतव्य को जाने को मजबूर हैं। एफआरआई प्रशासन के रवैये के चलते इस संस्थान के दक्षिणी हिस्से से सटे इलाकों के लोगों को खासी दिक्कतों का समाना करना पड़ता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
एफआरआई के पश्चिमी छोर के रास्ते से चकराता रोड की तरफ जाने में अंग्रेजी हुकुमत के समय में कोई रोक टोक नही थी। कौलागढ़ से लगे आसपास के गांवो से लेकर पौंधा, विधौली तक के निवासी बेरोकटोक एफआरआई परिसर से आना जाना करते थे। जब देश आजाद हुआ और एफआरआई परिसर की बागडोर भारतीयों के हाथ में आयी, तबसे एफआरआई परिसर से होकर गुजरने को लेकर 36 नियम कानून बना दिये गए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अंग्रेजी हुकूमत के समय ऐसा कोई कानून या नियम नहीं था, जिससे स्थानीय लोगों को दिक्कत हो। दरअसल एफआरआई को बनाने के लिए कौलागढ और आसपास के जमींदारों ने अपनी जमीने दी थी। अंग्रेजी हुकूमत द्वारा प्रसिद्ध गांधी वादी स्वतंत्रा सेनानी नारायण दत्त डंगवाल और अन्य जमींदारों के साथ करार किया था कि कौलागढ़ और आसपास के गांवो के निवासियों के एफआरआई से आने जाने में कोई रोकटोक नही रहेगी। ग्रामीण नि:शुल्क एफआरआई परिसर से आ जा सकेंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उस वक्त चारों तरफ खेती होती थी और ग्रामीण बैलगाड़ी से अनाज और अन्य सामान लेकर बेरोकटोक एफआरआई से होकर दूसरी सड़क तक पहुंचते थे। पैदल चलने वालों के लिए कोलागढ़ क्षेत्र में जो प्रवेश द्वार बनाया गया था, वह स्थान चरखी गेट कहलाता था, जो आज भी इसी नाम से जाना जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जरूरी काम से जाने वालों को भी कई तरह की पूछताछ और पहचान पत्र दिखाने के बाद जाने दिया जाता है। एफआरआई परिसर में केन्द्रीय विद्यालय और एक बैंक भी है। स्कूल मे एफआरआई कर्मचारियों के अलावा अन्य निवासियों के बच्चे भी पढंते हैं। ऐसे ही बैंक में एफआरआई कर्मचारियों के अलावा अन्य निवासियों के खाते भी हैं। एफआरआई प्रशासन की तानाशाही के कारण इनको भी आने जाने में परेशान किया जाता है। एफआरआई परिसर में निवास करने वाले लोगों को भी अपने रोजमर्रा का सामान लेने में बहुत ज्यादा परेशानी होती है। कौलागढ के दुकानदार इनको गेट पर आकर सामान देते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जरूरी काम से परिसर से बाहर आने वालों को गेट फांदकर कौलागढ़ की तरफ जाना पड़ता है। कुछ तो कौलागढ से एफआरआई परिसर में आने वाली नाले के रास्ते से होकर आते जाते हैं। चरखी के पास एक डॉक्टर निजी क्लिनिक चलाते हैं, उन तक पहुंचने वालों को भी कौलागढ़ गेट से चढ़कर कौलागढ़ आना पडता है। एफआरआई प्रशासन को इस समस्या का समाधान निकालना चाहिए। ताकि आसपास के निवासी परेशान ना हों।
लेखक का परिचय
विनोद जोशी, सामाजिक कार्यकर्ता कौलागढ़ देहरादून, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।