शिक्षिका उषा सागर की कविता-हम और बुढ़ापा

इक दिन बुढ़ापे में
जब कमर झुक जाएंगी
जवानी की हर बात
तब हमें याद आएंगी
लिया जन्म जब हमने
घर भर में खुशियां मनाई गई होंगी
आ आ कर हर किसी ने
ढेरों बधाइयां दी होंगी
रातों की नींद उजाड़ मां की
चैन से सोए होंगे
फिर मां के सोते ही
आधी रात उठ रोए होंगे
ए बातें हमें अब
सदा याद आएंगी
इक दिन बुढ़ापे में
जब कमर झुक जाएंगी
गृहस्थ की जिम्मेदारी
पड़ी हम पर भारी
सुबह से शाम तलक
सबकी खिदमतगारी
कभी शौक से कभी मजबूरी में
कभी फर्ज समझ कर
निभाई पूरी जिम्मेदारी
फर्ज निभाते निभाते
बुढ़ापा आ गया इस कदर
और ए फर्ज बना अब लाचारी
जवानी में चैन पाया न
नींद भर सोए कभी
सुनीं बातें सभी की
फर्ज की दुहाई देते सभी
करती थीं मां जो भी हमारे लिए
ओ अब समझ आएंगी
इक दिन बुढ़ापे में
जब कमर झुक जाएंगी
घेर लिया अब हमें
अनेकों बीमारियों ने
अब न सहा जाएगा हमसे
सोचकर किन्हीं बारीकियों में
न कर सकेंगे सेवा किसी की
अब खुद को ही ज़रुरत होगी
किया जिनके लिए
हमने सब कुछ
उनके पास ही अब
न हमारे लिए फुर्सत होगी
सोचते होंगे वे अब
कि ए मुसीबत बन गए
जाएंगे ए कब तलक
कदम क्यों रुक गए
फिर एक दिन ए
सांसें टूट जाएंगी
हर यादें मेरे साथ ही
दफन हो जाएंगी
न किसी को हमारी
तनिक याद आएंगी
इक दिन बुढ़ापे में
जब कमर झुक जाएंगी
कवयित्री का परिचय
उषा सागर
सहायक अध्यापक
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय गुनियाल
विकासखंड जयहरीखाल, जिला पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड।
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