शिक्षिका उषा सागर की कविता-वसन्त ऋतु

सज-धज कर जिसमें
धरती दुल्हन सी बन जाती है
सब ऋतुओं में यही ऋतु
तो वसन्त ऋतु कहलाती है
फैली चहुं दिशा में है
नव किसलय की लाली
रंग-बिरंगे फूल खिले हैं
उमंग भरी खुशहाली
फूलों पर मंडराने की
भौरों में छाई ख़ुमारी है
कोयल अपने मीठे स्वर में
गा-गा कर सबका मन लुभाती है
सब ऋतुओं में यही ऋतु
तो वसन्त ऋतु कहलाती है।।
ठिठुरती ठंड भगाकर
गरमाहट ले आती है
त्योहारों की खुशियां बनकर
सबका मन हर्षाती है
होली, शिवरात्रि, वसन्त पंचमी
मुख्य त्योहारों में आते हैं
खुशियों के संग रंग से
तन-मन सरावोर हो जाते हैं
धरती को पीला करती सरसों
मस्ती में लहलहाती हैं
सब ऋतुओं में यही ऋतु
तो वसन्त ऋतु कहलाती है।।
कवयित्री का परिचय
उषा सागर
सहायक अध्यापक
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय गुनियाल
विकासखंड जयहरीखाल, जिला पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड।