शिक्षिका उषा सागर की कविता-दर्द भरी ममता

सिर पर लकड़ियों का गट्ठर लिए हुए।
भरी दोपहर में पसीने से तर-बतर,
पैदल सड़कों पर बोझा भारी लिए हुए।
चेहरे की झुर्रियां और भाव वयां कर रहे थे,
क्या ज़िन्दगी है मेरी नैनों से कह रहे थे।
कुल, वंश, घर पूरा भरा हुआ,
फिर भी न कोई है पास मेरे।
दे रही दिल से आशीष सब को,
आये न दुख दर्द कभी पास तेरे।
उन्नति के पथ चलें, खुश रहें सदा,
फूले फले वंश तेरा,कह रही लाल मेरे।
परवरिश की थी जिनकी बड़े प्यार दुलार से,
दुखता है दिल आज,उन्हीं के व्यवहार से।
मां का ऋण न चुका पाया कोई,न चुका पाएगा,
आएगा जब होश में तो, तू बहुत पछताएगा।
उम्र है जो विश्राम की वह दबी है बोझ तले,
छोड़कर यूंही बेसहारा मुझे परदेश तुम चले।
मत भूलो ए अफसाना फिर दोहराया जाएगा,
बोया है जो तुमने उसे शायद तू भी तो पाएगा।।
कवयित्री का परिचय
उषा सागर
सहायक अध्यापक
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय गुनियाल
विकासखंड जयहरीखाल, जिला पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड।

Bhanu Prakash
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।