शिक्षिका उषा सागर की कविता, शीर्षक सूझे तो कमेंट बॉक्स में लिख देना
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बैठे हैं हम सब, विद्यालय के दालान में
न खेल रहा कोई भी, बालक प्रांगण में
सूना पड़ा विद्यालय अपना, कोरोना की मार से
हम रोज उपस्थित हो रहे हैं, सरकार के वार से
शिक्षक को निर्जीव कहें, या दैवी अवतार
डाले जाते हैं उस पर, सभी तरह से कार्यभार
शिक्षक जीवन की रही न कीमत, लगाया गया हर गणना में
न खेल रहा कोई भी, बालक प्रांगण में।
बिन बच्चों के विद्यालय में, आना इक मजबूरी है
रखना सुरक्षित है उन्हें तो, आवश्यक सामाजिक दूरी है
लालायित हैं सब बच्चे, विद्यालय अपने आने को
तरस रहे हैं शिक्षक भी, ऑफलाइन पढ़ाने को
होंगे कब एकत्र हम सब, एक ही आंगन में
न खेल रहा कोई भी, बालक प्रांगण में।
ग्रीष्म, शीत बीत गया, अब वर्षा की बारी है
शिक्षक और बच्चों से भरी, ए अनोखी क्यारी है
विद्यालय खुलने की आश नहीं, हुई बड़ी लाचारी है
बच्चे भी अपने पास नहीं, सूनी पड़ी फुलवारी है
बरस रहे हैं मेघ, गरज गरज कर सावन में
न खेल रहा कोई भी, बालक प्रांगण में।
सूनी बगिया के हम, ठेकेदार बनें हैं
शिक्षक नहीं अब हम, चौकीदार बनें हैं
निहार रहे हैं बैठे हम, है प्रकृति कितनी सुंदर
विधना की ए रचना देखो, सारे गुण समाहित हैं उसके अंदर
खेल रहे हैं गोद में उसकी, नदिया, पोखर, झरना
विद्यालय खुलने की अब, सिर्फ प्रतिक्षा करना
भूल कष्ट होंगे एकत्र, फिर से विद्यालय मैदान में
न खेल रहा कोई भी, बालक प्रांगण में।
कवयित्री का परिचय
उषा सागर
सहायक अध्यापक
राजकीय उच्चतर प्राथमिक विद्यालय गुनियाल
विकासखंड जयहरीखाल, जिला पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।