Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

June 18, 2025

अपनी बड़ी बहन को समर्पित शिक्षिका उषा सागर की कविता-एक कसक जो

अपनी बड़ी बहन को समर्पित शिक्षिका उषा सागर की कविता-एक कसक जो।

एक कसक जो..

आते-जाते तेरे शहर से
तुझे ही ढूंढे मेरी नज़र
आंखों में भरकर अश्क अपनी
तेरे शहर से यूंही जाऊं गुजर
जानती हूं मैं कि न होगा
कभी तेरा दीदार मुझे
फिर भी सदा रहता है
तेरा ही इन्तजार मुझे
तेरी रहगुजर से गुजरना
बस मजबूरी का सबब है
वरना तेरे बगैर इसे देखना
मुझे मंजूर ही कब है।।

यहां से दूर तलक
जाती है नजर मेरी
वहीं उस इलाके में
ठहर जाती है नजर मेरी
जहां तेरे प्यार की छांव में मैंने
अपना बहुत वक्त है गुजारा
मां की तरह अपने दुःख-दर्द में
हर वक्त मैंने तुझे ही पुकारा
तेरी यादों के समन्दर में
ढूंढूं तुझे मैं कहां-कहां
चली थी तेरे संग जिस जगह
ढूंढूं वहीं तेरे क़दमों के निशां।।

तेरे आखिरी पलों में
न मैं तेरे पास आ सकी
पुकारा था तुमने मुझे
न मैं वो आवाज सुन सकी
सुनकर तेरे आखिरी सफर
पर निकलने की खबर
चल पड़े कदम खुद
तेरी रहगुजर
लौट आओ जहां में
यही है मेरी तमन्ना
बस इतनी सी गुज़ारिश है तुमसे
मेरे घर की चश्म-ओ-चिराग बनना।।
कवयित्री का परिचय
उषा सागर
सहायक अध्यापक
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय गुनियाल
विकासखंड जयहरीखाल, जिला पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड।

Bhanu Bangwal

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page