शिक्षक नेताओं ने बयां की उत्तराखंड के विद्यालयों की दयनीय स्थिति, सीएम को लिखा पत्र, कहा-शिक्षा विभाग को कर दें न्यायालय के अधीन
उत्तराखंड में शिक्षा की दयनीय स्थिति किसी से छिपी नहीं है। दावे तो बढ़चढ़कर किए जा रहे हैं, लेकिन प्राथमिक शिक्षा से ही हालात खराब हैं। कहीं विद्यालय भवन जीर्णशीर्ण हैं तो कहीं शिक्षकों की कमी है। ऐसे में नौनिहालों का भविष्य कैसे सुधरेगा, इसे लेकर राजकीय शिक्षक संघ की गढ़वाल मंडल इकाई ने चिंता जाहिर की। साथ ही इस चिंता को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखा। इसमें मांग की गई है कि शिक्षा विभाग को न्यायालय के अधीन कर दिया जाए। ये पत्र मंडलीय अध्यक्ष श्याम सिंह सरियाल और महामंत्री डॉ. हेमंत पैन्यूली के हस्ताक्षर से सीएम को भेजा गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अधिकारियों की बैठाई फौज, लेकिन व्यवस्था में सुधार नहीं
पत्र में कहा गया है कि उत्तराखंड राज्य का निर्माण नवंबर 2000 को हुआ। इसके बाद राज्य के शैक्षिक संवर्धन के लिए शिक्षा विभाग का ढांचा भी स्थापित किया गया। इस ढांचे के अंतर्गत शासन स्तर से लेकर विद्यालय स्तर तक अलग-अलग स्थानों पर इसको संचालित करने के लिए कार्यालयों का निर्माण किया गया। इन कार्यालयों को संचालित करने के लिए लगभग हजार से ऊपर अधिकारीयों को बैठाया गया। ताकि यह ढांचा प्रदेश के नौनिहालों को एक मुकाम तक पहुंचाने वाले विद्यालयों को सही दिशा और दशा दे सके। फिर भी व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पिछड़ गया उत्तराखंड, समय पर ना किताब ना ड्रेस उपलब्ध
पत्र में आगे कहा गया है कि बड़े खेद से यह पत्र आपको लिखना पड़ रहा है कि राज्य के निर्माण को 22 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं और इस विभाग का स्तर नवीनतम राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण तथा पीजीआई इण्डेक्स की रिपोर्ट के अनुसार इस राज्य की स्थिति देश में सबसे न्यूनतम 36वें स्थान पर है। हर वर्ष माह अप्रैल में शिक्षा सत्र प्रारम्भ हो जाता है, किंतु सरकार की ओर से छात्रों हेतु दी जाने वाली सहायता पुस्तक, ड्रेस आदि समय से उपलब्ध न होकर सितंबर,अक्टूबर तक प्राप्त होती है। इससे शैक्षिक वातावरण प्रभावित होता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
हर दिन जारी होते हैं नए आदेश, फिर रद्दी की टोकरी में
शिक्षक नेताओं ने कहा कि प्रतिदिन इस विभाग में नए-नए प्रयोग करने के आदेश जारी होते हैं। शाम तक को वही आदेश रद्दी की टोकरी में चले जाते हैं। इस विभाग में किसी भी अधिकारी के पास निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त नहीं है। ऐसे में आदेश भी एक दूसरे के लिए अग्रसारित करते रहते हैं। जो अधिकारी निर्णय लेने की स्थिति में हैं, उन्हें निर्णय नहीं लेने दिया जाता है। इसका परिणाम यह है कि सारे के सारे निर्णय माननीय न्यायालय में विचाराधीन हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सबसे छोटी इकाई के हालात भी बदहाल, रिक्त पड़े हैं इतने पद
उन्होंने कहा कि वर्तमान में इस विभाग की सबसे छोटी इकाई विद्यालय में प्रदेश के नौनिहालों का सर्वांगीण विकास होने की बात कही जाती है। यहां की स्थिति बड़ी ही दयनीय है। यहां पर लगभग 1200 से ऊपर प्रधानाचार्य, 800 के लगभग प्रधानाध्यापक, 3600 से ऊपर प्रवक्ता एवं दो हजार से ऊपर सहायक अध्यापक के पद रिक्त चल रहे हैं। इन सभी का मामला माननीय न्यायालय में है। विभाग में बैठे अधिकारी इन मामलों पर कोई भी निर्णय नहीं ले पा रहे हैं। शायद निर्णय भी न्यायालय द्वारा ही लिया जाना है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
जब न्यायालय से ही निर्णय होने हैं, तो विभाग की क्या जरूरत
पत्र में आगे कहा गया है कि अतः राजकीय शिक्षक संघ, शाखा गढ़वाल मंडल कार्यकारिणी आपसे विनम्र अनुरोध करती है कि जब सारे निर्णय माननीय न्यायालय द्वारा ही लिए जाने हैं, तो विभाग की आवश्यकता ही क्या है। प्रदेश की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए सरकार में शिक्षा मंत्रालय सहित समस्त स्थापित कार्यालयों को बंद कर दे। साथ ही लंबित मामलों के शीघ्रातिशीघ्र निदान करवाने के लिए इस विभाग को माननीय न्यायालय के अधीन करने की कृपा कीजिएगा। ताकि नौनिहालों के भविष्य से खिलवाड़ होने से बचा जा सके। ताकि माननीय न्यायालय भी स्वच्छंद होकर अपना निर्णय दे सके।
देखें पत्र
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।