शिक्षिका हेमलता बहुगुणा की गढ़वाली कविताः कनी ब्यूली तुम-भैर छम्म भीतर छम्म

कनी ब्यूली तुम
कैन पूछी घर म ऐक
ल्याई कनी ब्यूली जैक
मैंन बोली घर म जैक
ब्यूली ईनी सुण दै बैठ।
भैर छम्म भीतर छम्म
इनी ल्याई ब्यूली हम।
खाणु बणौ दी छम्म छम्म
सेवा करदी अपनी जन
हंसदी खेली सबका संग
अपनी सगी बेटी जन।
भैर छम्म भीतर छम्म
इनी ल्याई ब्यूली हम।
घास जांदी पोगड़ा जांदी
हाथ म दथुड़ी छमछमादी
सेवा सलामी सबी तैं लगांदी
सास ससुर की सेवा करदी
भैर छम्म भीतर छम्म
इनी ल्याई ब्यूली हम
देवर जेठ की आदर करदी
ननद जेठसासु तैं दीदी कू भाव
प्यार प्रेम सी सबतै रखदी
ब्वारी हमारी सुंदर सजदी।
कैन पूछी घर म ऐक
कनी ल्याई ब्यूली तुम
भैर छम्म भीतर छम्म
इनी ल्याई ब्यूली हम।
कवयित्री का परिचय
नाम-हेमलता बहुगुणा
पूर्व प्रधानाध्यापिका राजकीय उच्चतर प्राथमिक विद्यालय सुरसिहधार टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।