शिक्षिका डॉ. पुष्पा खण्डूरी की कविता-संत चरित

बुरे बुराई ना तजें।
चाहे दीजे कोटिक सीख॥
पर संत ना छाड़े संतई।
चाहे लीजे कितना चीख॥
सर्प पिलावै दूध जोय।
तबहीं डसै विष बोय॥
गैया सूखा भूसा खाये के।
भी अमृत सम पय देय॥
गंगा मैया की महिमा है गेय।
पाप तार पावन करे नित,
नित पापी पतितों की देह॥
खुद शीत ताप को झेल कर,
सबको केवल शीतलता देय॥
मीठा – मीठा जल सबको बाँट के
खुद खारे सागर में जा गिरे,
करती नित निज खारी देह॥
मेघ स्वयं उड़ धुआं – धुआं,
बरसावे नित अमृत – धार।
झुलसी धरा हरी – भरी करें,
सरसावैं हरषावैं सर ताल॥
तरुवर पंथी को दे छाया सुखद
खग मृग को देते नित नीड़।
पत्थर बरसाने वालों को भी
देते मधु फल हाथ उलीच॥
कवयित्री का परिचय
डॉ. पुष्पा खण्डूरी
एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी
डी.ए.वी ( पीजी ) कालेज
देहरादून, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।