शिक्षिका डॉ. पुष्पा खण्डूरी की कविता-रे मन मूरख काहे भरमाए तू

हरि चरनन् चित्त,
काहे न लाए तू॥
भव सागर गहरा अति दुस्तर।
सौंप प्रभु को चिन्ता,
भव तर जाए तू॥
क्या तू साथ लाया प्यारे
क्या तू साथ ले के जाएगा।
लिया था यहीं से तूने,
सब यहीं छोड़ जाऐगा।
रे मन मूरख काहे भरमाए तू ।
हरि चरनन् चित्त,
काहे न लाए तू॥
माया जोड़ी तूने,
लाखों करोड़ी।
बिनु हरि कृपा,
काम आए न कौड़ी॥
आया जो बुलावा तो, झट दौड़ा चला जाएगा।
कोई रिश्ता नाता,
तुझे नहीं रोक पाएगा॥
रे मन मूरख काहे भरमाए तू।
हरि चरनन् चित्त,
काहे न लाए तू॥
भव सागर गहरा अति दुस्तर।
सौंप प्रभु को चिन्ता भव तर जाए तू॥
सत्कर्म तेरे तुझे राह दिखाएंगे,
दुष्कर्म तेरे तुझे और भरमाएंगे।
कोई जमा पूंजी तू ,
न संग ले जाएगा।
दिया है यहाँ जो प्यारे वही वहाँ पाएगा॥
रे मन मूरख काहे भरमाए तू।
हरि चरनन् चित्त काहे न लाए तू॥
भव सागर गहरा अति दुस्तर।
सौंप प्रभु को चिन्ता भव तर जाए तू॥
कवयित्री का परिचय
डॉ. पुष्पा खण्डूरी
प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी
डी.ए.वी ( पीजी ) कालेज
देहरादून, उत्तराखंड।

Bhanu Prakash
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।