होली पर्व पर शिक्षिका डॉ. पुष्पा खण्डूरी की कविता-अग -जग धूम मच रही देखो
अग-जग धूम मच रही देखो,
लगती कितनी मनभावन होली
मीठी -मीठी गुजिया, भुजिया संग
भीगी -भागी सी मस्त है होली॥
आसमान में अबीर उड़ रहा
रंग – बिरंगी सब गलियाँ होली।
होली के हुड़दंग में देखो
मस्त झूमती होलियारों की टोली।
अग -जग धूम मच रही देखो ।
लगती कितनी मनभावन होली
भेदों को भुला प्रेम से सबको देखो
कैसे गले लगाती होली ।
फाग के रंग उमंग में देखो
हुड़दंग मचाती मस्त हो रही
देवर की भाभी भी नई नवेली।
फाग के रंग संग परवान चढ़ रहा
अलबेली नवेली मिली हमजोली
अपने ही रंग में रंग लो मुझको,
या मुझमें ही तुम रंग जाओ।
रंजिशें मिटा के सब अपनी।
नफरत को तुम दूर भगाओ॥
दूरियाँ रहें न आपस में कोई,
ना ही कोई भी लगें पराये।
होली के हुड़दंग में सारे
हिलमिल कर सब नाचें गाएं।
सबके ही दुःख दूर भगा कर
आओ सबको सुखी बनाएँ॥
इस धरती से आसमां तक सब।
रंगे प्रेम रंग हिल- मिल जाएँ॥
करें मदद इक दूजे की
सबकी बिगड़ी तकदीर बनाएं।
होली के हुड़दंग में ऐसे खो जाएं
सबको ही बाँटे प्यार सदा हम।
प्यार सदा सबका ही पाएं
दामन छुड़ा नशे का सब,
प्रेमामृत ही छके – छकाएं।
बैर -भाव की समिधा डालें
होलिका होली की जलाएं।
प्रह्लाद की नेकी बढ़े सदा ही।
बदी से उसे हर हाल बचाएँ॥
होली की हुड़दंग में ऐसे खो जाऐं,
हिल- मिल सब को सुखी बनाएं॥
होली में हर गोरी के गाल गुलाबी
लगें ज्यों बरसाने की हो राधा प्यारी,
हंसी – ठिठोली हर ओर मच रही ,
रंग-संग मानों कान्हा ने की हो बरजोरी।
वंशीवट में धूम मच रही देखो।
यमुना जी भी सतरंगी होली॥
मस्त हो रही गोकुल की गैयां भी
हरे, गुलाबी, कान्हा के रंग में
क्या खूब सज रही ग्वालों की टोली
होली के हुडदंग संग भैया
सजनी को मिल गए सजनवा
देखो प्रीत सुहागन होली ॥
अग -जग धूम मच रही सारी
लगती सबको मनभावन होली।
कवयित्री का परिचय
डॉ. पुष्पा खण्डूरी
प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी
डी.ए.वी ( पीजी ) कालेज
देहरादून, उत्तराखंड।