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December 17, 2024

शिक्षिका डॉ. पुष्पा खण्डूरी की कविता-फ्रेडरिक नीत्शे ने घोषणा की

फ्रेडरिक नीत्शे ने घोषणा की
ईश्वर कोई नहीं है, और
ईश्वर की मृत्यु हो गई।
देश राष्ट्र समाज को अब
ईश्वर के सहारे ही नहीं
चलाया जा सकता है॥
पर ‘ईश्वर कोई नहीं है ‘
यही तो रावण भी कहता था।
मैं ही भगवान हूँ स्वयं,
यही तो हिरण्याकश्यप
का भी कोरा दंभ था॥
मित्रों! आज द्वापर त्रेता
या कोई सतयुग नहीं है।
जो साक्षात् सामने ईश्वर,
आकर श्रीकृष्ण समान
तुम्हारे रथ का वो बनें,
सारथी और तुम्हारे हेतु
स्वयं जा कौरवों के पास
मांगे तुम्हारे लिए जाएं।
ईश्वर आज तो रहता है,
हमारी अन्तरात्मा बन,
हमारे ही पास अव्यक्त्,
सबके भीतर आत्मा की,
आवाज बनकर टोकता।
रोकता, हर पल,
अन्याय की ओर बढ़ते
हमारे इन उठते पहले ‘गलत’ कदम।
वो एक बार हमें जरूर “रोकता”।
वो एक बार हमें जरूर “टोकता “॥
पर हमारे भीतर ही हैं
‘रावण’ और ‘हिरण्याक्ष’
वो ही जबअनसुनी कर।
दबा देते ‘आत्मा के स्वर’
अहंकार के ‘ दैत्य मद’॥
कोई रावण जब भी,
सिर उठाता है अपना।
भगवान बनजाता स्वयं,
भस्मासुर सा गर्वित॥
तभी होता सृष्टि के
इस विनाश का तांडव संहार,
नृंशस -जघन्य क्रूर कांड।
मानवता का यूँ विनाश।
कभी न खत्म होने वाला
यूक्रेन और रूस युद्ध सा
अकारण ‘शक्ति -प्रदर्शन’
आज पूरी दुनिया को ही,
चाहे इस ज्वाला में खींच,
लपेटना सबको मौत की इस विनाशक,
काली -स्याह धुएँ से
इस उड़ते विषैले -गुबार की जहरीली,
नफर द्वेषपूर्ण बदसूरत सी फ़िजाओं में,
दो – लड़ाके खेमों में बाँटने पर पूरी दुनिया,
न जाने क्यों ये है अमादा
काश! कोई कृष्ण, ईसा बुद्ध ,
उतरें इस धरती पर यूँ कि आकर
फिर सुनाएं इन्हें, अपनी ही बाइबिल, गीता
एकबार सत्यमेव जयते के स्वर ,
दुनियाँ में फिर से गूंजे,
विश्व युद्ध के ये, उमड़ते – घुमड़ते बादलों को
चीर सर्वत्र शांति का स्वर्णिम – श्वेत -उजियारा
बुद्ध के उपदेश बन बिखरे।
हर्दिश ही गूंजें मानवता के स्वर॥
चिरजीवि हो प्रेम की गंगा -यमुना लें हिलोरें।
मानवता की बगिया में,
सद्भावनाएं फूले – फलें॥
कवयित्री का परिचय
प्रोफेसर, डॉ. पुष्पा खण्डूरी
डी.ए.वी ( पीजी ) कालेज
देहरादून, उत्तराखंड।

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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