शिक्षक एवं कवि श्याम लाल भारती की कविता-जाग जा हे! पथिक
जाग जा हे! पथिक
रात का घना अंधेरा,
सुनसान सड़को पर राही गुम हो गए।
जाग जा हे! पथिक,
अब रोशनी के उजाले हो गए।।
मत भटक इन सुनसान सड़को पर,
कातिल इंतजार में खड़े हो गए।
हर पल इंतजार तेरा उनको,
वे अंधेरे में अब विकराल हो गए।।
इस अंधेरे में कई सिसकियां,
न जानें किसकी हैं गुम हो गए।
नहीं माना तो तेरा भी यही हसर होगा,
जिद में कई अपनी जिंदगी दे गए
जाग जा! हे राही,
अब तो चारों ओर उजाले हो गए।।
हौसला मत हार हे!पथिक,
यहां सभी अंधेरे में खो गए।
डर मत कातिल से अब,
यहां लाखों दीपकों के उजाले हो गए।।
भूल जा सारे बुरे लम्हे अब,
नई सुबह के उजाले हो गए।
कातिल को अब मार डाल,
अब तो रोशन सारे तारे हो गए।।
रात””””””””””””””””””””हो गए।
सुनसान”””””””””””””हो गए।।
कवि का परिचय
श्याम लाल भारती राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसे लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बहुत सुन्दर रचना?